क्या चमक खो रहा है बेंगलुरु, दुनिया में कमजोर होगा आईटी सिटी का दर्जा; बाढ़ ने उठा दिए सवाल
बागों, झीलों और ठंडे मौसम वाला शहर बेंगलुरू 1990 के दशक में भारत का सबसे तेजी से उभरता शहर बना। उसने अमेरिका की सिलिकॉन वैली को चुनौती दी और भारत के लिए आर्थिक केंद्र बनाकर लाखों को रोजगार दिया।
भारत की सिलिकॉन वैली कहे जाने वाले बेंगलुरु में पिछले दिनों भारी बारिश के चलते बाढ़ के हालात बन गए थे। कई हाईप्रोफाइल इलाके डूब गए थे और प्रोफेशनल्स को ट्रैक्टरों पर बैठकर ऑफिस जाते देखा गया था। इससे यह सवाल भी खड़ा हुआ कि क्या बेंगलुरु का इन्फ्रास्ट्रक्चर खराब है और वह बारिश की मार भी नहीं झेल सकता। बागों, झीलों और ठंडे मौसम वाला शहर बेंगलुरू 1990 के दशक में भारत का सबसे तेजी से उभरता शहर बना। उसने अमेरिका की सिलिकॉन वैली को चुनौती दी और भारत के लिए आर्थिक केंद्र बनाकर लाखों लोगों को रोजगार दिया। तभी दुनिया की कुछ सबसे बड़ी आईटी कंपनियों ने यहां डेरा डाला और अपना अरबों का कारोबार खड़ा किया।
इस तरक्की की कीमत कम नहीं थी। कंक्रीट ने हरियाली की जगह ले ली है। जंगलों और झीलों को इमारतों ने हड़प लिया है और नहरों के पानी में शहर की बढ़ती आबादी की प्यास बुझाने की क्षमता नहीं रही। पिछले हफ्ते बेंगलुरू में बारिश हुई, जिसने दशकों के रिकॉर्ड तो तोड़े ही साथ ही शहर की क्षमताएं भी तोड़ डालीं। येलामूर का इलाका कमर तक के पानी में डूबा हुआ था। भारत की सिलिकॉन वैली के नाम से मशहूर शहर के कई इलाकों की हालत ऐसी थी कि दुनियाभर के लोग तस्वीरें देखकर हैरान थे। गर्मियों में पानी की कमी से परेशान रहने वाले बेंगलुरू के लोगों को अब हर मौसम में मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं। ऊपर से शहर का ट्रैफिक इतना बढ़ गया है कि सारी व्यवस्थाएं धराशायी हो रही हैं।
ऐसे में मॉनसून की बारिश ने इस बात को उघाड़ कर रख दिया है कि बेंगलुरू का ढांचा चरमरा चुका है और पिछले दो दशकों के बेसिरपैर के विकास ने इस इलाके की कुदरती क्षमताओं का दोहन कर उन्हें नष्ट करने का ही काम किया। बेंगलुरू में जन्मे और अब मुंबई में रहने वाले पुल्लानूर कहते हैं, 'यह बहुत, बहुत ज्यादा दुखी करने वाली बात है। पेड़ खत्म हो गए हैं। पार्क लगभग गायब हो चुके है। ट्रैफिक तो ऐसा है कि जैसे गर्दन दबोच ली गई हो।'
बेंगलुरु के हालात से चिंतित हैं कंपनियां
जिन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने कभी बेंगलुरू को अपना ठिकाना बनाया था अब वे शिकायत करने लगी हैं कि ढांचे के कारण उनका कामकाज प्रभावित हो रहा है और हालत लगातार बदतर हो रही है। इन कंपनियों का कहना है कि खराब व्यवस्था के चलते उन्हें रोजाना दसियों करोड़ डॉलर का नुकसान होता है। बेंगलुरु में 79 टेक-पार्क हैं जिनमें लगभग 3,500 आईटी कंपनियां काम करती हैं। भारत के सबसे होनहार आईटी एक्सपर्ट और इंजीनियर यहां काम करते हैं। यहीं उनके शानदार दफ्तर हैं और मनोरंजन करने के लिए रेस्तरां, कैफे, बाजार आदि भी।
शानदार दफ्तरों तक पहुंचना हुआ मुश्किल, घरों को छोड़ना पड़ गया
लेकिन पिछले हफ्ते जब पानी बरसा तो इन शानदार दफ्तरों तक पहुंचना दूभर हो गया। येलामूर में जेपी मॉर्गन और डेलॉयट जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर हैं जिनके इर्द-गिर्द पानी के विशाल तालाब बन गए थे। लोगों के घरों, बेडरूम तक में पानी भर गया था। करोड़पतियों को अपने विशाल और शानदार लिविंग रूम छोड़-छोड़ कर भागना पड़ा। इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि इस बारिश के कारण नुकसान का शुरुआती जायजा ही दसियों करोड़ रुपये का है और आने वाले दिनों में यह संख्या और बढ़ती जाएगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई बेंगलुरु की चर्चा
इन कुछ दिनों की बारिश का असर सिर्फ बेंगलुरू पर नहीं हुआ। लोगों को चिंता है कि 194 अरब डॉलर की भारतीय आईटी इंडस्ट्री पूरी दुनिया से जुड़ी है लिहाजा असर पूरी दुनिया पर होगा। नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) के उपाध्यक्ष केएस विश्वनाथन कहते हैं, 'भारत दुनियाभर की कंपनियों के लिए आईटी केंद्र है और बेंगलुरु उस केंद्र का भी केंद्र है।' विश्वनाथन बताते हैं कि नैसकॉम 15 ऐसे नए शहरों की पहचान में जुटा है जो देश के नए आईटी हब बन सकते हैं. वह बताते हैं, 'यह कोई शहरों के बीच मुकाबले की बात नहीं है। एक देश के तौर पर हम इसलिए कमाई खोना नहीं चाहते कि शहर का मूलभूत ढांचा कमजोर है।'