भारतीय परिवार तेज बदलाव के दौर से गुजर रहे, कानून और समाज पर असर; जज साहिबा ने क्या कहा
- जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि यह बदलाव कई कारकों से हो रहा है, जिनमें शिक्षा तक अधिक पहुंच, बढ़ता शहरीकरण, व्यक्तिगत आकांक्षाएं और शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट की जज न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने भारतीय परिवारों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि भारत में परिवार नाम की संस्था में आज तेजी से बदलाव हो रहा है। ये बदलाव न केवल परिवारों की बनावट पर, बल्कि कानूनी प्रणाली पर भी गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बदलाव कई कारकों से हो रहा है, जिनमें शिक्षा तक अधिक पहुंच, बढ़ता शहरीकरण, व्यक्तिगत आकांक्षाएं और शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं की बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता शामिल हैं।
‘परिवार: भारतीय समाज का आधार’ विषय पर दक्षिणी जोन क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने ये बातें कहीं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर सभ्यता में परिवार को समाज की मूलभूत संस्था के रूप में मान्यता दी गई है। उन्होंने कहा, ‘यह हमारे अतीत से जुड़ने और हमारे भविष्य के लिए एक सेतु है।’ जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि शिक्षा और रोजगार के कारण महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक आजादी को समाज की ओर से सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाएं न केवल परिवार की बेहतरी करने में, बल्कि राष्ट्र के विकास में भी योगदान देती हैं।
पारिवारिक विवादों को सुलझाने का बताया तरीका
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारत में वर्तमान में अदालतों में लंबित पारिवारिक विवादों का एक बड़ा हिस्सा तभी सुलझ सकता है, जब दोनों पक्ष दो कदम बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा, ‘पहला है, दूसरे की भावनाओं को समझना व सम्मान करना। दूसरा है आत्मावलोकन करना। यह पति-पत्नी के संदर्भ में है। दूसरे के प्रति सम्मान को समझने से मेरा मतलब है कि एक साथी को हर समय दूसरे साथी की रुचियों का ध्यान रखना चाहिए।’ सुप्रीम कोर्ट की जज शीर्ष अदालत की पारिवारिक न्यायालय समिति की अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों को एक-दूसरे के दृष्टिकोण और तर्क को एक-दूसरे के नजरिए से समझने का सक्रियता से प्रयास करना चाहिए। इससे विवाद को बढ़ाने के बजाय जुड़ाव बनाने में मदद मिलेगी।