जज से मनमाफिक फैसला करवाने के लिए वकील ने क्लाइंट से ऐंठे 7 करोड़, अब SC में क्यों लगा रहे गुहार
हाई कोर्ट जज ने अपने फैसले में लिखा कि यह आरोप कि इस कोर्ट के जजों को रिश्वत देने के लिए धन प्राप्त किया गया था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर संदेह पैदा करता है और इसका अर्थ है कि न्याय बिकाऊ है।
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तेलंगाना हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक वरिष्ठ वकील पर आरोप है कि उन्होंने हाई कोर्ट जज को घूस देकर उनसे मनमाफिक फैसला लिखवाने के एवज में अपने मुवक्किल से सात करोड़ रुपये वसूले हैं। अब वह वकील पुलिसिया कार्रवाई में फंस गए हैं। आरोपी वरिष्ठ वकील वेदुला वेंकटरमन ने इस मामले में राहत के लिए अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका तर्क है कि उनके खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी में प्रथम दृष्टया कोई सबूत ना होकर केवल आरोप हैं और वह अस्पष्ट और सामान्य हैं। इसलिए प्राथमिकी खारिज की जाय।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट द्वारा इस मामले को रद्द करने से इनकार करने के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा दायर अपील अर्जी पर तेलंगाना सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब दाखिल करने को कहा है।
प्राथमिकी के अनुसार, वरिष्ठ वकील वेंकटरमन पर आरोप है कि उन्होंने एक मुवक्किल से 7 करोड़ रूपये लिए थे ताकि उस रकम को हाई कोर्ट के जज को बतैर घूस दे सकें और मुवक्किल के मामले में जज से फैसला अपनी मर्जी के मुताबिक लिखवा सकें। आरोप है कि वेंकटरमन उस मुवक्किल के मामले में पेश ही नहीं हुए और जब शिकायतकर्ता ने भुगतान की गई रकम वापस मांगी तो तो वेंकटरमन ने उसे देने से इनकार कर दिया। बार एंड बेंच की रिपोर्ट में कहा गया है कि उस मुवक्किल ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया है कि वकील वेंकटरमन ने उसे जाति सूचक गालियां भी दीं और परिजनों को नुकसान पहुंचाने की धमकी भी दी।
इस शिकायत के आधार पर वकील वेंकटरमन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी), 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करवाने के लिए वेंकटरमन ने तेलंगाना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन वहां उन्हें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने यह कहकर उनकी अर्जी खारिज कर दी कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर हैं और उसकी जांच होनी चाहिए।
हाई कोर्ट जज ने अपने फैसले में लिखा कि यह आरोप कि इस कोर्ट के जजों को रिश्वत देने के लिए धन प्राप्त किया गया था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर संदेह पैदा करता है और इसका अर्थ है कि न्याय बिकाऊ है। ऐसे गंभीर आरोपों की जांच की जानी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने वकील को मामले में गिरफ्तारी से राहत दे दी थी। अब हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ वकील वेंटकरमन ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई है।