दिल्ली में DSFDC कर्मचारियों को सालभर से नहीं मिलगी सैलरी, अब उपराज्यपाल ने जारी किया फंड
- उपराज्यपाल ने कहा कि निगम के पास अपना कोई कोष भी नहीं है और यह एफडीआर और खुद की सम्पत्तियों को किराए पर देने से प्राप्त होने वाली आय से ही चल रहा है।
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने सालभर से वेतन के लिए तरस रहे DSFDC (दिल्ली अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम) के कर्मचारियों को वेतन देने के लिए अनुदान जारी करने को मंजूरी दे दी है। विभाग के कर्मचारियों को पिछले साल जनवरी से वेतन नहीं मिला है। इस बारे में राज निवास की ओर से मंगलवार को जारी बयान में बताया गया कि यह मंजूरी सोमवार को दी गई।
इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए उपराज्यपाल ने इस निगम की मौजूदा स्थिति के लिए आम आदमी पार्टी की सरकार को जिम्मेदार बताया और इसे लेकर उसकी आलोचना की, साथ ही अब बंद हो चुके इस निगम के पुनरुद्धार के लिए सरकार से ठोस योजना बनाने को भी कहा है।
राज निवास की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि एक समय पर जब DSFDC (दिल्ली अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम) मजबूत स्थिति में था, तब वो सबसे हाशिए पर पड़े एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यकों और शारीरिक रूप से विकलांग लोगों के उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करता था।
उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बयान में कहा, 'मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यकों और विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने और लक्षित समूह को उनके आर्थिक उत्थान के लिए सहायता प्रदान करने के लिए बनाई गई DSFDC के पास जनवरी, 2024 से बकाया अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं हैं।'
उपराज्यपाल ने कहा कि निगम के पास अपना कोई कोष भी नहीं है और यह एफडीआर और खुद की सम्पत्तियों को किराए पर देने से प्राप्त होने वाली आय से ही चल रहा है। उन्होंने कहा कि निगम के कर्मचारियों को अपना वेतन पाने के लिए कई बार मेरे पास गुहार लगाने और हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सक्सेना ने कहा कि यह और भी ज्यादा परेशान करने वाली बात है कि अन्य कई मामलों की तरह दिल्ली उच्च न्यायालय को इस स्थिति के लिए दिल्ली सरकार को ही जिम्मेदार ठहराते हुए आदेश पारित करना पड़ा तथा उसे वेतन भुगतान करने का निर्देश देना पड़ा।
उन्होंने कहा, 'मैंने निगम से संबंधित फाइल में मौजूद तथ्यों का अध्ययन किया है और पिछले एक दशक में इसकी गिरावट देखने से पता चलता है कि समाज के सबसे हाशिए पर पड़े वर्गों जैसे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और विकलांग लोगों की मदद करने के लिए बनाए गए एक सरकारी उपक्रम की घोर उपेक्षा और जानबूझकर कुशासन की कहानी सामने आई है।'
सक्सेना ने अपने बयान में बताया कि 'साल 2011-2012 तक DSFDC के पास पर्याप्त मात्रा में फंड की उपलब्धता थी और उसकी वित्तीय स्थिति मजबूत थी। उस वक्त निगम की आय उसके व्यय से कहीं अधिक थी। हालांकि वर्तमान आय मात्र 5.61 करोड़ रुपए बताई गई है, जबकि वार्षिक व्यय 17 करोड़ रुपए (लगभग) है।'