लहसुन-प्याज पर सुप्रीम कोर्ट में संग्राम, कैंटीन में नवरात्रि मेन्यू के खिलाफ वकीलों ने खोला मोर्चा
वकीलों ने इस फैसले को अभूतपूर्व और भविष्य के लिए समस्या पैदा करने वाला बताया है और इससे नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्षों को पत्र लिखकर इसे पलटने की मांग की है।
आज से नौ दिवसीय नवरात्रि की शुरुआत हुई है। इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट कैंटीन ने नवरात्रि मेन्यू जारी किया है, जिस पर हंगामा खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह ने कैंटीन के उस फैसले पर नाराजगी और चिंता जताई है, जिसमें नौ दिनों तक कैंटीन में सिर्फ नवरात्रि मेन्यू के तहत बिना लहसुन-प्याज से बने खाना दिए जाने की बात कही गई है। कैंटीन के मेन्यू के मुताबिक इस दौरान मांसाहारी चीजें, प्याज, लहसुन, दाल और अनाज से बना या उसमें मिला हुआ खाना नहीं दिया जाएगा।
वकीलों ने इस फैसले को अभूतपूर्व और भविष्य के लिए संभावित रूप से समस्या पैदा करने वाला बताया है और इससे नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्षों को पत्र लिखकर इस फैसले को पलटने की मांग की है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक इस चिट्ठी में कहा गया है, "सुप्रीम कोर्ट के वकील लगातार नवरात्रि का त्योहार मनाते आ रहे हैं। वे बिना किसी परेशानी के 9 दिनों के लिए घर से ही अपना विशेष भोजन लाते रहे हैं। इस साल ऐसा पहली बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट कैंटीन ने घोषणा की है कि वह केवल नवरात्रि का भोजन ही परोसेगी। यह न केवल अभूतपूर्व है बल्कि भविष्य के लिए एक बहुत ही गलत मिसाल स्थापित करेगा।"
चिट्ठी में वकीलों ने कहा है कि वे अपने सहकर्मियों द्वारा नवरात्रि के पालन का सम्मान करते हैं, लेकिन इसे उन लोगों पर नहीं थोपा जाना चाहिए जो दैनिक भोजन के लिए कैंटीन पर निर्भर हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह कदम भारत की बहुलतावादी परंपराओं के खिलाफ है। वकीलों ने इस बात को लेकर चेतावनी भी दी है कि इस तरह के प्रतिबंधों की अनुमति देने से भविष्य में और अधिक प्रतिबंध लगाने का रास्ता खुल जाएगा।
वकीलों ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, "कुछ लोगों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए मांसाहारी या प्याज-लहसुन वाला भोजन न परोसना ना केवल हमारी बहुलतावादी परंपराओं के खिलाफ है बल्कि इससे एक-दूसरे की परंपराओं के प्रति विश्वास और सम्मान में कमी आएगी। एक बार जब इसकी अनुमति दे दी जाती है, तो यह कई अन्य प्रतिबंधों के लिए भी द्वार खोल देगा।"
वकीलों ने एससीबीए और एससीएओआरए से इस मामले में हस्तक्षेप करने और कैंटीन से अपने सामान्य मेन्यू को बहाल करने का अनुरोध करने का आग्रह किया है। चिट्ठी में यह भी गुजारिश की गई है कि त्योहार मनाने वालों के लिए नवरात्रि मेनू का भी एक विकल्प रखा जाए, इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन नवरात्र के नाम पर हमारे लिए कैंटीन का रास्ता बंद करना दुखद है।