सेवा के बदले मिले सम्मान, सुविधा और सुरक्षा
नर्सिंग सिर्फ एक पेशा नहीं, मानवता की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है। मरीजों की देखभाल, दवा का सही समय और उससे भी बढ़कर उनके मनोबल को संबल देना, यही है नर्स की असल भूमिका।
सरकारी हो या निजी, नर्सें हर अस्पताल की रीढ़ बनी हुई हैं, जो दिन-रात मरीजों की देखभाल में जुटी रहती हैं। वे थकी नहीं, रुकी नहीं, कभी अपनों से दूर तो कभी सुविधाओं से वंचित रहकर भी अपना फर्ज निभाती रहीं। हिंदुस्तान की टीम ने बोले अलीगढ़ के तहत इन नर्सों से बात की। उनके जज्बे को जाना और वह समस्याएं भी सुनीं जिनका सामना वे रोज करती हैं। उन्होंने बताया कि वे सिर्फ इंजेक्शन नहीं लगातीं, मरीजों की हिम्मत भी बनती हैं। कोविड-19 की भयावह लहर में जब चारों ओर डर और सन्नाटा था, तब यही नर्सें उम्मीद की लौ बनकर उभरी थीं।
कोरोना महामारी के दौर में जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तब नर्सें ही थीं जो संक्रमितों के साथ खड़ी रहीं। न डर, न थकान और न ही शिकवा, बस सेवा। दीनदयाल उपाध्याय संयुक्त चिकित्सालय की नर्स अनामिका बताती हैं, आईसीयू में हमारी 24 घंटे की ड्यूटी थी। मरीजों की तकलीफ देख कर भावुक होना मना था, क्योंकि हमें उन्हें हिम्मत देनी होती थी। नर्स शक्ति सिंह बताती हैं कि ड्यूटी के आगे अपने घर-परिवार को भी पीछे छोड़ दिया था। नर्सों को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मान भी मिला। नर्स मीना बताती हैं, हर दिन अस्पताल पहुंचते ही दिल कांपता था। अपनी पीड़ा भूल गए, लेकिन मरीजों का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने बताया कि वह खुद मरीजों की परिजन बन गई थीं। निजी संस्थान की अनीता सिंह, जो उस समय जिला अस्पताल में तैनात थीं, ने कहा, डर था, लेकिन ड्यूटी से पीछे हटना मुमकिन नहीं था। माता-पिता को भी समझाया और फिर उन्होंने भी हौसला दिया। मोहनलाल गौतम महिला अस्पताल की नर्सों ने भी संक्रमितों की सेवा करते हुए कई दिन अपने परिवार से दूर बिताए। रुबीना, आरती सहित कई नर्स हैं, जो महामारी में मरीजों की सेवा से पीछ़े नहीं हटीं। वे कहती हैं, कभी कभी लगता था कि हम ही हैं जो इन मरीजों का परिवार हैं। अब ये नर्सें अपने हितों की मांग सरकार से कर रही हैं।
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नर्सिंग स्टॉफ की मांगें
-केंद्र सरकार के अधीन स्टॉफ के बराबर वेतन और भत्ते
-अस्पताल परिसर में उनके बच्चों के लिए क्रच की सुविधा
-पर्याप्त ब्रेक और आरामदायक कार्य वातावरण
-अवकाश और मातृत्व लाभ की समान व्यवस्था
-मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की नीति
-पर्याप्त संसाधन और सुरक्षात्मक उपकरण
-संविदा नर्सों के लिए स्थायी नियुक्ति
-अत्यधिक ड्यूटी घंटों में कटौती
-पदोन्नति की स्पष्ट की जाए नीति
-गृह जनपद में तैनाती
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समस्या....
नर्सिंग स्टाफ देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ है, परंतु यह वर्ग आज भी उपेक्षित है। कोरोना के बाद भी उनके वेतन में कोई विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई। सरकारी व निजी संस्थानों में भारी भेदभाव है। संसाधनों की कमी, मानसिक थकान, अधिक कार्यभार और कम वेतन उनकी मुख्य समस्याएं हैं। बहुत-सी नर्सें शारीरिक और मानसिक तनाव से गुजर रही हैं, लेकिन हेल्थ सिस्टम में उनके लिए कोई काउंसलिंग व्यवस्था नहीं है।
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सुझाव...
