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अखाड़े तो पहलवानों के होते हैं, फिर संतों के अखाड़ों का क्या है मतलब और कैसे मिला नाम

  • अखाड़ों से सम्बन्धित साधु-सन्तों की विशेषता यह होती है कि इनके सदस्य शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत होते हैं। अखाड़ा सामाजिक-व्यवस्था, एकता, संस्कृति तथा नैतिकता का प्रतीक है। समाज में आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना करना ही अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य है।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, प्रयागराजThu, 9 Jan 2025 02:57 PM
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अखाड़ा शब्द सुनते ही हमारे जेहन में पहलवानों और उनके मल्ल युद्ध करने की तस्वीरें उभरने लगती हैं। लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में अखाड़े संतों के होते हैं। निर्मोही अखाड़ा, जूना अखाड़ा, शंभू पंच दशनाम अखाड़ा समेत संतों के कई अखाड़े हैं, जो चर्चा में रहते हैं। फिलहाल सभी अखाड़ों के संत महाकुंभ 2025 में पहुंचे हुए हैं और उनके अस्थायी आश्रम ही बन गए हैं। करोड़ों की संख्या में महाकुंभ पहुंचने वाले लोग भी अलग-अलग अखाड़ों में जाकर संतों का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। लेकिन यह सवाल भी बनता है कि आखिर संतों के आश्रमों को अखाड़ा क्यों कहा जाने लगा। इस बारे में जानकार मानते हैं कि यहां अखाड़ा का भाव अखंड से है। दरअसल अखण्ड शब्द ही अपभ्रंश होते-होते अखाड़ा बन गया। यहां अखंड से आध्यात्मिक भाव यह है कि जिसका विभाजन न हो सकता हो।

आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा हेतु साधुओं के संघों को मिलाने का प्रयास किया था। उसी प्रयास के तहत सनातन धर्म की रक्षा एवं मजबूती बनाए रखने एवं विभिन्न परम्पराओं व विश्वासों का अभ्यास करने वालों को एकजुट करने तथा धार्मिक परम्पराओं को अक्षुण्ण रखने के लिए विभिन्न अखाड़ों की स्थापना हुई। अखाड़ों से सम्बन्धित साधु-सन्तों की विशेषता यह होती है कि इनके सदस्य शास्त्र और शस्त्र दोनों में पारंगत होते हैं। अखाड़ा सामाजिक-व्यवस्था, एकता, संस्कृति तथा नैतिकता का प्रतीक है। समाज में आध्यात्मिक मूल्यों की स्थापना करना ही अखाड़ों का मुख्य उद्देश्य है। अखाड़ा मठों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सामाजिक जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना है।

इसीलिए धर्म गुरुओं के चयन के समय यह ध्यान रखा जाता है कि उनका जीवन सदाचार, संयम, परोपकार, कर्मठता, दूरदर्शिता तथा धर्ममय हो। भारतीय संस्कृति एवं एकता इन अखाड़ों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अलग-अलग संगठनों में विभक्त होते हुए भी अखाडे़ एकता के प्रतीक हैं। नागा संन्यासी अखाड़ा मठों का एक विशिष्ट प्रकार है। प्रत्येक नागा संन्यासी किसी न किसी अखाड़े से सम्बन्धित रहते हैं। ये संन्यासी जहाँ एक ओर शास्त्र पारंगत होते हैं वहीं दूसरी ओर शस्त्र चलाने का भी इन्हें अनुभव होता है। वर्तमान में अखाड़ों को उनके इष्ट-देव के आधार पर निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

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तीन प्रकार के होते हैं अखाड़े-

शैव अखाड़े: इस श्रेणी के इष्ट भगवान शिव हैं। ये शिव के विभिन्न स्वरूपों की आराधना अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर करते हैं।

वैष्णव अखाड़े: इनके इष्ट भगवान विष्णु हैं। ये विष्णु के विभिन्न स्वरूपों की आराधना अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर करते हैं।

उदासीन अखाड़ा: सिक्ख सम्प्रदाय के आदि गुरु श्री नानकदेव के पुत्र श्री चंद्रदेव जी को उदासीन मत का प्रवर्तक माना जाता है। इस पन्थ के अनुयाई मुख्यतः प्रणव अथवा ‘ॐ’ की उपासना करते हैं।

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