रोगन जोश, भेल पूरी और घोड़े आने की देरी, पहलगाम हमले में कैसे मौत को छू कर बच निकले ये लोग…
आतंकियों ने बीते मंगलवार जम्मू-कश्मीर में पहलगाम के खूबसूरत बैसरन मैदान को खून से लाल कर दिया। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई। कुछ लोग ऐसे भी थे, जो किस्मत से बच गए।
Pahalgam Terror Attack: जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित पहलगाम में मंगलवार को हुए हमले में आतंकियों ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह हमला ऐसे समय में हुआ जब सैकड़ों सैलानी मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से मशहूर बैसरन के खूबसूरत मैदानों का दीदार कर रहे थे। हमले के बाद ऐसी कई कहानियां सामने आ रही हैं जहां लोगों ने घटना से ठीक पहले के क्षणों को याद कर बताया है कि किस तरह अगर उनके साथ कुछ मामूली असुविधाएं नहीं हुईं होती वे भी हमले वाली जगह मौजूद होते और उन्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता था।
महाराष्ट्र से कश्मीर घूमने आए 28 लोगों के एक समूह को भी किस्मत ने ही बचाया। लोगों ने बताया कि कैसे उन्हें समय पर घोड़ा नहीं मिल पाया जिसकी वजह से उन्हें बैसरन पहुंचने में थोड़ी देर हो गई। बता दें कि जिस जगह पर हमला हुआ वहां गाड़ियां आ-जा नहीं सकती है और इसीलिए लोग या तो पैदल या घोड़ों पर सवार हो कर ही यहां पहुंचते हैं। इस समूह में कोल्हापुर, सांगली, रत्नागिरी और पुणे के कुछ लोग थे। लोगों ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने वहां मौजूद घोड़ों के मालिकों के साथ मोलभाव किया। लेकिन उन्हें कीमत ज्यादा लगी और इसीलिए वे और घोड़ों का इंतजार करने लगे। इसी इंतजार की वजह से उनकी जान बच गई।
समूह के साथ आए कोल्हापुर के सुरेंद्र दत्तात्रेय सापले ने इंडिया टुडे को बताया, "हम सिर्फ इसलिए बच गए क्योंकि हमें समय पर घोड़े नहीं मिले।" एक अन्य सदस्य अनिल कुराने ने बताया, "घोड़ों के मालिकों ने शुरू में हम से एक राइड के लिए 3,200 मांगे। हम 15 मिनट तक मोल-भाव करते रहे। इसके बाद जब दूसरे घोड़े आए तो हमने सफर शुरू किया। करीब 500 मीटर बाद ही हमारा ड्राइवर पीछे से चिल्लाता हुआ आया कि आगे गोलीबारी हो रही है, मत जाओ!”
रोगन जोश खाने में देर नहीं होती तो…
कोच्चि से कश्मीर घूमने आए एक परिवार को भी किस्मत का साथ मिला। 11 लोगों का यह परिवार 19 अप्रैल को कश्मीर पहुंचा था और दो दिनों तक गुलमर्ग और सोनमर्ग घूमने के बाद वे लोग मंगलवार को पहलगाम जाने को निकले थे। परिवार ने बताया कि घूमने की वजह से उन्होंने दो दिनों से लंच नहीं किया था। बैसरन पहुंचने के ठीक पहले ही उन्होंने खाना खाने का फैसला किया। परिवार की एक सदस्य लावण्या ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “मंगलवार को हम श्रीनगर से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम जा रहे थे। हम उस सुबह थोड़ी देर से निकले। चूंकि हमने पिछले दो दिनों से दोपहर का खाना नहीं खाया था, इसलिए मेरे पति ने जोर देकर कहा कि हम बैसरन जाने से पहले कुछ खा लें, जो कि केवल 15 मिनट की दूरी पर है।”
इसके बाद उनका परिवार रोड के किनारे एक होटल में रुका। उनके ऑर्डर किए हुए रोगन जोश में उन्हें नमक जरूरत से ज्यादा लगी। इसके बाद होटल के कर्मचारियों ने उन्हें दूसरी प्लेट देने की पेशकश की। इस तरह दोबारा ऑर्डर तैयार होने में उन्हें एक घंटे की देरी हो गई। थोड़ी देर बाद ही उन्हें पता चला कि बैसरन के मैदान में एक बड़ा आतंकवादी हमला हुआ है। अब वह ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहे हैं।
मिहिर और कोमल सोनी की भी बची जान
इस तरह जयपुर से आए एक नवविवाहित जोड़े की जान भी किस्मत से ही बची। मिहिर और कोमल सोनी बैसरन में भेलपुरी लेकर अकेले में समय बिताना चाहते थे इसीलिए वे भीड़ से थोड़ा अलग हट गए। मिहिर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "सब कुछ बहुत शांत था। हमने भेलपूरी खरीदी और एक शांत कोने में बैठकर नजारे का आनंद ले रहे थे। तभी अचानक हमने गोलियों की आवाज सुनी। लोग चीखने-चिल्लाने लगे और भागने लगे।" उन्होंने यह भी बताया कि हमले में मारे गए नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और उनकी पत्नी भी लगभग उसी समय वहां पहुंचे और उनसे पहले उसी दुकानदार से भेलपुरी खरीदी थी। कोमल ने बताया, "वे हमारे ठीक सामने से गुजरे। बाद में हमें पता चला कि आतंकियों ने उन्हें मार दिया।"