BJP ने दिल्ली में इस रणनीति के तहत 2% वोट बढ़ाकर मारा मोर्चा, मोदी मैजिक का भी रहा सहारा
दिल्ली के दंगल में भाजपा के दो फीसदी मतों का दांव आम आदमी पार्टी पर भारी पड़ा। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) से करीब दो फीसदी मत ज्यादा हासिल किए, लेकिन सीटें दोगुने से ज्यादा जीत लीं।

दिल्ली के दंगल में भाजपा के दो फीसदी मतों का दांव आम आदमी पार्टी पर भारी पड़ा। भाजपा ने विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) से करीब दो फीसदी मत ज्यादा हासिल किए, लेकिन सीटें दोगुने से ज्यादा जीत लीं।
धुआंधार कैंपेन, आप की विश्वसनीयता पर सवाल और सभी वर्गों को साधकर भाजपा ने दिल्ली की सत्ता में वापसी की है। मोदी मैजिक इसमे बड़ा सहारा साबित हुआ है। इसके साथ स्थानीय नेताओं ने भी विधानसभावार रणनीति तैयार की। छोटे-छोटे वर्गों को साधने की कवायद की गई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 45.56 फीसदी वोट लेकर 48 सीटें जीती हैं। उधर आम आदमी पार्टी 43.57 प्रतिशत मत पाकर 22 सीट जीत पाई। ‘आप’ के अधिकांश दिग्गज चुनाव में हार गए।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता कहते हैं कि निगम चुनाव में 40 फीसदी वोट मिलने के बाद ही पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गई थी। बूथ मैनेजमेंट से लेकर बड़े मुद्दों को उठाने में भाजपा आगे रही। भाजपा ने ‘आप’ को उसी कि दिल्ली मॉडल और विकास पर घेरना शुरू किया।

यमुना का मुद्दा हो या प्रदूषण का विषय, भाजपा ने सड़कों पर इन्हें उठाया। ‘आप’ के भ्रष्टाचार पर भाजपा के आलाकमान और स्थानीय नेताओं ने जमकर चोट की। इसकी काट ईमानदारी के नाम पर सरकार बनाने वाली ‘आप’ के पास नहीं थी। टिकट वितरण में भाजपा में किसी तरह का असंतोष नहीं देखा गया। दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया गया, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं को भी बड़े नेताओं ने समझाया।
करावल नगर से मोहन सिंह बिष्ट का टिकट काटकर कपिल मिश्रा को दिया गया। बाद में मोहन सिंह को मुस्तफाबाद से लड़ाने का फैसला लिया गया। भाजपा दोनों सीटें जीत गई है। इसी तरह सीएम पद का चेहरा घोषित नहीं करने की रणनीति भी भाजपा के लिए फायदेमंद रही। ‘आप’ ने कई बार इस मुद्दे को उठाया तो भाजपा ने सामूहिक नेतृत्व का हवाला दिया। केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को दिल्ली में लागू नहीं करने का मुद्दा भाजपा ने प्रभावी ढंग से उठाया।
आरएसएस से रहा बेहतर तालमेल : दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा और आरएसएस का बेहतर तालमेल मैदान पर नजर आया। ‘आप’ सरकार की नाकामी को आरएसएस के नेटवर्क ने नीचे तक पहुंचाया। घर-घर जाकर दस्तक दी और ‘आप’ को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरा। मत प्रतिशत बढ़ाने, झुग्गी बस्तियों को साधने में संघ की भूमिका अहम रही। बेहतर तालमेल का नतीजा दिल्ली विधानसभा चुनाव में दिखाई दिया।
दूर हुआ दिल्ली नहीं जीतने का दर्द
भाजपा देश के अलग-अलग हिस्सों में चुनाव जीत रही थी, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों में वह 27 वर्ष से हार का सामना कर रही थी। भाजपा ने बीते तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन विधानसभा चुनावों में वह हार जाती थी। भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ केंद्रीय नेतृत्व को भी दिल्ली नहीं जीतने का दर्द था। इस बार केंद्रीय नेतृत्व ने पूरा दम लगाया। ‘आप’ पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोपों को भाजपा ने जोरदार तरीके से उठाया और दिल्ली फतह कर ली।