-सरकार को नर्सिंग स्टाफ की सेवा शर्तों की समीक्षा करनी चाहिए।
-नर्सों के लिए विशेष मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया जाए।
-समय पर पदोन्नति और सम्मान से मनोबल बढ़ाया जाए।
-अस्पतालों में नर्सिंग कोटे में भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और नियमित हो।
-कोरोना काल की तर्ज पर भविष्य के लिए भी आपदा प्रबंधन में विशेष भूमिका तय की जाए।
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नर्सिंग स्टॉफ की पीड़ा
हम नर्सें स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। दिन-रात मरीजों की सेवा में जुटे रहना हमारा धर्म है। क्रच की सुविधा, समान वेतन और गृह जनपद में ड्यूटी, सरकार से हमारी ये मांगें जायज हैं। हम सिर्फ सम्मान और अधिकार की बात कर रहे हैं।
राधा वर्मा प्रदेश उपाध्यक्ष, राजकीय नर्सेस संघटन
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हम हर हाल में मरीजों की सेवा करते हैं, चाहे संसाधन हों या न हों। लेकिन हमारा मनोबल तब टूटता है जब हमारी वाजिब मांगें अनसुनी कर दी जाती हैं। सरकार को हमारी भूमिका को समझते हुए जल्द समाधान करना चाहिए।
कृष्णा कुमारी, जिला उपाध्यक्ष
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हम सेवा देने में पीछे नहीं रहते, पर जब बात हक की आती है तो हम पीछे क्यों रहें? हमारी प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं, सुविधाएं, सम्मान और सुरक्षित वातावरण।
सुनील कुमार, वार्ड इंचार्ज
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मरीजों की सेवा हमारी प्राथमिकता है, लेकिन अपनी सुरक्षा और अधिकार भी जरूरी हैं। हमने हमेशा मानवता की सेवा की है। अब समय है कि सरकार हमारी मांगों पर संवेदनशील रुख अपनाए और उन्हें माने।
रोज मैरी, मंडल अध्यक्ष
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12-12 घंटे की शिफ्ट में काम करना आसान नहीं होता। फिर भी हम मुस्कुराते हुए सेवा करते हैं। हमारी मांगें सुविधाओं और सम्मान को लेकर हैं, जिन्हें नजरअंदाज करना ठीक नहीं है।
लता मिश्रा
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कोविड हो या डेंगू, हम हर मोर्चे पर डटे रहे। लेकिन अब हमारी आवाज को सुना जाना चाहिए। बेहतर संसाधन, स्टाफ और सुविधाएं हमारी प्राथमिक जरूरतें हैं।
रचना
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मरीजों की देखभाल में हम कोई कमी नहीं छोड़ते, फिर क्यों हमारे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है? हम अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, सेवा छोड़ नहीं रहे।
कृष्णा शर्मा
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हमारे कार्य को सराहा जाए, यही अपेक्षा है। तनख्वाह, प्रमोशन और सुरक्षित वातावरण हमारी प्राथमिक मांगें हैं। सेवा भावना के साथ अधिकार भी जरूरी हैं।
गायत्री
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हमने हर मुश्किल घड़ी में मरीजों को संभाला है, लेकिन हमारी परिस्थितियां सुधारने की किसी ने कोशिश नहीं की। हमारी आवाज को नजरअंदाज न किया जाए।
सरिता सिंह,
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नर्सिंग सिर्फ नौकरी नहीं, सेवा है। लेकिन सेवा करने वालों को उचित सम्मान, सुविधा और सुरक्षा भी मिलनी चाहिए। हम अपनी बातों को लेकर एकजुट हैं।
मनीषा
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सरकार को यह समझना होगा कि बिना नर्सों के अस्पताल नहीं चल सकते। हमारी मांगें बुनियादी हैं और उन्हें मानना सिर्फ नैतिक नहीं, व्यावहारिक जरूरत भी है।
पायल
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हमने हमेशा मरीजों को परिवार की तरह समझा और सेवा की। लेकिन हमारी समस्याओं को कोई नहीं समझता। हमारी मांगें सिर्फ सुविधाओं की नहीं, आत्मसम्मान की भी हैं।
रेखा यादव
