आंखों से ठीक से दिखता नहीं, पिता गरीब किसान, लेकिन जेईई एडवांस्ड में किया टॉप, एक दलित दिव्यांग छात्र की गजब कहानी
JEE Advanced Exam : गरीब किसान के बटे प्रकाश ने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए एससी-पीडब्ल्यूडी (दलित एवं दिव्यांग) कैटेगरी में जेईई एडवांस्ड में टॉप किया और आईआईटी में एडमिशन लिया।
JEE Advanced Exam : गरीबी और दिव्यांगता को हराकर जेईई एडवांस्ड क्रैक करने वाले प्रकाश राठौड़ आज हर किसी के लिए प्रेरणा बन गए हैं। गरीब किसान के बटे प्रकाश ने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए एससी-पीडब्ल्यूडी (दलित एवं दिव्यांग) कैटेगरी में जेईई एडवांस्ड में टॉप किया और हाल में आईआईटी बॉम्बे के बीटेक कंप्यूटर साइंस कोर्स में एडमिशन लिया है। गांव में खेती बाड़ी के माहौल के बीच पले पढ़े प्रकाश को उम्मीद है कि अब वह अपनी पढ़ाई लिखाई का इस्तेमाल करके एक रोबोट बनाएंगे जिससे कृषि संबंधी कार्यों में मदद मिलेगी।
बचपन की कठिनाइयों के चलते इस लक्ष्य को हासिल करना प्रकाश के लिए बेहद टेढ़ी खीर था। राठौड़ का जन्म कर्नाटक के बीजापुर जिले के बेनाकट्टी गांव के एक गरीब किसान परिवार में हुआ। उनका परिवार बरसों से हाशिये पर पड़ी अनुसूचित जाति और वंचित तबसे से ताल्लुक रखता है। उनके माता-पिता में से किसी ने भी स्कूल तक की पढ़ाई पूरी नहीं की। प्रकाश और उनके परिवार की संघर्ष की यात्रा तब शुरू हुई जब वह महज दो साल के थे। उनके पिता ने देखा कि उनके बेटे को चीजें ठीक तरह से नहीं दिख रही है। बस उसके बाद परिवार का डॉक्टरों के पास और अस्पतालों में चक्कर लगना शुरू हो गया। करियर360 की खबर के मुताबिक राठौड़ ने बताया कि दो सालों तक अस्पतालों के धक्के खाने के बाद उन्हें पता लगा कि वह दृष्टिबाधित हैं। वह सामान्य तरीके से देख नहीं सकेंगे। उन्होंने कहा, 'बीजापुर से बेंगलुरु तक, हमने कोई डॉक्टर नहीं छोड़ा। दो साल की उम्र से ही मेरी आंखों में समस्या होने लगी थी।' राठौड़ को दाहिनी आंख से नजर नहीं आता और बाईं आंख से कम-कम दिखता है।
आईआईटी बॉम्बे के कंप्यूटर साइंस कोर्स में लिया एडमिशन
सामान्य तरीके से देख पाने की उम्मीद में आंखों का इलाज कहीं न कहीं चलता रहा। साल दर साल बीतते गए और सर्जरियां और दवाओं से इलाज होता रहा। लेकिन इन तमाम अड़चनों के बीच प्रकाश ने अपनी मैथ्स और साइंस विषयों के प्रति अपने जुनून को कम न होने दिया। पढ़ाई में होनहार होने के चलते उन्हें न सिर्फ नामी सरकारी स्कूल में एडमिशन मिला बल्कि वह इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम की कोचिंग कराने वाले एक प्रोग्राम में जगह पाने में भी सफल रहे। आखिरकार वह देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी बॉम्बे में सीट पाने में कामयाब रहे। उन्होंने जेईई मेन में 300 में से 210 अंक - 99.49 परसेंटाइल हासिल किए। आईआईटी, जेईई एडवांस प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए क्वालिफाई किया। उन्होंने एससी-पीडब्ल्यूडी (दलित और विकलांग) उम्मीदवारों की कैटेगरी में टॉप किया। काउंसलिंग के पहले ही दौर में उन्होंने आईआईटी बॉम्बे में प्रतिष्ठित कोर्स कंप्यूटर साइंस में सीट हासिल की।
जवाहर नवोदय विद्यालय में लिया एडमिशन
