Hindi Newsदेश न्यूज़Madras High Court constitutes SIT women IPS officers to probe Anna University rape case

'महिला अकेले क्यों नहीं चल सकती, मनचाहे कपड़े पहनने में क्या परेशानी', अन्ना यूनिवर्सिटी रेप केस पर HC

  • भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की तीन महिला अधिकारियों स्नेहा प्रिया, अयमान जमाल और बृंदा की एसआईटी टीम को जांच का आदेश दिया गया। पीठ ने कहा कि एसआईटी प्राथमिकी लीक मामले की भी जांच करेगी।

Niteesh Kumar वार्ताSat, 28 Dec 2024 06:51 PM
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मद्रास हाई कोर्ट ने अन्ना यूनिवर्सिटी कैंपस में एक छात्रा के साथ यौन उत्पीड़न की विशेष जांच दल (SIT) जांच के आदेश दिए है। राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह प्राथमिकी में उसकी पहचान उजागर होने के बाद पीड़िता को हुए मानसिक आघात के लिए 25 लाख रुपये का मुआवजा दें। न्यायालय ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह पीड़िता को उसके मानसिक आघात को देखते हुए आवश्यक मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करे। साथ ही, उसे मुफ्त शिक्षा और छात्रावास सुविधाएं दी जाएं। कोर्ट ने पुलिस को पीड़िता और उसके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया।

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न्यायालय ने चेन्नई पुलिस आयुक्त ए अरुण को FIR लीक होने पर फटकार लगाने के बाद सुनवाई फिर से शुरू की। इस मामले में पीड़िता की पहचान उजागर हुई और यह निष्कर्ष निकाला गया कि गिरफ्तार व्यक्ति ही असली अपराधी है। अपराध में केवल एक ही व्यक्ति शामिल है। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी लक्ष्मीनारायण की पीठ ने चल रही जांच में विभिन्न चूकों को उजागर किया। साथ ही, भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की तीन महिला अधिकारियों स्नेहा प्रिया, अयमान जमाल और बृंदा की एसआईटी टीम को जांच का आदेश दिया। पीठ ने कहा कि एसआईटी प्राथमिकी लीक मामले की भी जांच करेगी।

'महिलाओं की सुरक्षा करना राज्य और समाज का कर्तव्य'

बेंच ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण माना कि प्राथमिकी लीक होने से ही पीड़िता को शर्मसार होना पड़ा। इससे उसे और अधिक मानसिक पीड़ा हुई है। यह देखते हुए कि महिलाओं की सुरक्षा करना राज्य और समाज का कर्तव्य है, पीठ ने प्राथमिकी लिखने के तरीके को गंभीरता से लिया और कहा कि यह उसे दोषी ठहराकर या शर्मिंदा करके नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा, 'यह महिलाओं के प्रति द्वेषपूर्ण है। संविधान पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर नहीं करता है। समाज को महिलाओं को नीचा दिखाने में शर्म महसूस करनी चाहिए।' कोर्ट ने आगे पूछा कि एक महिला स्वतंत्र रूप से अकेले क्यों नहीं चल सकती, अपनी इच्छानुसार कपड़े क्यों नहीं पहन सकती या किसी पुरुष से बिना किसी आलोचना के बात क्यों नहीं कर सकती।

'FIR में पीड़िता के सम्मान के अधिकार का उल्लंघन'

न्यायालय ने कहा, 'एक महिला को सामाजिक कलंक से ऊपर उठना चाहिए। यह कभी उसकी गलती नहीं थी, केवल समाज ने ही उसे आंका है।' अदालत ने यह निष्कर्ष निकालते हुए कि एफआईआर की सामग्री ने ही पीड़िता के सम्मान के अधिकार का उल्लंघन किया है, यह कहा कि वर्तमान मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़िता के अधिकार का उल्लंघन किया गया था। इसलिए वह पीड़िता को मुआवजा देने पर विचार करती है। इससे पहले सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि चूंकि पीड़िता एक छात्रा है और केवल 19 वर्ष की है, इसलिए पुलिस का कर्तव्य है कि वह उसकी मदद करें। एचसी ने टिप्पणी की, 'पीड़ित एक छात्रा है। वह केवल 19 वर्ष की है। क्या एसएचओ का यह कर्तव्य नहीं है कि वह प्राथमिकी दर्ज करने में पीड़िता की सहायता करे, उसे शब्दों में लिखे। यह कुछ ऐसा है जिसे हम लड़कों के छात्रावास में गुप्त रूप से पढ़ते हैं।'

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