Global Food Crisis 300 Million Facing Severe Hunger in 53 Countries by 2024 भूख की चपेट में 53 देशों के करीब 30 करोड़ लोग, Delhi Hindi News - Hindustan
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भूख की चपेट में 53 देशों के करीब 30 करोड़ लोग

-वैश्विक खाद्य संकट रिपोर्ट में भारत का नाम शामिल नहीं नंबर गेम:: -1.37 करोड़

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 17 May 2025 03:26 PM
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भूख की चपेट में 53 देशों के करीब 30 करोड़ लोग

नई दिल्ली, एजेंसी। साल 2024 में दुनियाभर के 53 देशों में करीब 30 करोड़ लोग गंभीर भूख से जूझ रहे थे। यह संख्या 2023 की तुलना में 1.37 करोड़ अधिक है और लगातार छठा वर्ष है जब स्थिति और खराब हुई है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई ‘वैश्विक खाद्य संकट रिपोर्ट 2025 में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन देशों का विश्लेषण किया गया, उनमें लगभग 23 प्रतिशत आबादी को पर्याप्त और सुरक्षित भोजन नहीं मिल पाया। यह संकट कुछ महीनों का नहीं बल्कि लगातार बढ़ता हुआ एक वैश्विक आपातकाल बन चुका है। खास बात यह है कि भारत को इस रिपोर्ट में शामिल 53 देशों की सूची में नहीं रखा गया है।

इसका मतलब है कि रिपोर्ट के मानकों के अनुसार भारत में स्थिति इतनी गंभीर नहीं मानी गई कि उसे वैश्विक खाद्य संकट वाले देशों की श्रेणी में रखा जाए। संकट के मुख्य कारण 1. संघर्ष और हिंसा: 20 देशों में लगभग 14 करोड़ लोग इस वजह से भोजन संकट में फंसे। 2. प्राकृतिक आपदाएं: 18 देशों में अल नीनो की वजह से सूखा और बाढ़ आई, जिससे 9.6 करोड़ लोग प्रभावित हुए। 3. आर्थिक झटके: महंगाई और अन्य कारणों से 15 देशों में 5.94 करोड़ लोग भूख से पीड़ित हुए। 4. विस्थापन: करीब 9.5 करोड़ लोग जबरन विस्थापित हुए, जिनमें शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोग शामिल। बच्चों की हालत सबसे चिंताजनक रिपोर्ट बताती है कि 2024 में पांच साल से कम उम्र के लगभग 3.8 करोड़ बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हुए। यूनिसेफ प्रमुख कैथरीन रसेल ने कहा, एक समृद्ध दुनिया में बच्चों का भूख से मरना अक्षम्य है। यह उनकी गरिमा, सुरक्षा और भविष्य पर सीधा हमला है। सबसे भयावह स्थिति सूडान, गाजा पट्टी, दक्षिण सूडान, हैती और माली में है। 2025 में भी सुधार की उम्मीद कम रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 में हालात सुधरने की बजाय और खराब हो सकते हैं, क्योंकि मानवीय सहायता का बजट 45 प्रतिशत तक कम होने का खतरा है। इससे 1.4 करोड़ बच्चों के लिए पोषण सेवाएं खतरे में पड़ सकती हैं। मुख्य दानदाताओं द्वारा आर्थिक सहयोग कम किए जाने से सहायता कार्यक्रमों का संचालन बाधित हो रहा है।

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