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लॉ नहीं थी पूर्व CJI चंद्रचूड़ की पहली पसंद, बतौर वकील पहली फीस जान रह जाएंगे हैरान!

  • Chandrachud News: जस्टिस चंद्रचूड़ से सॉलिसिटर ने आगे कहा कि चूंकि, तुम पहली बार मेरे लिए हाई कोर्ट में पेश होने जा रहे हो तो इसलिए मैं तुम्हें पांच की जगह छह गिनी दूंगा। इस तरह से अस्सी के दशक के मिड में मैं 75 से 90 रुपये बना सकता था।

Madan Tiwari लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 11 Jan 2025 07:18 PM
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Former CJI Chandrachud: देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने करियर को लेकर अपनी पहली पसंद बताई है। हाल में दिए गए एक इंटरव्यू में पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लॉ उनकी पहली पसंद नहीं थी, उनकी पहली पसंद इकॉनोमिक्स में पोस्ट ग्रैजुएशन करना था, लेकिन किस्मत उन्हें यहां ले आई। इसके साथ ही, उन्होंने बतौर वकील अपनी पहली फीस का भी जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि पहले के समय में सोने की मुहरें चलती थीं और एक मुहर 15 रुपये की होती थी। इस तरह पहले केस में बतौर वकील उन्हें छह मुहरें मिली थीं, जिसकी कीमत उस समय 90 रुपये थी।

पिछले दिनों एनडीटीवी से बात करते हुए पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ''सच बताऊं तो लॉ मेरी पहली पसंद नहीं थी। मैंने सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र और गणित में स्नातक किया। मैंने अर्थशास्त्र में ऑनर्स किया। और बीए पूरा करने के बाद, मेरी पहली पसंद वास्तव में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर करना था, लेकिन जैसा कि किस्मत में लिखा था, आप जानते हैं, मैंने लॉ फैकल्टी ज्वाइन कर ली। इसके बाद मैंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।''

जस्टिस चंद्रचूड़ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज बनने से पहले वकालत भी कर चुके थे। बतौर एडवोकेट अपनी पहली फीस के बारे में भी उन्होंने इंटरव्यू में बताया। उन्होंने कहा, ''मैं हार्वर्ड लॉ स्कूल से अभी-अभी निकला था। मेरे पास हार्वर्ड लॉ स्कूल से एसजेडी की डिग्री थी, जो न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट है। मेरा पहला ब्रीफ, जो बॉम्बे हाई कोर्ट की एक डिवीजन बेंच के सामने उल्लेख करने के लिए एक छोटा सा काम था, वह मुझे दिया गया था। इस पर मैंने सॉलिसिटर से सवाल किया कि मैं डॉक पर कितना मार्क करूंगा। यानी कि मेरी फीस क्या होगी?''

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पूर्व सीजेआई ने आगे कहा कि क्या आपको पता है, उन दिनों बॉम्बे में फीसद गोल्ड मुहर में मार्क की जाती थी। एक गोल्ड मुहर 15 रुपये की होती थी। वहीं, उस समय कलकत्ता की गोल्ड मुहर की कीमत 16 रुपये होती थी। जब मैंने फीस को लेकर सॉलिसिटर से पूछा तो उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि जो यह काम तुम कोर्ट में मेरे लिए करोगे, उसके लिए ऑर्डिनरी फीस होगी जोकि पांच जीएम (गोल्ड मुहर) है। इन पांच जीएम की कीमत 75 रुपये बनती थी। जस्टिस चंद्रचूड़ से सॉलिसिटर ने आगे कहा कि चूंकि, तुम पहली बार मेरे लिए हाई कोर्ट में पेश होने जा रहे हो तो इसलिए मैं तुम्हें पांच की जगह छह गिनी दूंगा। इस तरह से अस्सी के दशक के मिड में मैं 75 से 90 रुपये बना सकता था।

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