यशस्वी जायसवाल के कैच के बाद स्निको टेक्नोलॉजी पर उठे सवाल, फाउंडर बोले- अगर हॉट स्पॉट होता तो...
- स्निको ने सोमवार दोपहर को एमसीजी पर काफी विवाद खड़ा कर दिया, यशस्वी जायसवाल को एक टीवी रिव्यू के बाद विवादास्पद तरीके से आउट कर दिया गया, इस निर्णय ने काफी बहस पैदा कर दी।
इंडिया वर्सेस ऑस्ट्रेलिया चौथे टेस्ट मैच के आखिरी दिन उस समय थोड़ा सा विवाद पनप गया, जब यशस्वी जायसवाल को थर्ड अंपायर ने कैच आउट दिया। विजुअल देखकर लग रहा था कि गेंद का संपर्क यशस्वी के बल्ले या ग्लव्स से हुआ है, लेकिन स्निको मीटर में कुछ हलचल नहीं हुई। इस पर भारतीय फैंस गुस्सा हो गए। यहां तक कि कमेंट्री कर रहे सुनील गावस्कर भी नाराज आए। भारत में टीवी पर मैच देख रहे बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला भी थर्ड अंपायर के फैसले से नाखुश थे, लेकिन अब खुद स्निको टेक्नोलॉजी के फाउंडर ने बताया है कि आखिरकार आरटीएस में कोई भी हरकत क्यों नहीं आई।
स्निको तकनीक के पीछे के व्यक्ति ने कारण बताया है कि क्यों अल्ट्रा-एज तकनीक ने यशस्वी जायसवाल के विवादास्पद आउट होने के बाद कोई आवाज रिकॉर्ड नहीं की। थर्ड अंपायर शरफुद्दौला ने डिफ्लेक्शन के आधार पर बल्लेबाज को आउट दिया। ऐसे में फैंस ऑस्ट्रेलियाई टीम को चीटर...चीटर कहकर पुकारने लगे। अगले ही पल आकाश दीप को आउट दिया गया, जहां डिफ्लेक्शन नहीं देखा, बल्कि सिर्फ स्निको मीटर में हलचल देखकर आउट दे दिया गया। ऐसे में विवाद और भी ज्यादा बढ़ गया था।
बीबीजी स्पोर्ट्स स्निको और 'हॉट स्पॉट' तकनीक के संस्थापक हैं, जिसका पहली बार 2006 एशेज में इस्तेमाल किया गया था और जिसने क्रिकेट में रिव्यू सिस्टम में क्रांतिकारी बदलाव किया है। वॉरेन ब्रेनन, जिन्होंने कंपनी की स्थापना की और उनके प्रौद्योगिकी प्रमुख हैं, उन्होंने सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड को बताया कि स्निको हमेशा हल्के स्पर्श या 'झटके से लगने वाले टच' को नहीं पकड़ पाता है।
ब्रेनन ने आगे बताया, 'उन ग्लांस-टाइप के शॉट्स पर, शायद ही कोई शोर होता है। ग्लांस शॉट स्निको की ताकत नहीं है, जबकि यह हॉटस्पॉट के लिए है। हॉट स्पॉट इन्फ्रारेड कैमरों का उपयोग करके काम करता है, जो खिलाड़ी के बल्ले, दस्ताने या पैड पर घर्षण से प्राप्त गर्मी के संकेतों को माप सकते हैं। वास्तव में, सिस्टम को इसके डिजाइन के हिस्से के रूप में सैन्य जेट और टैंकों में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक से तत्व लिए गए हैं। इसे 2007 में डिजाइन किया गया था। अगर हॉट स्पॉट टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होती तो इस बात के अधिक निर्णायक सबूत मिल जाते कि जायसवाल का गेंद से संपर्क हुआ या नहीं। ये सिस्टम 2024-25 बॉर्डर-गावस्कर सीरीज के लिए उपयोग में नहीं है।
ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि सिस्टम की सटीकता को लेकर पहले भी चिंताएं जताई जा चुकी हैं। 2013 में ब्रेनन ने दावा किया था कि बल्ले की कोटिंग और टेप स्निको टेक्नोलॉजी को धोखा दे सकते हैं और क्रिकेट बॉल के बल्ले से टकराने पर कैमरे द्वारा आमतौर पर पकड़े जाने वाले थर्मल सिग्नेचर को निष्प्रभावी कर सकते हैं। हॉट स्पॉट का उपयोग बाद में कम हो गया और अब अंतरराष्ट्रीय टीमों द्वारा इसका व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।