बेघर लोगों के लिए क्या इंतजाम, दिल्ली में शेल्टर होम्स पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल, मांगी डिटेल
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) से पूछा है कि राष्ट्रीय राजधानी में जाड़े के मौसम में बेघर लोगों के लिए क्या इंतजाम हैं। विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट…
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) से राष्ट्रीय राजधानी में जाड़े के मौसम में बेघर लोगों के लिए उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी मांगी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के आश्रय के अधिकार से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड से शेल्टर होम्स में रहने वाले लोगों की संख्या और जरूरतमंद लोगों का विस्तृत विवरण देने के निर्देश दिए।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें बताया गया था कि बेघर लोगों के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं क्योंकि नौ शेल्टर होम्स को ध्वस्त कर दिया गया है। इनकी क्षमता 286 की थी पर इनमें रह 450 लोग रहे थे। अधिकारियों ने अदालत की अनुमति के बिना 5 और शेल्टर होम्स को बंद कर दिया।
सुनवाई के दौरान दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के वकील ने कहा कि 2023 में यमुना नदी में आई बाढ़ के कारण छह अस्थायी शेल्टर होम्स नष्ट हो गए और जून 2023 से वहां कोई नहीं रहता है। ऐसे में यदि उस क्षेत्र के बेघर लोगों को गीता कॉलोनी में एक स्थायी शेल्टर होम में स्थानांतरित किया जा रहा है तो आवेदक को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने इस मामले में समय-समय पर कई आदेश पारित किए हैं। ध्वस्त किए गए नौ शेल्टर होम्स के लिए वैकल्पिक प्रावधान किए बिना वे शेल्टर होम्स के लोगों को स्थानांतरित करना चाहते हैं क्योंकि उनमें चूहे आदि का आतंक था।
इस पर जस्टिस गवई ने पूछा- दिल्ली में शेल्टर होम्स की कुल क्षमता कितनी है। प्रतिवादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने जवाब दिया कि लगभग 17000 लोगों को रखा जा सकता है। ऐसे में मुझे समझ में नहीं आता कि लोगों को स्थायी शेल्टर होम में स्थानांतरित करने पर क्या आपत्ति है। हर मंजिल पर हम 100 बिस्तर दे सकते हैं।
अधिवक्ता कामत ने आगे कहा- जिस शेल्टर होम में हम स्थानांतरित करने का सुझाव दे रहे हैं वहां चार मंजिलें हैं। वहां पहले से ही कुछ परिवार रह रहे हैं। दो मंजिलों पर लगभग 200 लोगों को रखा जा सकता है। स्वास्थ्य और स्वच्छता बेहतर है। क्षेत्रफल भी ज्यादा है।
इस पर अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के निदेशक (पीके झा) ने कहा कि हम आपको इन आश्रय गृहों को चलाने के लिए तभी पैसे देंगे जब आप इन लोगों को हटा देंगे। उन्होंने लोगों से कहा कि हम आपको कुत्तों की तरह शिकार करेंगे। उन पर आरोप-पत्र दायर किया गया है। उन्होंने नौ शेल्टर होम्स को ध्वस्त करने की निगरानी की।
अधिवक्ता भूषण ने आगे कहा कि सीबीआई ने इसी शिकायत के आधार पर एक अन्य अधिकारी को गिरफ्तार किया है। उन्होंने रिश्वत मांगी थी। इस पर जस्टिस गवई ने पूछा- प्राथमिकी में झा का नाम कहां है। अधिवक्ता भूषण ने जवाब दिया कि यह प्राथमिकी में नहीं वरन शिकायत में है। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि श्री भूषण, यह आपके लिए उचित नहीं है। दस्तावेजों की पुष्टि किए बिना आप ऐसा नहीं कह सकते। यह चरित्र हनन के समान है। यह किसी की प्रतिष्ठा को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। सत्यापन में उनके नाम का कोई उल्लेख नहीं है।
न्यायमूर्ति गवई ने वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत से कहा- आप हमें सुविधाओं के बारे में विवरण दें। कितने लोगों को शेल्टर होम दिया जा सकता है। इसके बाद पीठ ने डीयूएसआईबी को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। इसमें जानकारी होनी चाहिए कि क्या डीयूएसआईबी के पास आश्रय के बिना लोगों को आवास देने के लिए सुविधाएं उपलब्ध हैं। ऐसी सुविधाओं में कितने लोगों को आवास दिया जा सकता है।
इसके साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि हलफनामे में यह भी बताया जाए कि अस्थायी आश्रयों में रहने वाले लोगों को कहां रखा गया है। ऐसे लोगों की अनुमानित संख्या कितनी है जिनको शेल्टर होम्स की जरूरत है। न्यायमूर्ति गवई ने भूषण से पूछा लोगों को दूसरे शेल्टर होम में क्यों नहीं शिफ्ट किया जाना चाहिए। इस पर भूषण ने जवाब दिया कि वहां क्षमता नहीं है। इन लोगों के काम करने की जगह के पास होना चाहिए। ये लोग गरीब, प्रवासी हैं।
इस पर अधिवक्ता कामत ने कहा कि हम कह रहे हैं कि उन्हें गीता कॉलोनी में आने दिया जाए। कम से कम यमुना बाजार के इन 200 लोगों को तो आने दिया जाए जिनके पास कुछ भी नहीं है। याचिकाकर्ता के एक अन्य वकील ने अदालत को बताया कि विभिन्न एजेंसियां इन शेल्टर होम्स की देखभाल कर रही हैं, लेकिन उन्हें वेतन नहीं दिया जा रहा है। अधिवक्ता ने कहा कि समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं है। ठंड के कारण कई बेघर लोग मर जाते हैं। मामले में अब 17 दिसंबर को सुनवाई होगी।