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जब कोई पीछे नहीं आता, तब नर्सें सबसे पहले खड़ी होती हैं। आज हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हैं। यह सिर्फ नर्सिंग स्टाफ की नहीं, पूरे स्वास्थ्य तंत्र की बात है।
बबिता
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हम बिना थके मरीजों की सेवा करते हैं, लेकिन खुद थक चुके हैं अनदेखी और असमानता से। हमारी मांगों को मानकर सरकार हमें और मरीजों दोनों को राहत दे सकती है।
नीलम
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हमारी मांगें वेतन बढ़ोतरी, पदोन्नति और बेहतर कार्यस्थल की हैं। मरीजों की सेवा हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन इसके लिए हमें भी बेहतर माहौल और संसाधन चाहिए।
तमन्ना
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हम नर्सें केवल डॉक्टरों की सहायक नहीं, खुद एक मजबूत स्तंभ हैं। हमारी सेवाएं निरंतर चलती रहती हैं, इसलिए हमारी मांगों पर ठोस और समयबद्ध कार्रवाई होनी चाहिए।
आशुतोष
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हम सेवा करते हैं निस्वार्थ भाव से, पर हमें नजरअंदाज किया जा रहा है। हमारी मांगें न केवल जायज हैं बल्कि आवश्यक भी हैं। हम सिर्फ अपने हक की बात कर रहे हैं।
मधू
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रात-दिन मरीजों की देखभाल के बावजूद हमें सम्मान नहीं मिलता। हमारे पद, वेतन और सुरक्षा को लेकर ठोस नीति बने, तभी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार संभव है।
कविता
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नर्सें अस्पतालों की आत्मा हैं। हमारी सेवाएं जितनी जरूरी हैं, उतनी ही जरूरी हैं हमारी मांगें। हमें लगातार अनदेखा करना स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए नुकसानदायक है।
भूरी सिंह
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हमारी लड़ाई किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि अपने लिए है। स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ माने जाने के बावजूद हमारी अनदेखी हो रही है। अब समय है बदलाव का।
संतोष कुमार
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सरकारी अस्पतालों में मिले स्टॉफ तो बढ़े सुविधाएं
अलीगढ़। सरकारी अस्पतालों में नर्सिंग स्टॉफ की कमी से स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। मलखान सिंह जिला अस्पताल, दीनदयाल उपाध्याय संयुक्त चिकित्सालय और जिला महिला अस्पताल में प्रतिदिन दो से ढाई हजार मरीज पहुंचते हैं, लेकिन उपलब्ध स्टॉफ इस दबाव को संभालने में नाकाम साबित हो रहा है।
मलखान सिंह जिला अस्पताल में वर्तमान में 32 नर्सिंग स्टॉफ हैं, जिनमें मात्र 18 नियमित हैं। पुराने मानकों के अनुसार यहां 40 नर्सिंग स्टॉफ होना चाहिए था, जबकि नए मानकों के तहत यह संख्या 80 होनी चाहिए। स्टॉफ की इस कमी के चलते हाल ही में पीकू वार्ड में शिफ्ट किए गए बच्चा वार्ड का संचालन भी प्रभावित हो रहा है। गंभीर बच्चों की देखभाल में पर्याप्त नर्सिंग स्टॉफ न होने से इलाज में देरी की शिकायतें भी सामने आ रही हैं। दीनदयाल उपाध्याय संयुक्त चिकित्सालय में भी स्थिति कुछ खास बेहतर नहीं है। यहां करीब 80 नर्स हैं, जबकि मरीजों की संख्या और विभागों की जरूरतों को देखते हुए यह संख्या पर्याप्त नहीं मानी जा रही। जिला महिला अस्पताल में भी नर्सों की संख्या सीमित है, जिससे प्रसूता महिलाओं को समय पर देखरेख और इलाज नहीं मिल पा रहा। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, स्टॉफ की तैनाती के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस समाधान नहीं दिख रहा। ऐसे में मरीजों की बढ़ती संख्या और स्टॉफ की कमी मिलकर स्वास्थ्य व्यवस्था को चुनौतीपूर्ण बना रही है।
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