संगम नोज क्या है, महाकुंभ में वहां जाने की क्यों थी होड़; अमृत स्नान से क्या कनेक्शन
Mahakumbh Stampede: ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर संगम नोज पर अमृत स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
Mahakumbh Stampede: प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या के मौके पर संगम क्षेत्र में बुधवार तड़के अमृत स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के पहुंचने से भगदड़ मच गई, जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 60 अन्य लोग घायल हुए हैं। बताया जा रहा है कि रात करीब 1 से 2 बजे की बीच बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ संगम नोज की ओर बढ़ी, जहां पहले से अखाड़ा मार्ग पर सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे और अमृत स्नान के लिए ब्रह्म मुहूर्त का इंतजार कर रहे थे, तभी दूसरी तरफ से आई भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और कूदकर भागने लगे इससे वहां भगदड़ मच गई और रास्ते में आराम कर रहे श्रद्धालुओं पर भीड़ चढ़ गई।
संगम नोज क्या है
प्रयागराज में संगम नोज वह जगह है, जहां गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती नदी की मिलन होता है। इसे त्रिवेणी भी कहते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसका आकार नाक (Nose) की तरह है। इसलिए इस संगम क्षेत्र को संगम नोज कहा जाता है। यह त्रिकोणात्मक है। यहां उत्तर दिशा से गंगा की अविरल धारा बह रही होती है, तो दूसरी तरफ दक्षिण दिशा से यमुना की धारा गंगा में मिलने का आतुर दिखती है। संगम नोज पर दोनों नदियों के पानी का रंग अलग-अलग होता है। गंगा का पानी हल्का मटमैला दिखता है, जबकि यमुना का पानी हल्का नीला दिखता है। यहां से यमुना की यात्रा समाप्त हो जाती है और वह गंगा में विलीन हो जाती है।
संगम नोज पर जाने की होड़ क्यों?
4000 हेक्टेयर में फैले और 25 सेक्टर में बंटे महाकुंभ परिसर में गंगा और यमुना के मिलन क्षेत्र को संगम तट भी कहा जाता है। कुंभ में अमृत स्नान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या पर संगम नोज पर अमृत स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। एक मान्यता यह भी है कि इस दिन संगम नोज पर पानी नहीं, अमृत का प्रवाह हो रहा होता है। इसलिए, उस अवसर पर वहां स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। इसके अलावा मौनी अमावस्या पितरों को समर्पित होती है, इसलिए भी लोग अपने पितरों के तर्पण के लिए संगम तट पर स्नान करना चाहते हैं।
संगम तट पर कटाव होने की वजह से हर साल घाट का आकार बदलता रहता है। यह ढलानयुक्त क्षेत्र भी है, जहां बड़ी संख्या में बालू की बोरियां लगाई गई थीं। ताकि श्रद्धालु गंगा में गिरने से बच सकें। इस बार सरकार ने संगम नोज तट पर 2000 हेक्टेयर का अतिरिक्त विस्तार भी किया था। बावजूद इसके वहां जगह कम पड़ गई और ऐसा भयानक हादसा हुआ।
अखाड़ों से क्या कनेक्शन?
कुंभ, महाकुंभ, मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, शाही स्नान या अन्य पवित्र गंगा स्नान के मौकों पर संगम नोज पर साधु-संतों के अलग-अलग अखाड़ों के गंगा स्नान की पुरानी परंपरा रही है। इसलिए, वहां संगम नोज तक पहुंचने के लिए अखाड़ा मार्ग बनाया जाता है और उसकी बैरिकेडिंग की जाती है। इस मार्ग पर आम श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित होता है। इस मार्ग से साधु-संत जाते हैं और और अमृत स्नान करते हैं। आम जनों की सुविधा के लिए मेला प्रशासन ने वहां त्रिवेणी मार्ग भी बनाया था लेकिन भीड़ ज्यादा होने की वजह से बैरिकेडिंग तोड़ दी गई और भगदड़ मच गई।