महाकुंभ मेला 12 साल बाद लगता है। यह मेला क्यों लगता है और इसके शुरू होने के पीछे क्या कारण है, इसके पीछे की कहानी आप शायद नहीं जानते होंगे। आइए हम आपको बताते हैं। महाकुंभ की चर्चा समुद्र मंथन से शुरू हुई। दरअसल देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। अब दोनों में कई चीजें निकली, लेकिन जो सबसे खास था वो था अमृतकलश। जो अमृतकलथ का अमृत चख लेता वो सदा के अमर हो जाता। इसलिए देवताओं और राक्षसों में इसको लेकर झगड़ा शुरू हो गया।
दानव अगर अमृत का पान कर लेते, तो सदा के लिए धरती पर इनका अत्याचार होता, इसलिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। जब देवताओं से दानवों को संभाला न गया तो उन्होंने इंद्र देव के पुत्र जयंत को यह अमृत कलश सौंप दिया। जयंत ने कौए का रूप धारण कर राक्षसों से अमृत कलश को बचाने की कोशिश की। जब वो अमृत कलश को लेकर भाग रहे थे, तो उनकी चार बूंदे गिरकर प्रयागराज, उज्जैन , हरिद्वार और नासिक में गिर गई थी। जहां जहां अमृत कलश की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।
अब कौए के बारे में रहस्य जानें। कौए बने जयंत के मुंह पर भी अमृत की कुछ बूंदे लग गई, ऐसे में कौवे की भी आयु लंबी हो गई। आपको बता दें कि कौवे की आयु बहुत लंबी होती है। इसके अलावा अमृत की कुछ बूंदे धरती पर दूर्वा घास पर गिर गई थी। इसलिए हर शुभ काम में दूर्वा को पवित्र माना जाता है और भगवान गणेशजी को अर्पित किया जाता है।
मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि जब सूर्य मकर राशि में और शनि कुंभ राशि में हो तो महाकुंभ लगता है। महाकुंभ में स्नान यानी जहां अमृतकलश की बूंदे गिरी वहां स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
आपको बता दें कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है। इसलिए कुंभ मेला 12 साल के अंतराल पर मनाया जाता है