अगले 5 साल में जिला अदालतों में 5 करोड़ से अधिक हो जाएंगे लंबित मुकदमे
पिछले एक दशक में मुकदमों के निपटारे में तेजी आई है, लेकिन अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक जिला अदालतों में मुकदमों की संख्या 5 करोड़ 12 लाख तक पहुंच सकती है।...

प्रभात कुमार नई दिल्ली। पिछले एक दशक में मुकदमों के निपटारे में तेजी आने के बाद भी देशभर की अदालतों में मुकदमे का बोझ कम होने के बजाए और बढ़ता ही जा रहा है। अब अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक जिला अदालतों में जहां मुकदमों का बोझ 5 करोड़ 12 लाख तक पहुंच सकता है। हालांकि यदि यह पूर्वानुमान 95 फीसदी भी सही होता है तो मुकदमों की संख्या 8 करोड़ तक पहुंच सकती है। देश में फिलहाल 142 करोड़ जनसंख्या बताई जा रही है और अनुमान है कि 2030 तक देश की कुल जनसंख्या लगभग 152 करोड़ पहुंच जाएगी।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2025 ने अपने पूर्वानुमान के आधार पर जिला अदालतों में लंबित मामलों को लेकर शोध किया और पूर्वानुमान लगाया कि 2030 तक मुकदमों की संख्या कितनी हो जाएगी। इसमें अनुमान लगाया गया कि जिला अदालतों में 15 फीसदी के हिसाब से मुकदमों की बढ़ोतरी होगी। रिपोर्ट के मुताबिक यदि इसी तरह बढ़ोतरी होती है तो जिला अदालतों में 2030 तक मुकदमों की संख्या 5 करोड़ 12 लाख होने की संभावना है। साथ कहा कि यदि बढ़ोतरी का पूर्वानुमान 50 फीसदी भी सही होता है तो मुकदमों की संख्या 6 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। यदि पूर्वानुमान 95 फीसदी सही होता है तो मुकदमों आंकड़ा 8 करोड़ को पार करने की संभावना है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि देश में 2022 तक 4.44 करोड़ मुकदमे लंबित थे। मौजूदा समय में 4.57 करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित है। मुकदमा निपटारे की दर में आई है तेजी रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल को छोड़कर, हाल के वर्षों में जिला अदालतों में मुकदमे के निपटारे में तेजी आई है। वर्ष 2018 की तुलना में 2024 में मुकदमों के निपटारे में 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2018 में जहां मुकदमों में 93 फीसदी की दर से मामले का निपटारा किया, जबकि 2024 में 96 फीसदी के हिसाब से। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान 2020 में मुकदमा निपटारे में तेजी से कमी आई थी। 2020 में जहां 62 फीसदी मुकदमा निपटारे की दर रही, वहीं 2021 में 81 फीसदी हो गया था। 21 फीसदी जजों की कमी वर्ष 2016-17 में देश की जिला अदालतों में जजों की 22 फीसदी कमी थी, जबकि 2025 में 21 फीसदी जजों की कमी है। 2016-17 में जजों की कुल स्वीकृत क्षमता 23,567 के मुकाबले महज 18,322 जज कार्यरत थे। हालांकि जनवरी 2025 तक देशभर की जिला अदालतों के जजों की स्वीकृत क्षमता 25,771 है और 20,478 जज कार्यरत है। लंबित मुकदमों का ब्यौरा राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के आंकड़ों के मुताबिक देश की जिला अदालतों में फिलहाल 4 करोड़ 57 लाख 76 हजार मुकदमे लंबित है। इनमें से 3,48,41,902 आपराधिक मामले हैं, जबकि 1,09,34,676 सिविल विवाद है। 30 फीसदी मामला एक साल से कम समय से लंबित है। 27 फीसदी एक से 3 साल तक पुराने हैं। 13 फीसदी 3 से 5 साल पुराने। 20 फीसदी 5 से 10 साल पुराने। 10 फीसदी 10 साल से अधिक पुराने। मुकदमे बढ़ने में समय से पुलिस जांच न होना बड़ा कारण इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के सह संस्थापक वलय सिंह ने जिला अदालतों में बढ़ते मुकदमों के बोझ का कारण जजों की कमी बताया। साथ ही जिस हिसाब से मुकदमे आते हैं उस हिसाब से निपटारा नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि पुलिस भी समय से मामले की जांच नहीं करती और आरोप पत्र भी समय से दाखिल नहीं करती। फोरेंसिक रिपोर्ट भी समय से नहीं मिलती। कभी-कभी पुलिस भी रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता है। इसके अलावा कई बार वकील भी जानबूझकर मुकदमों की सुनवाई में देरी करते हैं और सरकारी वकीलों (अभियोजक) की कमी भी बड़ा कारण है।
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