ज्योतिष और दूसरा पक्ष : हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है
ज्योतिष में फलादेश करते समय हमें सभी संभावित पहलुओं पर विचार करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, विवाह रेखा का संपन्न परिवार की ओर जाना तलाक या कलह का कारण बन सकता है। भाग्य स्थान का मजबूत होना परिवार से...
- विपुल जोशी, ज्योतिषाचार्य हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है यानी अगर हम किसी दीवार पर धक्का भी लगाएं तो भी दीवार अपनी जगह से खिसके चाहे ना खिसके, बदले में हमें थकान जरूर होती है और दीवार पर हमारे हाथों के निशान भी रह जाते हैं। यही एक घटना का दूसरा पक्ष है, जो कई बार महत्वपूर्व भूमिका निभाता है।
ज्योतिष में फलादेश करते समय हम कभी उसके दूसरे पक्ष पर बात नहीं करते या कभी उसके बारे में नहीं सोचते हैं, जबकि देखा जाए तो दूसरा पक्ष पहले पक्ष के बराबर ही महत्वपूर्ण होता है।
उदाहरण के तौर पर कुछ समय पहले मैं एक व्यक्ति से मिला। उसके हाथ में विवाह/लगाव रेखा काफी आगे बढ़कर सूर्य पर्वत की ओर जा रही थी, जिसका सामान्य फलादेश यह है कि जब जातक के हाथ में विवाह/लगाव रेखा सूर्य पर्वत की ओर जाती है तब जातक का विवाह ‘अपने परिवार से संपन्न परिवार में होता है। यही बात मैंने उस जातक को बताई और वह जातक खुश हो गया। यह बेहद सामान्य फलादेश था, जो दस में से नौ हस्तरेखा या ज्योतिष के जानकर करेंगे, लेकिन इस फलादेश का एक दूसरा पक्ष भी है।
आपने अपने आसपास देखा होगा कि जब भी किसी संपन्न परिवार की लड़की का विवाह कमतर परिवार में होता है तो बहुत से मामलों में लड़की लड़के के परिवार के साथ तालमेल नहीं बैठा पाती। कई बार या तो वो अलग रहने लगते हैं या फिर दोनों का तलाक हो जाता है। यानी सूर्य पर्वत की ओर जाती हुई विवाह रेखा अगर संपन्न परिवार में विवाह दिखा रही है, तो हमें दूसरे पक्षों का भी बारीकी से अध्यन करना होगा वरना संपन्न परिवार में हुआ विवाह ही तलाक या कलह पूर्ण दांपत्य जीवन का कारण बन सकता है।
दूसरे उदाहरण से समझें तो अगर किसी जातक का नवम भाव यानी भाग्य स्थान बेहद मजबूत है तो इस चीज की संभावना काफी बढ़ जाती है कि वह अपने घर से दूर जाकर तरक्की करेगा, या फिर कोई ऐसा काम करेगा जो उसके परिवार में किसी ने नहीं किया होगा, क्योंकि अगर वह वही काम करेगा जो उसके परिवार में सबने किया तो उसकी भाग्य की उन्नति कैसे होगी। इस स्थिति में उसका अपने परिवार के साथ मतभेद होना या एक तरह की दूरी बन जाना, दूसरों की तुलना में उन्हें उतना समय ना दे पाना स्वाभाविक ही है, भाग्य स्थान का मजबूत होना फलादेश का पहला पक्ष है और उसकी वजह से परिजनों के साथ मनमुटाव होना फलादेश का दूसरा पक्ष है।
वैसे भी कुंडली में द्वितीय भाव यानी कुटुंब (परिवार) स्थान और नवम भाव यानी भाग्य स्थान आपस में षडाष्टक (6,8 संबंध) योग बनाते हैं तो दोनों में भावों में असमानता होना बेहद समान्य सी बात है।
तीसरे उदाहरण में हम अगर ऐसी किसी कुंडली की कल्पना करें, जिसमें जातक का पंचम भाव पीड़ित है तो पंचम भाव के पीड़ित होने की वजह से उसे संतान संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इस समस्या के समाधान के लिए जाहिर सी बात है कि वह डॉक्टर की मदद लेगा और डॉक्टर से परामर्श के बाद उसे दवाइयां भी लेनी पड़ेगी। कई बार अत्यधिक दवाइयां या हाई डोज की दवाइयों की वजह से स्वास्थ्य का बुरा असर पड़ जाता है। एक संभावना यह भी बनती है कि संतान संबंधित समस्याओं की वजह से उनके घर में भी काफी तनाव की स्थिति रहेगी।
इस उदाहरण को अगर आप दोबारा से देखेंगे तो इसमें पहला पक्ष संतान है दूसरा पक्ष जातक का स्वास्थ्य है और तीसरा पक्ष प्रेम/तालमेल है, जैसा कि हम जानते हैं पंचम भाव से संतान,स्वास्थ्य एवं प्रेम तीनों ही चीजों का फलादेश किया जाता है। इस स्थिति में अगर प्रेम (शुक्र/गुरु) और स्वास्थ्य (मंगल) के कारक ग्रह अच्छी स्थिति में नहीं होंगे तो जातक को संतान पक्ष के साथ-साथ दूसरे पक्षों में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
ज्योतिष में बारह भाव आपस में जुड़े हुए हैं, इसलिए विवाह का फलादेश सिर्फ सप्तम भाव से नहीं किया जाता कई बार विवाह में अड़चन द्वितीय भाव (कुटुंब स्थान) पंचम भाव (प्रेम) की वजह से भी आती है। ठीक इसी तरह संतान का फलादेश सिर्फ पंचम भाव से नहीं किया जाता कई बार संतान में अड़चन द्वितीय भाव (कुटुंब स्थान) सप्तम भाव (जीवनसाथी) और एकदश (जीवनसाथी का प्रेम) की वजह से भी आती है, ये सभी भाव किसी फलादेश के दूसरे, तीसरे एवं चौथे पक्ष हैं, इसके साथ-साथ कई बार कारक ग्रह की स्थिति भी निर्णायक पक्ष की भूमिका में होती है। फलादेश के वक्त एक ज्योतिषी को सटीक फलादेश के लिए सभी संभावित पक्षों पर विचार करके अपने इष्ट का स्मरण करते हुए फलादेश करना चाहिए।
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