अब सीएम नहीं रहे एकनाथ शिंदे, तो चुनौतियां भी अपार; क्यों आसान नहीं है आगे की राह?
- लोकसभा चुनावों में शिवसेना के बेहतर प्रदर्शन और विधानसभा में 57 सीटें जीतने के बाद, शिंदे को उम्मीद थी कि वे CM बने रहेंगे। हालांकि, बीजेपी के ऐतिहासिक 132 सीटों के आंकड़े ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक दल के नेता देवेंद्र फडणवीस ने बृहस्पतिवार शाम एक भव्य समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वहीं शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को नई सरकार में डिप्टी सीएम का पद स्वीकार करना पड़ा है। यह उनके लिए एक कड़वी गोली निगलने जैसा साबित हो सकता है। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनने से पहले, शिंदे और बीजेपी के बीच सत्ता-साझेदारी और विभागों के बंटवारे को लेकर गहन मंथन हुआ। लेकिन शपथ ग्रहण में सीएम और डिप्टी सीएम के अलावा, किसी अन्य ने मंत्री पद की शपथ नहीं ली, जो संकेत देता है कि मंत्रालयों को लेकर फिलहाल मामला फंसा हुआ है।
मुख्यमंत्री पद छिनने की पीड़ा
लोकसभा चुनावों में शिवसेना के बेहतर प्रदर्शन और विधानसभा में 57 सीटें जीतने के बाद, शिंदे को उम्मीद थी कि वे मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे। हालांकि, बीजेपी के ऐतिहासिक 132 सीटों के आंकड़े ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब उनके लिए मौजूदा स्थिति जून 2022 के विपरीत है, जब शिंदे की बगावत के चलते महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिरी और महायुति सत्ता में आई। उस समय, बीजेपी ने शिवसेना की मांग मानकर शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनने के लिए राजी किया।
मजबूत प्रदर्शन और नई चुनौतियां
हालांकि, लोकसभा चुनावों में महायुति के कमजोर प्रदर्शन (17 सीटें) के बावजूद, शिंदे की शिवसेना ने 15 में से 7 सीटें जीतकर बेहतर प्रदर्शन किया। यह बीजेपी की 28 में से 9 सीटों के मुकाबले अधिक प्रभावशाली रहा। इसके चलते शिवसेना एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी बन गई। शिंदे के नेतृत्व में कई लोकलुभावन योजनाएं, जैसे "माझी लड़की बहिन योजना," "लाडका भाऊ योजना," और कृषि ऋण माफी ने महायुति को फायदा पहुंचाया। इसके साथ ही, शिंदे ने बीजेपी और एनसीपी (अजित पवार गुट) के दबाव को झेलते हुए शिवसेना की राजनीतिक स्थिति को मजबूत बनाए रखा। माराठा आरक्षण के मुद्दे पर शिंदे ने प्रभावी नेतृत्व दिखाया। उन्होंने आंदोलनकारी मनोज जरांगे-पाटिल को मुंबई मार्च रोकने के लिए राजी किया, जिससे उनकी छवि एक सशक्त मराठा नेता के रूप में उभरी।
आने वाली कठिनाइयां
वर्तमान में, शिंदे के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह उपमुख्यमंत्री की भूमिका में रहते हुए शिवसेना को सत्ता में बराबरी का भागीदार बनाए रखें। पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता यह नहीं चाहेंगे कि शिवसेना की ताकत सरकार में घटे या उसका वर्चस्व कम हो। शिंदे को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिवसेना के पास महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मंत्रालय रहें, ताकि पार्टी का प्रभाव बनाए रखा जा सके। कुल मिलाकर शिंदे को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ सामंजस्य बनाए रखते हुए अपनी पार्टी के लिए सत्ता में पर्याप्त हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी होगी। इसमें उनकी प्राथमिकता यह हो सकती है कि वे शिवसेना के लिए कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दावा करें, जो राज्य की राजनीति में पार्टी की ताकत को बनाए रख सकें।
क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण
शिवसेना का इतिहास हमेशा से ही मराठा और मुंबई के क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़ा रहा है। शिंदे को अपनी मंत्रिमंडल में यह सुनिश्चित करना होगा कि विभिन्न क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों का ध्यान रखा जाए। इस बात को समझते हुए, वह अपने कैबिनेट में विविध जातियों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व देने की कोशिश करेंगे ताकि हर वर्ग को संतुष्ट किया जा सके। यही नहीं, शिंदे को यह भी ध्यान रखना होगा कि उनके मंत्रिमंडल में ऐसे नेता शामिल हों जो स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत करने में सक्षम हों।
स्थानीय चुनावों की अहमियत
अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव होंगे, जो शिंदे के लिए एक बड़ा अवसर और एक बड़ी चुनौती दोनों होंगे। यह चुनाव न केवल शिवसेना के लिए अपनी साख को साबित करने का मौका होंगे, बल्कि शिंदे के लिए अपनी नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ को जांचने का भी अवसर होगा। यदि शिंदे सेना इन चुनावों में अच्छी प्रदर्शन करती है, तो वह अपनी पार्टी के भीतर अपने नेतृत्व को और मजबूत कर सकते हैं, साथ ही अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी राजनीतिक रूप से हरा सकते हैं।
इसके अलावा, शिंदे के लिए एक और बड़ा सवाल यह है कि वह महाराष्ट्र के विपक्ष, खासकर उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) से मुकाबला किस तरह करेंगे। ठाकरे परिवार से विभाजन के बाद शिंदे ने जो नया राजनीतिक मोर्चा तैयार किया है, वह अब अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कई तरह की चुनौतियों का सामना करेगा। ठाकरे परिवार के साथ उनकी राजनीतिक लड़ाई अब जारी रहेगी। स्थानीय निकाय चुनावों में शिवसेना का वर्चस्व बनाए रखना और प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (उद्धव गुट) को हराना एक बड़ी चुनौती होगी।
एक साधारण पृष्ठभूमि से मुख्यमंत्री तक का सफर
एकनाथ शिंदे का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। किसान परिवार में जन्मे शिंदे ने ठाणे में ऑटोरिक्शा चलाकर परिवार का पालन-पोषण किया। 1980 के दशक में शिवसेना में शामिल हुए शिंदे ने आनंद दिघे के मार्गदर्शन में राजनीति में कदम रखा। 1997 में ठाणे नगर निगम के पार्षद बने और 2004 में पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए। शिंदे के राजनीतिक अनुभव और अब तक की सफल योजनाओं को देखते हुए, उनकी महत्वाकांक्षा और नेतृत्व क्षमता को कमतर नहीं आंका जा सकता। लेकिन नई परिस्थितियों में उनके सामने सत्ता और पार्टी को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती होगी।