हिजबुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत पर आपस में ही क्यों बंट गया मुस्लिम जगत, कौन सा देश किस तरफ?
सऊदी अरब के अलावा अन्य सुन्नी शासित देशों यानी संयुक्त अरब अमीरात, कतर, और बहरीन ने भी नसरल्लाह की हत्या पर चुप्पी साध रखी है। दूसरी तरफ सीरिया और इराक जैसे देशों ने तीन दिनों का शोक घोषित किया है।
लेबनान की राजधानी बेरुत में हुए इजायली स्ट्राइक में आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह की हत्या से मुस्लिम वर्ल्ड दो खेमों में बंट गया है। एक खेमा जहां उसकी हत्या पर जश्न मना रहा है, वहीं कई मुस्लिम देश इजरायल की इस कार्रवाई पर आगबबूला हैं। नसरल्लाह की हत्या से मिडिल-ईस्ट खासकर मुस्लिम देशों के बीच अब एक नए तरह का ध्रुवीकरण और तनाव पसर गया है। सुन्नी नेतृत्व वाले कई देशों ने नसरल्लाह की हत्या पर चुप्पी साध ली है। इससे इजरायल से खफा और इजरायल के साथ संबंधों को मधुर बनाने वाले देशों के बीच विभाजन का पता चलता है। इतना ही नहीं ये विभाजन हिजबुल्लाह को संरक्षण देने वाले ईरान के प्रति उनके रवैये का भी खुलासा करता है।
खाड़ी देशों और अरब लीग ने 2016 में हिज्बुल्लाह समूह को आतंकवादी संगठन घोषित किया था लेकिन इस साल की शुरुआत में अरब लीग ने इसे वापस ले लिया था। अब जब हिज्बुल्लाह इजरायल के निशाने पर है, तब कई सुन्नी शासित देशों जिसमें सऊदी अरब प्रमुख है, ने रविवार देर रात एक बयान जारी कर कहा कि वह लेबनान में हो रहे घटनाक्रम पर गंभीर रूप से चिंतित है और हालात पर नजर रख रहा है। हालांकि, सऊदी अरब ने लेबनान की संप्रभुता और क्षेत्रीय सुरक्षा के संरक्षण का आग्रह किया लेकिन नसरल्लाह की हत्या पर एक शब्द भी नहीं कहा।
सऊदी अरब संग इन देशों ने भी साध रखी है चुप्पी
सऊदी अरब के अलावा अन्य सुन्नी शासित देशों यानी संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कतर, और बहरीन ने भी नसरल्लाह की हत्या पर चुप्पी साध रखी है। यहां एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि लेबनान में शिया और सुन्नी आबादी लगभग बराबर है लेकिन वह शिया बहुल और शासित ईरान का समर्थक है। ईरान ही हिज्बुल्लाह को धन से लेकर हथियार और प्रशिक्षण देता रहा है। हिज्बुल्लाह सरगना शिया चरमपंथी रहे हैं।
मिस्र भी सुन्नी बहुल देश है। वहां के राष्ट्रपति कार्यालय के एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सीसी ने लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती से फोन पर बात की और कहा कि उनका देश लेबनान की संप्रभुता के किसी भी उल्लंघन को खारिज करता है लेकिन अन्य सुन्नी शासित देशों की तरह मिस्र ने भी नसरल्लाह की हत्या का कोई उल्लेख नहीं किया। मिस्र अतीत में भी ईरान और उसके सहयोगियों की आलोचना करता रहा है, हालांकि उसने ईरान के साथ अनौपचारिक संपर्क बनाए रखा है। मिस्र के विदेश मंत्री ने पिछले एक साल में ईरानी अधिकारियों के साथ आधिकारिक बैठकें भी की थीं।
सीरिया और इराक में तीन दिन का शोक
दूसरी तरफ सीरिया और इराक जैसे देशों ने तीन दिनों का शोक घोषित किया है। खाड़ी देश ओमान ने भी नसरल्लाह की हत्या पर रोष जताया है। ओमान के ग्रैंड मुफ़्ती शेख अहमद बिन हमद अल-खलीली ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उनका देश हिज़्बुल्लाह के महासचिव के निधन से दुखी है, क्योंकि वे तीन दशकों से अधिक समय से यहूदियों के लिए एक कांटा बने हुए थे। दरअसल, सुन्नी नेतृत्व वाले अरब के देशों के सामने दुविधा यह है कि वे इजरायल से अपने संबंध बेहतर करें या हिज़्बुल्लाह का हर कदम पर साथ देने वाले और उसे प्रश्रय देने वाले ईरान का विरोध करें।
तुर्की और पाकिस्तान का क्या रुख?
तुर्की और इजरायल के बीच राजनयिक संबंध रहे हैं लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पहले गाजा में इजरायली हमलों का विरोध किया और अब लेबनान में भी इजरायली हमलों को नरसंहार करार दे रहे हैं। बड़ी बात ये है कि एर्दोगन ने भी अपने बयान में नसरल्लाह का जिक्र नहीं किया। तुर्की भी सुन्नी बहुल देश है। पाकिस्तान ने भी नसरल्लाह की हत्या पर बयान जारी किया है लेकिन इसने भी नसरल्लाह का कोई जिक्र नहीं किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि उनका देश मध्य-पूर्व में बढ़ती इसरायली दुस्साहस की निंदा करता है और पाकिस्तान लेबनान की संप्रभुता के उल्लंघन को स्वीकार नहीं करेगा। दरअसल, इस्लाम की दोनों शाखाओं के बीच मतभेद मध्य पूर्व के दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्तों की जटिलताओं की वजह से है।
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