उन्होंने कहा कि इन्हीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कर्मचारियों की बदौलत बिहार स्वास्थ्य के विभिन्न सूचकांकों में पूरे भारत में अग्रणी रहा है ’ बिहार में अतिशीघ्र हेल्थ मैनेजमेंट कैडर लागू करने की प्रक्रिया पूर्ण किया जा रहा है।’
नीतीश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने दावा किया है कि इस बार बीजेपी की सरकार बनना तय है। उन्होने कहा बिहारियों, पूर्वांचलवासी को दिल्ली का बोझ बताने और कोविड-19 के दौरान उन्हें दिल्ली से भागने के लिए विवश करने वाले केजरीवाल को इस बार वहां की जनता सबक सिखाएगी।
इस नई व्यवस्था के तहत ओपीडी पंजीकरण काउंटर पर मरीजों के पंजीयन के साथ ही उन्हें टोकन नंबर दिया जाएगा। इसमें संबंधित चिकित्सक का नाम अंकित रहेगा। इससे मरीजों को अपनी बारी का इंतजार व्यवस्थित तरीके से करने में मदद मिलेगी।
एक तरफ बिहार के आयुर्वेदिक अस्पतालों और आयुष आरोग्य मंदिर में दवाइयों की घोर कमी है, तो दूसरी ओर दवा खरीद नहीं होने से साढ़े 18 करोड़ रुपये की राशि दूसरे राज्यों में जाने का खतरा बढ़ गया है।
जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (मायागंज अस्पताल) के एनेस्थीसिया विभाग में एनेस्थेटिक (निश्चेतक) की संख्या में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। करीब सात माह पहले एनेस्थीसिया विभाग में 13 एनेस्थेटिक तैनात थे। लेकिन आज की तारीख तक आते-आते एनेस्थेटिक की संख्या कम होकर छह पर आ गई है।
बिहार में एचएमपीवी के सैंपल की जांच शुरू हो गई है। पटना आईजीआईएमएस में फिलहाल यह सुविधा दी गई है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि जल्द ही जांच सुविधा का विस्तार किया जाएगा।
एचएमपीवी से बचाव के लिए कोविड-19 जैसे प्रोटोकॉल का पालन करना आवश्यक है, जिसमें नियमित रूप से हाथ धोना, खांसते-छींकते समय मुंह ढकना, संक्रमित व्यक्तियों से दूरी बनाए रखना और उनकी उपयोग की वस्तुओं को साफ रखना शामिल है।
भारतीय जनता पार्टी के नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने नए साल पर अपने बधाई संदेश में कहा है कि नए साल में 13 लाख लोगों के जीवन में खुशहाली अवश्य आएगी।
कृषि विभाग के अधिकारी के अनुसार, सूबे में डीएपी की जरूरत 2.45 लाख मीट्रिक टन है, जबकि केन्द्र सरकार से हाल में मिली डीएपी के बाद सूबे में इसकी उपलब्धता 2.24 लाख मीट्रिक टन हो गयी है। अब केवल 21 हजार मीट्रिक टन की और आवश्यकता रह गयी है
यूपीएचसी पर डॉक्टर ही कई माह से तैनात नहीं है तो यहां पर तैनात नर्सें मरीजों का नब्ज थामकर लक्षण के आधार पर उनका दवा देकर इलाज कर रही हैं तो बाकी पांच पर आयुष (आयुर्वेदिक, यूनानी या होमियोपैथिक) चिकित्सक एलोपैथिक यानी अंग्रेजी विधि से मरीजों का इलाज कर रहे हैं।