महायुति में सियासी संग्राम, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस में ठनी; जानें क्या है वजह
- महायुति सरकार में अंदरूनी खींचतान अब खुलकर सामने आने लगी है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पुनर्गठन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
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महाराष्ट्र में सत्ता की साझेदारी करने वाली महायुति सरकार में अंदरूनी खींचतान अब खुलकर सामने आने लगी है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पुनर्गठन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इस कदम ने न सिर्फ राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है बल्कि यह भी संकेत दिया है कि बीजेपी और शिंदे गुट के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। इसके अलावा शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना इस बात से नाराज है कि निजी सहायकों (पीए) और विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) की नियुक्तियों सहित अन्य सिफारिशें मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में अटकी हुई हैं।
क्यों बढ़ रही शिंदे-फडणवीस के बीच टकराव
गौरतलब है कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन 2005 में मुंबई में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद किया गया था और यह राज्य में आपदा प्रबंधन की सबसे अहम संस्था है। मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण के अध्यक्ष होते हैं और इसमें राज्य के अन्य प्रमुख विभागों के मंत्री शामिल होते हैं। इस बार डिप्टी सीएम और एनसीपी नेता अजित पवार को इसमें जगह दी गई है, लेकिन शिंदे को इससे दूर रखा गया है। यह फैसला इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि शिंदे के पास शहरी विकास विभाग है, जो प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अहम भूमिका निभाता है। उनके विभाग की टीमें बचाव और राहत कार्यों की निगरानी करती हैं, लेकिन फिर भी उन्हें बाहर रखा गया। इस फैसले ने यह अटकलें तेज कर दी हैं कि फडणवीस और शिंदे के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, शिंदे गुट के मंत्रियों के लिए यह अकेला झटका नहीं है। हाल ही में कई शिवसेना नेताओं ने शिकायत की थी कि उनके कार्यालयों में पीए और ओएसडी की नियुक्ति में जानबूझकर देरी की जा रही है। कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों को मुख्यमंत्री कार्यालय ने रोक रखा है, जिससे मंत्री प्रशासनिक फैसले लेने में असहाय महसूस कर रहे हैं।
रिपोर्ट्स की मानें तो शिंदे गुट के बड़े चेहरों में शामिल उदय सामंत, शंभूराज देसाई, संजय राठौड़ और गुलाबराव पाटिल जैसे इस देरी से प्रभावित हैं। सूत्रों के मुताबिक, 2014 से विभिन्न विभागों में काम कर रहे अधिकारियों की नियुक्ति को भी अटकाया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व इन नियुक्तियों पर पूरी तरह से नियंत्रण रखना चाहता है, जिससे शिवसेना के मंत्रियों को संदेश दिया जाए कि असली ताकत कहां है।
महायुति में बढ़ती दरार
यह पहली बार नहीं है जब महायुति सरकार में खींचतान सामने आई हो। इससे पहले जब महाराष्ट्र सरकार ने जिला संरक्षक मंत्रियों की सूची जारी की थी, तब रायगढ़ और नासिक के मामले में भी मतभेद खुलकर दिखे थे। शिवसेना के मंत्रियों को इन जिलों की जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी को यह जिले सौंप दिए गए। हालात तब और बिगड़ गए जब महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने फडणवीस के आदेश को नजरअंदाज करते हुए रायगढ़ जिला मुख्यालय में गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराया। यह घटना इस बात का साफ संकेत थी कि महायुति में नेतृत्व को लेकर खींचतान चरम पर है।
शिंदे खेमे में इस अनदेखी को लेकर भारी नाराजगी है। उद्योग मंत्री उदय सामंत ने इस मसले पर खुलकर नाराजगी जताई और अपने ही विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि मंत्रियों को फैसलों की पूरी जानकारी दी जाए। शिंदे गुट का मानना है कि नौकरशाही को सत्ता पर हावी होने नहीं दिया जा सकता और वे इस मुद्दे को जल्द ही कैबिनेट बैठक में उठाने की योजना बना रहे हैं।