क्यों 1971 के फॉर्मूले पर अटके हैं साउथ के राज्य, परिसीमन पर बढ़ता जा रहा डर
Delimitation Row: कुछ सर्वे में यह भी अनुमान जताया गया है कि नवीनतम जनगणना के आधार पर, लोकसभा सीटों में दक्षिण भारत का हिस्सा घटकर 19% रह सकता है, जबकि उत्तर भारत का हिस्सा बढ़कर करीब 60% तक हो जा सकता है।

Delimitation Row: लोकसभा सीटों के परिसीमन का मुद्दा दक्षिणी राज्यों को परेशान कर रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने इस मुद्दे पर केंद्र पर दबाव बढ़ाते हुए बुधवार को सर्वदलीय बैठक की और प्रस्ताव दिया कि 1971 की जनगणना को आधार बनाकर 2026 से अगले 30 वर्षों के लिए संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाना चाहिए। उन्होंने सभी दक्षिणी राज्यों को शामिल करते हुए एक संयुक्त कार्रवाई समिति (JAC) का गठन करने का भी प्रस्ताव रखा है। चेन्नई में हुई इस बैठक में डीएमके के अलावा मुख्य विपक्षी पार्टी AIADMK, कांग्रेस, वामपंथी दल और अभिनेता से नेता बने विजय की तमिलगा वेट्री कषगम (टीवीके) सहित अन्य पार्टियों ने हिस्सा लिया जबकि, भाजपा, नाम तमिलर काची (एनटीके) और पूर्व केंद्रीय मंत्री जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) ने इस बैठक का बहिष्कार किया।
स्टालिन ने कहा कि परिसीमन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में इसका आश्वासन देना चाहिए। स्टालिन द्वारा पेश प्रस्ताव के मुताबिक, जेएसी ऐसी मांगों को आगे बढ़ाएगी और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करेगी। बैठक में जनसंख्या के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया का सर्वसम्मति से विरोध किया गया और कहा गया कि यह संघवाद और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के दक्षिणी राज्यों के अधिकारों के लिए खतरा होगा। प्रस्ताव में यह कहा गया है कि तमिलनाडु परिसीमन के खिलाफ नहीं है लेकिन संसद में राज्य का वर्तमान प्रतिनिधित्व 7.18 फीसदी है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं बदला जाना चाहिए।
परिसीमन पर विवाद क्या?
प्रस्तावित परिसीमन पर तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर हालिया नवीनतम जनगणना के आंकड़ों पर संसदीय सीटों का परिसीमन हुआ तो जनसंख्या के अनुपात में उनके राज्यों की लोकसभा सीटें घट सकती हैं, जबकि उत्तर भारत खासकर हिन्दी पट्टी के राज्यों में संसदीय सीटों की संख्या बढ़ सकती है। ऐसा इसलिए कि दक्षिणी राज्यों ने विगत कुछ दशकों में जनसंख्या पर आनुपातिक और प्रभावी नियंत्रण पाया है, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में यह अपेक्षाकृत कम रहा है। दक्षिणी राज्यों को इस बात की आशंका है कि अगर नई जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ तो संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा, इससे न सिर्फ उन्हें जनसरोकार के मुद्दे संसद में उठाने के कम अवसर प्राप्त होंगे बल्कि आर्थिक सहायता में भी उनकी हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
दक्षिणी राज्यों की चिंता और गृह मंत्री का आश्वासन
हालांकि, इन चिंताओं को निर्मूल बताते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था कि आनुपातिक आधार पर किए गए परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटें कम नहीं होंगी। बावजूद इसके कई विश्लेषणों का हवाला देते हुए, दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्रियों का कहना है कि अगर परिसीमन नवीनतम जनगणना पर आधारित होगा, तो उनके राज्यों को हर हाल में नुकसान उठाना पड़ेगा। उनका यह भी तर्क है कि अगर लोकसभा सीटों की संख्या में कमी नहीं हुई और स्थिरता बनी रही, तब भी उत्तरी राज्यों को इसका लाभ मिलेगा और उनकी सीटें बढ़ जाएगी। यही वजह है कि दक्षिणी राज्य 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन चाहते हैं।
कब-कब हुए परिसीमन?
देश में इससे पहले परिसीमन आयोग ने 1952, 1962, 1972 और साल 2002 में परिसीमन किए गए थे। लोकसभा में सांसदों की वर्तमान संख्या (543) 1971 की जनगणना पर ही आधारित है। उसके बाद से परिसीमन नहीं हो सका है क्योंकि संविधान के 42वें संशोधन ने 2001 तक 25 वर्षों के लिए परिसीमन को रोक दिया था बाद में इसे फिर से 25 सालों तक यानी 2026 तकके लिए बढ़ा दिया गया था। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत, परिसीमन के लिए केवल 2026 के बाद की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग किया जा सकता है। बता दें कि कोविड महामारी की वजह से सरकार ने 2021 में होने वाली जनगणना स्थगित कर दी थी। लिहाजा, परिसीमन अभ्यास के लिए, सरकार को दशकीय जनगणना करना पड़ सकता है।
किस राज्य में कितनी घट सकती हैं सीटें?
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कुछ स्टडीज के आधार पर कहा गया है कि अगर अगला परिसीमन 2021 या 2031 की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है तो तमिलनाडु की मौजूदा लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 हो जा सकती हैं। इसी तरह कर्नाटक की लोकसभा सीटें 28 से 26, आंध्र प्रदेश की 42 से 34, केरल की 21 से 12 सीटें हो सकती हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में जनसंख्या बढ़ोत्तरी की वजह से लोकसभा सीटें बढ़ सकती हैं।
कुछ सर्वे में यह भी अनुमान जताया गया है कि नवीनतम जनगणना के आधार पर, लोकसभा सीटों में दक्षिण भारत का हिस्सा घटकर 19% रह सकता है, जबकि उत्तर भारत का हिस्सा बढ़कर करीब 60% तक हो जा सकता है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के लिए राजनीतिक वैज्ञानिक मिलन वैष्णव द्वारा 2019 में किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि जनसंख्या का आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए 2026 के परिसीमन में लोकसभा सीटों को 543 से बढ़ाकर 848 करना होगा, ताकि कोई भी राज्य वंचित न रह सके।
क्या हो सकता है समाधान?
कुछ जानकारों का कहना है कि 1971 की जनसंख्या का तर्क भी इस समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि जनसंख्या आगे भी बढ़ती रहेगी और इस तरह की मांग उठती रहेगी। इसलिए प्रो रेटा आधार पर एक फॉर्मूला बनाया जाना चाहिए क्योंकि सभी राज्यों की जनसंख्या अलग-अलग है। उनके मुताबिक जिन राज्यों में ज्यादा जनसंख्या है, वहां 20-25 लाख की आबादी को आधार बनाया जा सकता है , जबकि कम आबादी वाले राज्यों में 10 लाख को आधार बनाया जा सकता है। हालांकि, लद्दाख जैसे दुर्गम इलाके हर हाल में अपवाद रहेंगे।