CBI से बड़ी नहीं है ED, उसकी जांच के खिलाफ अपील भी नहीं कर सकती; हाईकोर्ट ने खूब सुनाया
- न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा पैसों के कथित दुरुपयोग के संबंध में पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और अन्य के खिलाफ धन शोधन मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को CBI और ED को लेकर बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) किसी भी तरह से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से बड़ी एजेंसी नहीं है। साथ ही इसने कहा कि सीबीआई द्वारा की गई जांच के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय अपील नहीं कर सकता है। न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने कहा कि यह जरूरी है कि ईडी सीबीआई के फैसलों का सम्मान करे, जब तक कि उसे आपराधिक क्षेत्राधिकार वाले सक्षम न्यायालय द्वारा परिवर्तित या संशोधित न किया जाए।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा, "प्रवर्तन निदेशालय किसी भी तरह से सीबीआई से बड़ी जांच एजेंसी नहीं है। न ही इसे CBI द्वारा जांच और उसके बाद निकाले गए निष्कर्ष के खिलाफ अपील करने की शक्ति या अधिकार दिए गए हैं। ईडी पीएमएलए के तहत अपराधों के संबंध में एक समानांतर जांच एजेंसी है। इसके नाते प्रवर्तन निदेशालय को पीएमएलए के तहत अपराधों के अलावा अन्य अपराधों के संबंध में किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा की गई जांच और उस एजेंसी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष को स्वीकार करना चाहिए।"
न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा पैसों के कथित दुरुपयोग के संबंध में पूर्व जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और अन्य के खिलाफ धन शोधन मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। मनी लॉन्ड्रिंग का मामला किसी पूर्वनिर्धारित अपराध या पुलिस या सीबीआई जैसी किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर दर्ज किया जाता है। हालांकि, ईडी को आरोपी के खिलाफ पीएमएलए कार्यवाही शुरू करने का अधिकार केवल तभी है जब मुख्य एजेंसी ने कोई ऐसा अपराध दर्ज किया हो जो मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत अपराधों में शामिल है।
ईडी ने आरोपपत्र में नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख अब्दुल्ला, अहसान अहमद मिर्जा (जेकेसीए के पूर्व कोषाध्यक्ष), मीर मंजूर गजनफर (जेकेसीए के एक अन्य पूर्व कोषाध्यक्ष) और कुछ अन्य को आरोपी बनाया था। आरोप पत्र में सूचीबद्ध लोगों ने इसे रद्द करने का अनुरोध करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था। मिर्जा और गजनफर का प्रतिनिधित्व कर रहे शरीक जे रियाज ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और उनके मुवक्किलों के खिलाफ दायर आरोपपत्र रद्द कर दिए जाने चाहिए।
अदालत ने दलीलें सुनने के बाद सात अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। ईडी का प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू ने ऑनलाइन तरीके से किया। रियाज ने कहा कि अदालत ने ‘‘हमारी दलील स्वीकार कर ली है कि कोई भी अपराध नहीं बनता है’’ और ईडी के पास इस मामले को लेकर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
मिर्जा को ईडी ने सितंबर, 2019 में गिरफ्तार किया था और उसी साल नवंबर में उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था और उस शिकायत पर मुकदमा चल रहा है। इस मामले में एजेंसी अब्दुल्ला से कई बार पूछताछ कर चुकी है। संघीय जांच एजेंसी ने पूर्व में जारी तीन अलग-अलग आदेशों के तहत अब्दुल्ला और अन्य की 21.55 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति कुर्क की थी। एजेंसी का मामला इन्हीं आरोपियों के खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर 2018 के आरोपपत्र पर आधारित है।
अब्दुल्ला, मिर्जा, गजनफर और पूर्व लेखाकार बशीर अहमद मिसगर और गुलजार अहमद बेग के खिलाफ दायर सीबीआई के आरोपपत्र में आरोप लगाया गया है कि 2002 से 2011 के बीच तत्कालीन राज्य में खेल को बढ़ावा देने के लिए ‘भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड’ (बीसीसीआई) द्वारा दिए गए अनुदान से ‘‘जेकेसीए के 43.69 करोड़ रुपये के धन का दुरुपयोग’’ किया गया था।
(इनपुट एजेंसी)
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