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बंटोगे तो लुटोगे; राकेश टिकैत की हुंकार, योगी आदित्यनाथ की तरह किसानों को दिया नारा

  • किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के 21वें दिन के आमरण अनशन के बीच किसानों से एकजुट होने की अपील करते हुए राकेश टिकैत ने 'बंटोगे तो लुटोगे' का नारा दिया।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानMon, 16 Dec 2024 08:21 PM
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किसान नेता राकेश टिकैत ने पंजाब के किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के 21वें दिन के आमरण अनशन के बीच किसानों से एकजुट होने की अपील करते हुए 'बंटोगे तो लुटोगे' का नारा दिया। टिकैत का यह नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनावी नारे 'बंटोगे तो कटोगे' की तर्ज पर है। उन्होंने किसानों के बीच एकता को आंदोलन की सफलता का मूलमंत्र बताया और डल्लेवाल की बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता भी जताई।

क्यों दिया गया बंटोगे तो लूटोगे का नारा?

टिकैत का मानना है कि किसानों के अलग-अलग समूह चाहे पंजाब, राजस्थान, या उत्तर प्रदेश से हों जब तक वे मिलकर रणनीति नहीं बनाते, तब तक उनकी मांगें पूरी होना मुश्किल है। उन्होंने कहा, "यदि आप एकजुट नहीं होंगे, तो आपको पराजित किया जाएगा। सभी को मिलकर रहना होगा।"

गौरतलब है कि 70 वर्षीय कैंसर रोगी डल्लेवाल 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर आमरण अनशन कर रहे हैं। उनकी प्रमुख मांगों में फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी शामिल है। 'संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक)' और 'किसान मजदूर मोर्चा' के बैनर तले किसान 'दिल्ली चलो' मार्च का नेतृत्व कर रहे हैं। फरवरी 13 से वे शंभु और खनौरी बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं, क्योंकि पुलिस ने उनकी राजधानी की ओर मार्च को रोक दिया।

वहीं हिसार, हरियाणा और पंजाब में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला और डल्लेवाल के समर्थन में आवाज बुलंद की। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने रविवार को 'रेल रोको' प्रदर्शन की घोषणा की। किसान 18 दिसंबर को दोपहर 12 से 3 बजे तक ट्रेन की आवाजाही रोकने की कोशिश करेंगे। पंधेर ने कहा कि उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) को पत्र लिखकर आंदोलनरत किसानों के साथ शामिल होने की अपील की है। उन्होंने कहा, "हमने एक समिति बनाई है, जो सभी संगठनों से संवाद करेगी और आगामी रणनीति तैयार करेगी।"

डल्लेवाल के स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच टिकैत ने किसानों से अपील की कि वे एकजुट होकर अपनी मांगों के लिए लड़ें। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक किसान संगठन एक मंच पर नहीं आएंगे, तब तक उनकी आवाज प्रभावी ढंग से नहीं सुनी जाएगी।

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