खुद तौलो लकड़ी, मेरे नहीं बस की बात, हाथों में पड़ गए छाले
शमशान भूमि में काम करने वाले कर्मचारियों की अब हिम्मत टूटने लगी है। चिता के लिए लकड़ियां और उपले तौलते तौलते थक गए...
शमशान भूमि में काम करने वाले कर्मचारियों की अब हिम्मत टूटने लगी है। चिता के लिए लकड़ियां और उपले तौलते तौलते थक गए हैं। कर्मचारियों ने लोगों से कह दिया, लकड़ी तौल के लिए कांटा लगा है। खुद ही अपनी तौल कर रजिस्टर में नोट करा देना। मेरे बस की बात नहीं। लकड़ी की तौल करते-करते हाथों में छाले पड़ने लगे हैं।
बरेली सिटी और संजयनगर शमशान भूमि में अंत्येष्टि कराने वाले सेवादार अब भयानक दृश्य को देखकर घबराने लगे हैं। उन कर्मचारियों का कहना है, कोविड से पहले प्रतिदिन 5-10 शव अंतेष्टि आते थे। अब तो सुबह 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक अंत्येष्टि करने वाले आते रहते हैं। अंत्येष्टि में जो लकड़ी चिता में लगाई जाती है उसे तौल कर दिया जाता है। संजयनगर श्मशान भूमि ट्रस्ट के सचिव महेंद्र पटेल का कहना है, लकड़ी तौलते-तौलते कर्मचारियों के हाथों में छाले पड़ गए हैं। इन समस्याओं को देखते हुए, अब लकड़ी की तौल करने की जिम्मेदारी अंत्येष्टि करने वालों को ही दे दी है। खुद ही लकड़ी की तौल कर चिता में लगाओ। रसीद बनवा कर ईमानदारी से पैसे जमा कर दो। हालांकि हर श्मशान में पांच-छः कर्मचारी लगे हुए हैं। सभी का काम अलग-अलग है। कोई लकड़ी तौलता है, तो कोई लकड़ी को ट्रॉली में रखकर चिता तक पहुंचाता है।
और भी बन रहे अत्येष्टि स्थल
संजयनगर शमशान भूमि कमेटी का कहना है, अंत्येष्टि करने के लिए चबूतरे कम पड़ जाते हैं। इसलिए अब निर्णय लिया गया है कि खाली जगह में फर्श डलवाकर फौरी तौर पर अंत्येष्टि स्थल बनवा दिए जाएं। शुक्रवार को दो ट्रक ईंट मंगवाई गई।
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