फिर गठबंधन बनाया ही क्यों था, जब... दिल्ली की हार से कांग्रेस-आप पर भड़के INDIA के एक और साथी
आलेख में इस बात का जिक्र है कि 14 सीटों पर ‘आप’ की हार में कांग्रेस का योगदान रहा है। यही कहानी हरियाणा में भी हुई थी।

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप की हार और सत्ता से विदाई पर इंडिया गठबंधन के एक और सहयोगी ने चिंता जताई है और कहा है कि यह हार आप और कांग्रेस के अंहकार की लड़ाई की नतीजा है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बाद अब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (UBT) चीफ उद्धव ठाकरे ने भी इस हार के लिए दोनों दलों के अहंकार और सियासी शत्रुता को जिम्मेदार ठहराया है।
शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपाकीय में 'अन्ना, उमर और अमृतकाल…लड़ो जी भर के!' शीर्षक से लिए आलेख में कहा गया है कि दिल्ली और महाराष्ट्र में विपक्षी दलों के बीच फूट और कलह ने सीधे तौर पर भाजपा को चुनाव जीतने में मदद की है। संपादकीय में कहा गया है कि दिल्ली में आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे भाजपा के लिए जीत आसान हो गई।
संपादकीय में लिखा गया है, "अगर इसी तरह काम करना है तो गठबंधन वगैरह क्यों बनाया जाए? जी भर के लडो़! महाराष्ट्र के बाद दिल्ली के नतीजों से भी अगर कोई सबक नहीं लेता तो तानाशाह की जीत में योगदान देने का पुण्य ले लो और उसके लिए गंगा स्नान की भी जरूरत नहीं पड़ेगी!"
संपादकीय में यह भी कहा गया है कि उमर ठीक ही कहते हैं, "आपस में जी भर के लड़ो और एक-दूसरे को खत्म करो।" आलेख में इस बात का जिक्र है कि 14 सीटों पर ‘आप’ की हार में कांग्रेस का योगदान रहा है। यही कहानी हरियाणा में भी हुई थी। आलेख में यह सवाल भी उठाया गया है कि आखिर ‘आप’ से लड़ने के बाद कांग्रेस को क्या हासिल हो गया? शिवसेना ने इस बात पर ऊंगली उठाई है कि क्या कांग्रेस पार्टी में कोई छिपी हुई ऐसी ताकत है, जो हमेशा राहुल गांधी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहती है? अगर कांग्रेस नेता यह कह रहे हैं कि आप को जिताना कांग्रेस की जिम्मेदारी नहीं है तो यह गलती है और एक तरह का अहंकार है।
संपादकीय में अन्ना हजारे पर भी निशाना साधा गया है और कहा गया है कि अन्ना ने चुनाव के दिन लोगों से अपील की कि आप को वोट ना दें तो क्या वह जिस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और जिससे आम आदमी पार्टी जन्मी, उसके उद्देश्य भाजपा पूरे कर रही है। क्या भाजपा के शासनकाल में भ्रष्टाचार खत्म हो गया है? क्या अन्ना हजारे को नहीं दिखता कि भ्रष्ट पैसे के दम पर थोक में दल परिवर्तन चल रहा है? फिर राफेल से लेकर हिंडनबर्ग तक कई घोटाले सामने आने के बाद भी अन्ना हजारे ने उफ तक क्यों नहीं कर रहे? आलेख में लिखा गया है कि ऐसा लगता है मानो मोदी के राज में विचार और चरित्र की बाढ़ ही आ गई है और उस सैलाब में महाराष्ट्र में ठाकरे और दिल्ली में केजरीवाल के राज बह गए। इंसान ढोंग करे भी तो कितना?