प्रकाश राठौड़ ने कक्षा 4 तक बीजापुर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। राठौड़ के पढ़ाई में तेज दिमाग को देखते हुए और अपनी वित्तीय हालत को देखते हुए उनके पिता ने उसे जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी) में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए प्रेरित किया। जवाहर नवोदय विद्यालय प्रतिभाशाली, ग्रामीण बच्चों के लिए केंद्र सरकार द्वारा संचालित आवासीय विद्यालय हैं। जेएनवी में चयन के लिए परीक्षा (जेएनवीएसटी) की तैयारी के लिए राठौड़ ने अस्थायी रूप से अपना रेगुलर स्कूल छोड़ दिया। उन्होंने कोचिंग के लिए दूर तक यात्रा की।
कक्षा छठी में अंग्रेजी में हो गए थे फेल
इस दौरान उनके क्लास के साथियों ने उन्हें खूब ताने मारे और कई बार तांग खींची। लेकिन वह कर्नाटक के बादामी जिले में जेएनवी बागलकोट में एडमिशन पाने में सफल हो गए। उन्होंने कहा 'एक समय था जब मैं ज्यादा देर तक पढ़ाई नहीं कर पाता था और पढ़ाई छोड़ने के बारे में सोचता थी। मेरी आंखें ज्यादा दबाव नहीं ले सकती थीं। लेकिन मेरे पिता ने मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया क्योंकि हम एक गरीब किसान परिवार से आते हैं, और हमारे पास पढ़ाई करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। जेएनवी में प्रवेश से उनकी परेशानियां कम नहीं हुईं। राठौड़ ने स्थानीय भाषा में अध्ययन किया था और अंग्रेजी में वह कमजोर थे। इसके चलते वह कक्षा 6 में फर्स्ट टर्म की अंग्रेजी की परीक्षा में फेल हो गए। उन्होंने कहा, 'मेरे शिक्षकों ने मुझे पढ़ने के लिए कहानी की छोटी-छोटी किताबें दी थीं। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं गैप को कवर कर लूंगा। मैंने कक्षा 6 में कुल मिलाकर अच्छा स्कोर किया।'
8वीं में आंख पर लगी गेंद, हुई थी सर्जरी
विकलांगता के कारण स्कूल में बच्चे राठौड़ का काफी मजाक उड़ाया करते थे। लेकिन अपने टीचरों के समर्थन से वह इस तनाव से निपटना सीख गया। उन्होंने कहा, "मैंने खुद को पढ़ाई की ओर मोड़ लिया।" लेकिन कक्षा 8 में एक गेंद राठौड़ की दाहिनी आंख पर लग जाने से उन्हें अपनी आंख की लेजर सर्जरी करानी पड़ी। एक महीने तक वह स्कूल नहीं जा सके। न सिर्फ उनकी पढ़ाई बाधित हुई बल्कि इसने उनके पिता को कर्ज के जाल में धकेल दिया। उन्होंने कक्षा 8 में 78 फीसदी और 10वीं कक्षा में 87 फीसदी अंक प्राप्त किए, लेकिन वह और बेहतर करना चाहते थे।
कोरोना महामारी के दौरान हुई तैयारी में दिक्कत
राठौड़ जेईई और नीट की फ्री कोचिंग कराने वाले दक्षिणा फाउंडेशन के प्रोग्राम में एंट्री पाने में सफल हो गए। इस कोर्स में 10वीं के 600 बच्चों को इंजीनियरिंग मेडिकल एग्जाम की फ्री कोचिंग के लिए चुना जाता है। बड़ी समस्या तब आई जब कोविड के दौरान कक्षाएं बंद हो गईं। सब कक्षाएं ऑनलाइन होने लगी। मोबाइल पर छह छह घंटे की कक्षाएं ले पाना राठौड़ के लिए बहुत मुश्किल था। उनकी आंखों में दवाब महसूस होने लगता था। उनके पास फोन और इंटरनेट भी नहीं था। फाउंडेशन ने उन्हें डिवाइस उपलब्ध कराया। लगातार मोबाइल स्क्रीन में देखने के चलते एक बार उनकी एक आंख सूज गई। एक सप्ताह तक वे फिर से बिस्तर पर आ गए। 12वीं में उनके 92 फीसदी मार्क्स आए।
फाउंडेशन के टॉप 100 स्टूडेंट्स में से एक होने के चलते उन्हें आईआईटी गांधीनगर में दक्षिणा लीडरशिप प्रोग्राम के लिए चुना गया। यह कार्यक्रम ग्रामीण भारत से आने वाले स्टूडेंट्स को क्रिटिकल थिंकिंग, कम्युनिकेशन और लीडरशिप की फील्ड में ट्रेनिंग देता है।
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