‘शीशमहल’ क्यों कहा जाने लगा, दिल्ली में ‘CM वाले बंगले’ से कैसे चिपका यह नाम
भाजपा और कांग्रेस के सभी नेताओं के मुंह से आप 'शीशमहल-शीशमहल' सुनते होंगे, लेकिन यह नाम इन्होंने नहीं दिया। दरअसल, मई 2023 में सबसे पहले यह नाम सामने आया।
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दिल्ली के विधानसभा चुनाव में एक बंगला सबसे बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है, जिसे 'शीशमहल' कहा जा रहा है। इस बंगले में बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 2015 से 2024 में इस्तीफा देने तक रहे। भाजपा जहां इसके सहारे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी वाली छवि तोड़ने की कोशिश में जुटी है तो 'आप' अपने बचाव में प्रधानमंत्री आवास को ढाल बना रही है। भाजपा-कांग्रेस और 'आप' के सभी नेता इन दिनों 'शीशमहल' से जुड़े आरोप-प्रत्यारोप में जुटे हैं। सोशल मीडिया, टीवी चैनल्स से अखबारों की सुर्खियों तक सब जगह 'शीशमहल' का शोर है। ऐसे में आपके मन में भी एक सवाल होगा कि इस बंगले को 'शीशमहल' की क्यों कहा जाता है?
कैसे पड़ा शीशमहल नाम?
भाजपा और कांग्रेस के सभी नेताओं के मुंह से आप 'शीशमहल-शीशमहल' सुनते होंगे, लेकिन यह नाम इन्होंने नहीं दिया। दरअसल, मई 2023 में सबसे पहले यह नाम सामने आया। तब एक न्यूज चैनल ने बंगले पर खर्च को लेकर पहली बार चौंकाने वाले दावे किए थे। न्यूज चैनल टाइम्स नाउ पर प्रसारित इस कार्यक्रम को 'ऑपरेशन शीशमहल' नाम दिया गया था। यहीं से भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने भी इस नाम को लपक लिया। इसके बाद उस बंगले की जब भी बात हुई दोनों दलों ने 'शीशमहल' शब्द का ही इस्तेमाल किया और आम लोगों की जुबान पर इसे चढ़ाने की भरसक कोशिश की।
असल में 'शीशमहल' जयपुर के आमेर किले में बने एक महल का नाम है, जिसे दर्पणों का महल भी कहा जाता है। इसकी दीवारों और छतों पर कीमती पत्थर और शीशे लगाए गए हैं। मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में इसे बनवाया गया था बाद में सिख महाराजा रणजीत सिंह ने भी इसमें बदलाव कराए। भाजपा का आरोप है कि केजरीवाल ने भी बंगेल में इसी तरह महंगे टाइल्स और पत्थर लगवाए।
शीशमहल को लेकर क्या आरोप
दिल्ली के सिविल लाइन्स में 6 प्लैगस्टाफ रोड में मौजूद इस बंगले में अरविंद केजरीवाल बतौर मुख्यमंत्री रहा करते थे। कोरोना काल के दौरान इस बंगले का नवीनीकरण किया गया। आरोप है कि बंगले में सुख-सुविधाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए। मीडिया में सीएजी रिपोर्ट का कुछ हिस्सा भी लीक हुआ है, जिसके मुताबिक बंगले के नवीनीकरण पर 33 करोड़ से अधिक खर्च का ब्योरा मिल चुका है। सीएजी रिपोर्ट में बताया गया है कि शुरुआती आंकलन 7.9 करोड़ रुपए खर्च का था और पीडब्ल्यूडी की तरफ से सभी दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
बंगले तो सभी नेताओं के पास, फिर केजरीवाल की घेराबंदी क्यों?
सवाल यह भी है कि सभी विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को उनके पद के मुताबिक सरकारी आवास दिए जाते हैं तो फिर इतनी चर्चा केजरीवाल से जुड़े बंगले की ही क्यों हो रही है। इसके पीछे वजह करीब 12-13 साल पुरानी है। यूपीए-2 सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिए देश में पहली बार चर्चा में आए अरविंद केजरीवाल ने जब राजनीतिक दल बनाने का फैसला किया तो उन्होंने इस बात को जोरशोर से प्रचारित किया कि नेता बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं। दिल्ली में चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने कहा था कि उनके लिए 2-3 कमरे का घर ही पर्याप्त होगा। साधारण कपड़े और चप्पल पहने हुए केजरीवाल जब दिल्ली की गलियों में प्रचार के लिए निकलते थे तो शीला दीक्षित के बंगले में 12 एसी लगे होने की बात कहकर जनता को यह बताने की कोशिश करते थे कि नेता और मंत्री जनता के पैसों पर विलासिता वाली जिंदगी जी रहे हैं। अब भाजपा और कांग्रेस उनके बंगले में मौजूद सुख-सुविधाओं और खर्च की लिस्ट गिनाकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर है।