राजदरबार, कौन भारी
यूपी में मंत्रियों और अधिकारियों के बीच रिश्ते बदलते रहते हैं। हाल ही में एक आईएएस अधिकारी ने मंत्री के कामकाज का आकलन किया, जिससे मंत्री नाराज हो गए। वहीं, कांग्रेस में प्रदेश प्रभारी के खिलाफ...

राजदरबार कौन भारी यूपी में मंत्रियों व अधिकारियों के बीच रिश्ते वक्त के साथ बदलते रहते हैं। अब हाल यह है कि कहीं अफसर मंत्री पर भारी पड़ रहे हैं तो कहीं मंत्री अपना दबदबा अधिकारियों पर बनाने में कामयाब हैं। हाल में यूपी के एक बेहद ताकतवर आईएएस अधिकारी जो अपने विभाग के मंत्री से पहले से क्षुब्ध थे, कई दिन से मौके की तलाश में थे। जैसे ही उन्हें मौका मिला, उन्होंने मंत्री के कामकाज का आकलन करवा दिया। इतना ही नहीं, जब मीटिंग में पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन हुआ तो उसमें मंत्री जी के कामकाज का ब्योरा भी दिखाया गया।
इस पर मंत्री जी उस अधिकारी पर खासे खफा हो गए। उन्होंने भरी मीटिंग में ही अधिकारी को झाड़ लगा दी। बोले, पहले अपने अधिकारियों को रोकिये, इनकी कारस्तानी जानिए तब मुझ पर उंगली उठाएं। अब मंत्री जी के पलटवार के बाद चर्चा है कि बड़े अधिकारी फिर मौके की तलाश में हैं। चुप्पी की तारीफ राजनीति में नेता अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं। उनके बयान जैसे भी हो चर्चा में रहें इस पर ही विरोध और तारीफ होती है। मगर कुछ नेता ऐसे भी होते हैं जिनके न बोलने की ज्यादा चर्चा होती है और उनको अपने नेताओं से तारीफ भी मिलती है। ऐसे ही एक केंद्रीय मंत्री को हाल में न बोलने के लिए काफी तारीफ मिली है। यह नेता अक्सर अपने बयानों से सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में जब राजनीतिक बयान नहीं देने थे और अधिकृत बयान ही आने थे, तब इन नेताजी का धैर्य काफी काम आया और उनको अपने नेता से तारीफ भी मिली। इससे सभी खुश हैं। हालांकि, नेताजी के करीबियों का कहना है कि वे तो वही बोलते हैं जिसके लिए संकेत दिए जाते हैं। मुश्किल में प्रभारी कांग्रेस में इन दिनों एक प्रदेश प्रभारी के खिलाफ जबरदस्त शिकायतें आ रही हैं। ज्यादातर शिकायत इस प्रभारी के काम करने के तरीके को लेकर है। ऐसे में कांग्रेस मुश्किल में है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि किसी की शिकायत के दो कारण होते हैं। पहला यह कि वह बहुत अच्छा काम कर रहा है और पुराने मठाधीश नाराज हैं। दूसरा यह कि वह ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है और कार्यकर्ता नाराज हैं। इस मामले में मुश्किल यह है कि कार्यकर्ता और वर्षों से जमे पदाधिकारी दोनों शिकायत कर रहे हैं। इसके अलावा, मुश्किल यह भी है कि प्रभारी की शिकायत है कि उन्हें प्रदेश का समर्थन नहीं मिल रहा है। जिम्मेदारी से दूरी कांग्रेस में ऐसे नेताओं की सूची बहुत लंबी है, जिन्हें पद तो चाहिए लेकिन जिम्मेदारी से बचते हैं। एक नेता ने कहा कि आजकल ऐसे नेताओं पर नजर है, जो पार्टी के अंदर तो लंबी चौड़ी बातें करते हैं। पद पर भी काबिज हैं। लेकिन जब बात बाहर प्रदर्शन की आती है तो उनका रिकॉर्ड उस हिसाब से नहीं होता। इसके अलावा, ऐसे नेता भी हैं जो सक्षम होते हुए भी पार्टी को कोई योगदान देने के बजाय पार्टी के ही संसाधनों का भरपूर दोहन करते हैं। एक बड़े नेता ने कहा कि हमें समर्पित और अच्छा प्रदर्शन करने वालों को आगे बढ़ाना चाहिए लेकिन, इस बारे में बात तो खूब हुई लेकिन ऐसा कब हो पाएगा कोई नहीं जानता। नेताजी का सत्कार झारखंड में एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रदेश प्रभारी की एयरपोर्ट से लेकर पार्टी दफ्तर तक स्वागत और आवभगत करने में कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। खर्चा-पानी के लिए सदर के नुमाइंदे भी जेब में हाथ डालने से कतराने लगे हैं। यहां तक कह दिया है कि प्रभारी महोदय का आना-जाना यूं ही जारी रहा तो स्वागत-सत्कार में कठिनाई आ सकती है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी बड़े अफसर रहे हैं, उनके अंदाज में भी अफसर शाही की झलक देखने को मिल रही है। नेताजी बगलें झांक रहे हैं। सत्ता के गलियारों में तरह-तरह की बातें हो रही है। वाम परेशान बिहार में वाम दलों के शीर्ष नेतृत्व की स्थिति उस काजी की तरह हो गई है, जो शहर के अंदेशे से दुबले हुए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव का आगाज विपक्षी गठबंधन ने कई बैठकों से कर दिया है। जिलास्तर पर साझा कार्यक्रम और समन्वय टीम पर मंथन चल रहा है। पर, असल कौतूहल सीट बंटवारे को लेकर है। उम्मीदवारों का उत्साह हिलोरे मार रहा है। हालांकि, इससे पार्टी नेतृत्व हाफ रहा है। वाम के युवा नेताओं के सम्मान कार्यक्रम में शीर्ष नेता लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे, तभी पीछे खड़े एक सज्जन ने चुटकी ली कि खुद तो 20 वर्षों से लगातार एक पद पर बने हुए हैं। दल से ही लोकतंत्र गायब है। यह स्थिति बिहार में वामदलों में ही नहीं करीब-करीब सभी दलों में है। यानी दलों के भीतर लोकतंत्र महज कागजी है।
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