धार्मिक आस्था या राजनीतिक संकेत? डीके शिवकुमार के मंदिर दौरों से कांग्रेस में बेचैनी
दिलचस्प यह रहा कि बीजेपी नेताओं ने भी उनके मंदिर दौरे की सराहना की। उडुपी-चिकमंगलूर सांसद कोटा श्रीनिवास पूजारी और उडुपी विधायक यशपाल सुवर्णा ने इसे सकारात्मक संकेत बताया।

कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के लगातार मंदिर दौरों और धार्मिक गतिविधियों ने उनकी अपनी पार्टी के भीतर बेचैनी पैदा कर दी है। शिवकुमार ने गुरुवार को कैबिनेट बैठक से पहले चामराजनगर में श्री माले महादेश्वर मंदिर का दौरा किया, जहां उन्होंने हुलिवाहन महादेश्वर रजत रथ यात्रा के दौरान दंडुकोला सेवा में हिस्सा लिया और मठाधीश श्री शांतमल्लिकार्जुन स्वामी से भेंट की। इसके अलावा, उन्होंने माले महादेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना की।
यह दौरा उनके जनवरी से शुरू हुए आध्यात्मिक संपर्क अभियान की ही एक कड़ी है। पिछले सप्ताह उन्होंने श्री क्षेत्र धर्मस्थल में भगवान मंजुनाथ को पूजा अर्पित की थी। इससे पहले वे प्रयागराज में कुंभ मेले में डुबकी लगा चुके हैं और ईशा फाउंडेशन में महाशिवरात्रि समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मंच साझा कर चुके हैं। इस उपस्थिति ने कांग्रेस के भीतर कुछ हलचल मचा दी थी।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने शिवकुमार की इस सक्रियता पर सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि इससे "मिलाजुला संदेश" जा रहा है। हालांकि, शिवकुमार ने हर बार अपनी धार्मिक यात्राओं को "व्यक्तिगत" बताया है। फरवरी में उन्होंने कहा था, "मैं हिंदू पैदा हुआ हूं, हिंदू ही मरूंगा, लेकिन मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।"
शिवकुमार के भाई और पूर्व कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने उनका बचाव करते हुए कहा, "वह एक सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में गए थे, किसी विचारधारा को समर्थन देने नहीं।" राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिवकुमार की ये यात्राएं उनकी आस्था को दर्शाती हैं, लेकिन इसका राजनीतिक असर नकारा नहीं जा सकता। रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव विश्लेषक संदीप शास्त्री ने कहा, "शिवकुमार अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही धार्मिक रुझान रखते आए हैं। ये सब उनकी व्यक्तिगत आस्था का प्रतीक है।"
दिलचस्प यह रहा कि बीजेपी नेताओं ने भी उनके मंदिर दौरे की सराहना की। उडुपी-चिकमंगलूर सांसद कोटा श्रीनिवास पूजारी और उडुपी विधायक यशपाल सुवर्णा ने इसे "एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता की ओर से सकारात्मक संकेत" बताया।
हालांकि कांग्रेस के भीतर इस पर एकराय नहीं है। एक पार्टी पदाधिकारी ने टिप्पणी करते हुए कहा, "इस तरह के दौरे बीजेपी के उस नैरेटिव को मजबूत करते हैं कि शिवकुमार दक्षिणपंथी झुकाव की ओर बढ़ रहे हैं। इससे हमारी अल्पसंख्यक वोटबैंक में असहजता भी पैदा हो सकती है।" अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवकुमार की यह आध्यात्मिक यात्रा कांग्रेस की राजनीति में कौन-सा मोड़ लाती है- साधना का रास्ता या सियासी समीकरणों का खेल?