साफ्टवेयर कंपनी छोड़ जलाशयों के सीने पर इंजीनियर लिख रहा है समृद्धि की इबारत
- सात एकड़ पुश्तैनी जमीन में पांच तालाब खोदवाकर मत्स्य पालन कर रहा सॉफ्टवेयर इंजीनियर

साफ्टवेयर कंपनी में जॉब, अच्छा पैकेज और महानगरीय जीवन। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन मन में कहीं न कहीं अपनी माटी व अपनों से बिछड़ने की टीस थी। समय के साथ यह दर्द बढ़ा तो कंप्यूटर इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर स्वरोजगार की राह अपना ली। आज वह अपनी पुश्तैनी जमीन में तालाब खोदवाकर मत्स्य पालन कर रहे हैं। इससे उनको सालाना 25-30 लाख रुपये की आय हो रही है।
फतेहगंज पूर्वी क्षेत्र के टिसुआ निवासी सेवानिवृत्त डिप्टी कमिश्नर जीएसटी रईस मियां के पुत्र बेदार हसन खां ने 2010 में दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में एमटेक किया था। हेग्जावेयर साफ्टवेयर कंपनी चेन्नई में 4.5 लाख रुपये वार्षिक के पैकेज पर एक साल तक नौकरी की। इसके बाद ताज मिल्क फूड लिमिटेड दिल्ली में 27 लाख के वार्षिक पैकेज पर नौकरी की। 2013 में इस नौकरी को भी अलविदा कहकर स्वरोजगार की राह अपना ली।
नजीबाबाद में स्टोन क्रेसर शुरू किया लेकिन खनन की पॉलिसी बदलने पर इस कार्य को बंद कर 2019 में उन्होंने खेतों में तालाब खोदवा डाले। अब वह नीली क्रांति के सपनों में समृद्धि का रंग भरने के साथ ही जल संरक्षण का भी कार्य रहे हैं। उन्होंने अपनी सात एकड़ जमीन में चार तालाब बना रखे हैं। इनमें से एक जल संरक्षण के लिए समर्पित है। शेष चार तालाबों में इंडियन मेजर कार्प व पंगाशियस मछलियों का पालन करते हैं।
बेदार खां बताते हैं कि पहले उन्होंने प्रदेश में मछलियों की मांग व उत्पादन का अध्ययन किया। यहां अधिकांश मछलियों की आपूर्ति आंध्र प्रदेश से होती है। मांग और आपूर्ति के गैप को भरने के लिए मछली पालन शुरू किया। आज उनकी मछलियों की आपूर्ति मंडल के अलावा लखनऊ व दिल्ली तक होती है। इस काम से प्रतिवर्ष उन्हें 25-30 लाख रुपये की आय हो रही है।
इस तरह मन में आया मत्स्य पालन का विचार
इंटरनेट सर्फिंग के दौरान एक दिन किसी ब्लाग में बेदार हसन खां ने पढ़ा कि 21वीं सदी डेटा की नहीं बल्कि एक्वा कल्चर की होगी। यहीं से प्रेरित होकर उन्होंने पहले चेन्नई, हैदराबाद व कोलकाता जैसे शहरों में घूमकर इसके बारे में जानकारी जुटाई और बाद में यह काम शुरू किया।
तकनीक से बचा रहे पानी
बेदार खां रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम के जरिये पानी की बर्बादी रोक रहे हैं। बरेली मंडल में यह अपनी तरह का पहला प्रयास है। इसके जरिये एक ही पानी को बार-बार स्वच्छ कर प्रयोग में लाया जाता है।
इस तरह करते हैं जल संरक्षण
जिन चार तालाबों में वह मत्स्य पालन करते हैं, उसका पानी वह जल संरक्षण के लिए समर्पित तालाब में डाल देते हैं। इसके अलावा आसपास के अपने खेतों के पानी का रुख भी इसी तालाब की ओर मोड़ रखा है। यह इतना गहरा बनाया गया है कि तली में रेत निकल आई है। इससे ऊपर का पानी आसानी से धरती की कोख में समा जाता है। इन्हीं प्रयासों की देन है कि वहां आसपास भूगर्भ जलस्तर महज 30 फीट नीचे ही मौजूद है।
जानिए क्या होता है रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम
रिसर्कुलेटरी एक्वा कल्चर सिस्टम(आरएएस) मछली पालन के लिए नया तरीका है। इसकी सहायता से नियंत्रित वातावरण के साथ इनडोर टैंकों में उच्च घनत्व पर मछली का पालन आसानी से होता है। इमसें कई टैंक बने होते हैं जिसके माध्यम से पुनर्चक्रण के लिए पानी को फिल्टर और साफ भी करता रहता है। नया पानी इसमें केवल वाष्पीकरण के लिए टंकियों में डाला जाता है। यह सिस्टम जल संरक्षण में काफी सहायक है।