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पहले शिवसेना टूटी अब MVA पर खतरा, कैसे प्रकाश आंबेडकर को साथ लाना उद्धव ठाकरे को पड़ेगा महंगा

आंबेडकर पवार के मुखर आलोचक रहे हैं। शिवसेना-वीबीए गठजोड़ के बाद भी यह बंद नहीं हुआ। उन्होंने सीधे ही पवार पर हमला बोला, जिन्हें भाजपा विरोधी एमवीए को एक साथ रखने वाले लीडर के तौर पर जाना जाता है।

पहले शिवसेना टूटी अब MVA पर खतरा, कैसे प्रकाश आंबेडकर को साथ लाना उद्धव ठाकरे को पड़ेगा महंगा
Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 11 Feb 2023 12:35 PM
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महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ भाजपा-बालासाहेबंची शिवसेना (BSS) गठबंधन को मात देने के लिए कई विपक्षी दल एक साथ आ रहे हैं। पिछले महीने ही शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी (वीबीए) ने गठबंधन किया है। इस मौके पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि MVA में VBA को शामिल करने को लेकर उन्हें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की ओर से कोई विरोध नहीं दिखता। हालांकि, आंबेडकर ने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) चीफ शरद पवार को लेकर जिस तरह की टिप्पणियां की हैं, उससे इस 'महागठबंधन' में दरारें दिखन लगी हैं। 

वीबीए और एनसीपी के बीच तनाव के और बढ़ने से उद्धव के नेतृत्व वाले सेना गुट और एनसीपी के बीच कटुता का खतरा बढ़ गया है। इतना ही नहीं, अब तो MVA भी किनारे पर नजर आने लगा है। ध्यान रहे कि पवार एमवीए के सबसे मजबूत नेता माने जाते रहे हैं जिसमें शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी और अन्य छोटे राजनीतिक संगठन शामिल हैं। मालूम हो कि राज्य के विदर्भ क्षेत्र में वीबीए की उपस्थिति है और आंबेडकर ने वर्ष 1998 और 1999 में अकोला लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 

ठाकरे को क्यों पड़ी आंबेडकर की जरूरत?
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की जयंती (23 जनवरी) पर उद्धव और आंबेडकर की पार्टियों के बीच गठबंधन की घोषणा हुई थी। पिछले साल एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में कई विधायकों की बगावत से शिवसेना दो-फाड़ हो गई। माना जाता है कि इससे उद्धव ठाकरे की राजनीतिक ताकत काफी हद तक कमजोर हुई है। ठाकरे को इस नुकसान को दूर करने के लिए VBA की जरूरत है। बौद्धों, हिंदू दलितों और मुसलमानों के एक धड़े के बीच वीबीए की मजबूत पकड़ मानी जाती है। वहीं, प्रकाश आंबेडकर को ओबीसी के बीच अपने आधार को मजबूत करने के लिए शिवसेना और उसके बहुजन (गैर-ब्राह्मण) किस्म के हिंदुत्व की जरूरत है।

VBA को लेकर असहज हैं कांग्रेस और एनसीपी
कांग्रेस और एनसीपी आंबेडकर को लेकर कुछ हद तक असहज हैं। दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण (नांदेड़) और सुशील कुमार शिंदे (सोलापुर) सहित कांग्रेस व एनसीपी के 8 उम्मीदवारों की हार के लिए वीबीए को जिम्मेदार ठहराया गया था। तब, आंबेडकर ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के साथ गठबंधन किया था, जिसने महाराष्ट्र में एक लोकसभा सीट जीती थी।

आंबेडर ने पवार पर सवाल उठाने नहीं किए बंद
आंबेडकर पवार के मुखर आलोचक रहे हैं। शिवसेना-वीबीए गठजोड़ के बाद भी यह बंद नहीं हुआ। उन्होंने सीधे ही पवार पर हमला बोला, जिन्हें भाजपा विरोधी एमवीए को एक साथ रखने वाले लीडर के तौर पर जाना जाता है। वीबीए नेता ने शरद पवार को 'बीजेपी का आदमी' बताया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार का शपथ ग्रहण शरद पवार के कहने पर किया गया। एमवीए के सीनियर नेता मानते हैं कि इस राजनीतिक हमले महागठबंधन में दरार पड़ सकती है। अगर आंबेडकर के हमले ऐसे ही जारी रहते हैं तो शिवसेना के पास एनसीपी और वीबीए के बीच चयन करने का कठिन विकल्प बन सकता है।

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