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बस्तर में बारूद के ढेर के बीच पनपा प्यार, मौत के डर के बीच किया सरेंडर; नक्सली जोड़े की प्रेम कहानी

  • नक्सलियों से उसका मोहभंग तब और गहरा हो गया जब वरिष्ठ नेता कमलेश अपनी पत्नी के साथ सुरक्षित क्षेत्र में चला गया, और दूसरों को पीछे छोड़ गया। इसके बाद रंजीत ने काजल को आत्मसमर्पण करने के लिए राजी कर लिया।

Sourabh Jain वार्ता, बस्तर, छत्तीसगढ़Sun, 19 Jan 2025 06:55 PM
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बस्तर में बारूद के ढेर के बीच पनपा प्यार, मौत के डर के बीच किया सरेंडर; नक्सली जोड़े की प्रेम कहानी

छत्तीसगढ़ में माओवाद प्रभावित बस्तर इलाके के जंगलों में हिंसा के बीच पनपी एक प्रेम कहानी सामने आई है। इस प्रेम कहानी के दो किरदार आठ-आठ लाख रुपए के इनामी नक्सली रंजीत और काजल हैं। इस नक्सली जोड़े ने लाल गलियारों की कड़वी वास्तविकताओं का सामना करते हुए और बहादुरी से उनका मुकाबला करते हुए 15 जनवरी को नारायणपुर पुलिस अधीक्षक प्रभात कुमार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और समाज की मुख्यधारा में लौट आए।

इस शादीशुदा नक्सली जोड़े ने बताया कि पिछले साल 4 अक्टूबर को सुरक्षाकर्मियों और नक्सलियों के बीच हुई एक भयावह मुठभेड़ के बाद उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। दरअसल मुठभेड़ के दौरान रंजीत भी मौके पर मौजूद था और अपने साथियों को मरते हुए देख रहा था।

साथियों की मौत होने के बाद वह भी मौत के डर से 24 घंटे तक एक पेड़ पर छिपा रहा। इस जीवन-परिवर्तनकारी अनुभव ने प्यार और एक नया जीवन जीने के लिए बंदूक छोड़ने के उसके संकल्प को और मजबूत कर दिया। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए राज्य की पुनर्वास नीति ने उनके बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रंजीत ने बताया कि चार अक्टूबर, 2024 को अबूझमाड़ के जंगल में जो मुठभेड़ हुई थी, वह उसके लिए जीवन बदलने वाली साबित हुई। उसने बताया कि इस मुठभेड़ में उसके कई साथियों की मौत हो गई, जिसके बाद उसे भी मौत का डर सताने लगा था। मुठभेड़ के बाद सर्चिंग में पकड़े जाने से बचने के लिए, वह दोपहर तीन बजे सियाड़ी के पेड़ पर चढ़ गया और करीब 24 घंटे तक वहीं छिपा रहा। इस दौरान वह नीचे सुरक्षाकर्मियों को गहन तलाशी लेते हुए देखता रहा।

अगले दिन 5 अक्टूबर की शाम को जब आसपास के इलाकों के ग्रामीण वहां पहुंचे, तब जाकर वह नीचे उतरा और नक्सली शिविर में जाकर अपने साथियों से मिल सका। मौत के इतने करीबी अनुभव और प्रेमिका काजल के साथ जिंदगी बिताने की चाहत ने विद्रोह जारी रखने के उसके संकल्प को तोड़ दिया, जिसके बाद यह जोड़ा आत्मसमर्पण करने के बारे में सोचने लगा।

इसी बीच उसे पता चला कि सुरक्षाबलों के साथ संघर्ष के दौरान मिली विफलताओं के लिए अन्य राज्यों के नक्सली लीडर स्थानीय नक्सलियों को दोषी ठहरा रहे हैं, जिससे उसका मनोबल टूट गया। इसके बाद नक्सलियों से उसका मोहभंग तब और गहरा हो गया जब वरिष्ठ नेता कमलेश अपनी पत्नी के साथ सुरक्षित क्षेत्र में चला गया, और दूसरों को पीछे छोड़ गया। इसके बाद रंजीत ने काजल को आत्मसमर्पण करने के लिए राजी कर लिया।

माओवादी संगठन के सदस्य रंजीत और काजल ने भारी दबाव के बीच ओडिशा के जंगलों में शादी कर ली। लेकिन इसके बाद उन्हें जबरन अलग कर दिया गया और उनकी नसबंदी कर दी गई। अपर्याप्त देखभाल के कारण साथी कैडर रमशीला की मौत और उसके बाद उसके पति हेमलाल के आत्मसमर्पण को देखकर, दंपति को उग्रवाद छोड़ने की प्रेरणा मिली।

आत्मसमर्पण करने के लिए पहले नक्सली कैंप से भागना जरूरी था। इसके लिए दोनों ने पहले एक गुप्त योजना बनाई, फिर अलग-अलग वक्त पर नक्सली कैंप से भाग निकले और एक सुरक्षित स्थान पर फिर से मिले। इसके बाद आठ-आठ लाख रुपए के इनामी नक्सली रंजीत और काजल ने प्यार की खातिर आखिरकार हिंसा का रास्ता त्याग दिया और नए सिरे से जीवन की शुरुआत करने के लिए पुलिस के सामने समर्पण करते हुए नक्सली जीवन को छोड़ दिया।

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