Struggles of Vishwakarma Community Economic Challenges and Demand for Political Inclusion बोले भागलपुर: जरूरतमंदों को मिले पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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बोले भागलपुर: जरूरतमंदों को मिले पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ

भगवान विश्वकर्मा की संतान माने जाने वाले विश्वकर्मा समाज की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। इस समाज को पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। लोग जनजाति का दर्जा और रोजगार की मांग कर रहे हैं।...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरMon, 28 April 2025 07:45 PM
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बोले भागलपुर: जरूरतमंदों को मिले पीएम विश्वकर्मा योजना का लाभ

भगवान विश्वकर्मा की संतान माने जाने वाला विश्वकर्मा समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को विवश है। इस समाज का बड़ा तबका ऐसा है जो आर्थिक रूप से काफी कमजोर है। अपने रोजगार और व्यवसाय के लिए संघर्ष कर रहा है। कुंभकार, बढ़ई और लोहार जाति में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की संख्या अधिक है। कुछ लोग विश्वकर्मा समाज को जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, जिससे उन्हें उसका लाभ मिल सके। केंद्र सरकार द्वारा विश्वकर्मा समाज के लिए पीएम विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की गई है। बावजूद इसके उनलोगों को इस योजना का उचित लाभ नहीं मिल सका। जरूरतमंद लोगों को इस योजना का लाभ मिले। भारतीय विश्वकर्मा महासंघ भागलपुर के अध्यक्ष विशाल आनंद ने बताया कि विश्वकर्मा समाज को आबादी के हिसाब से कोई भी सुविधा प्राप्त नहीं हो रही है। जिसके कारण विश्वकर्मा समाज के लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा विश्वकर्मा समाज के लिए विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की गई, जिसकी हर ओर सराहना हुई। बावजूद इसके उनलोगों को इस योजना का उचित लाभ नहीं मिल सका। प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना में विश्वकर्मा समाज के पांच जातियों की जगह 18 पारंपारिक व्यवसाय को शामिल किया गया है, जिसका लाभ 140 से अधिक जातियों को मिलेगा। वहीं रंजीत साह ने बताया कि प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना एक अच्छी पहल है, लेकिन कुछ लोगों के फर्जीवाड़े से इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। जागरूकता के अभाव में कार्ड बनवाने के लिए काफी लोग फर्जी लोगों के चंगुल में फंसकर अपनी गाढ़ी कमाई को गवां देते हैं। जिसपर सरकार और स्थानीय प्रशासन को ध्यान देकर रोक लगाने की जरूरत है। साथ ही बताया कि मान्यता प्राप्त केंद्र के अलावा कहीं भी इससे संबंधित लोक लुभावनी बातों में नहीं आना चाहिए। विश्वकर्मा योजना को लेकर आवेदन आ रहे हैं और इसका लाभ प्राथमिकता के आधार पर जरूरतमंदों को मिलना चाहिए।

उन्होंने बताया कि स्वर्णकार और ठठेरा समाज को अतिपिछड़ा में शामिल किया जाय। संरक्षक निरंजन साहा ने बताया कि मूल रूप से पीतल और कासा बर्तन बनाने वाले कसेरा या ठठेरा समाज के लोगों का व्यवसाय और कला आर्थिक अभाव एवं सरकारी उपेक्षाओं के कारण खत्म होती चली गई। उन्होंने बताया कि सरकार जब विश्वकर्मा समाज के लोगों का उत्थान करने की बात करती है तो सबसे पहले उनलोगों को जनजाति का लाभ मिलना चाहिए। संजीव कुमार पोद्दार ने बताया कि यदि सरकार और सभी राजनीतिक दलों ने विश्वकर्मा समाज की राजनीतिक भागीदारी तय नहीं करती है, तो महासंघ के नेतृत्व में अपनी ताकत का परिचय देते बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य के सभी सीटों पर अपनी जाति के उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारेगी। वहीं रंजीत कुमार शर्मा ने बताया कि सरकार द्वारा उनलोगों को सरकार और प्रशासन के स्तर से आरा मशीन का लाइसेंस मुहैया कराया जाना चाहिए। जिससे छोटे कारपेंटर भी लकड़ी के सिल्ही को मशीन में चिरकर अपनी जरूरत के अनुरूप लकड़ी के सामान का निर्माण कर सकें। अभी उनलोगों को बड़े आरा मशीन का सहारा लेना पड़ता है, जो छोटे बढ़ई को काफी महंगा पड़ता है।

उन्होंने बताया कि जिसने भी आरा मशीन लगायी उसकी मशीन को जब्त कर सील कर दिया गया। इसके कारण पीढ़ी दर पीढ़ी काम करने वाले बढ़ई समाज के काफी लोग अपनी जाति और पुश्तैनी पेशे से वंचित होते जा रहे हैं। इन परेशानियों को देखकर युवा पीढ़ी भी इससे दूरी बनाने लगी है। उन्होंने बताया कि वे सभी भगवान विश्वकर्मा के वंशज हैं और अपने रोजगार को कायम रखने के लिए उन्हें सरकार के स्तर से औजार खरीदने के लिए उनलोगों को लोन की सुविधा मिलनी चाहिए। रूपेश साह ठठेरा ने बताया कि ठठेरा जाति वाले पूंजी के अभाव में कारखाना बंद कर फेरी करने को मजबूर हो गए। जबकि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार वाले को रोजगार की तलाश में पलायन करना पड़ गया। शिक्षा के अभाव में भी इस समाज के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा। ठठेरा जाति के उत्थान के लिए बिहार सरकार उन लोगों को अगर अनुदान की व्यवस्था करे तो उनका बंद पड़ा कारखाना शुरू हो सकता है। जिसका लाभ उनके साथ कई और लोगों को भी रोजगार के रूप में होगा। बदलते समय के साथ प्लास्टिक के बर्तनों का चलन बढ़ गया है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक है।

त्रिपुरारी कुमार वर्मा ने बताया कि ऑनलाइन मार्केटिंग को बढ़ावा देने से उन जैसे व्यवसायियों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। अगर सरकार द्वारा इस व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया तो ऑफलाइन व्यापार और भी प्रभावित हो जाएगा। इसका नुकसान उनके यहां काम करने वालों के रोजगार पर पड़ेगा। सरकार को ऑफलाइन और छोटे दुकानदारों के हित में नीति बनानी चाहिए, जिससे प्रतिस्पर्धा के दौर में छोटे दुकानदार भी अपनी जीविका को बचाए रख सकें।

विश्वकर्मा समाज के लोग हुनरमंद और पेशेवर कारीगर

भारतीय विश्वकर्मा महासंघ भागलपुर के अध्यक्ष विशाल आनंद ने बताया भागलपुर में विश्वकर्मा समाज की आबादी एक लाख से अधिक और पूरे बिहार में करीब आठ प्रतिशत है। यह समाज अपने अलग-अलग पेशे को लेकर मुख्य रूप से पांच भाग में बंटा है, जिसमें बढ़ई, कुंभकार, ठठेरा या कसेरा, लोहार और स्वर्णकार शामिल हैं। उन्होंने बताया है केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजन की शुरुआत की गई तो समाज के वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को अपने उत्थान के लिए एक उम्मीद दिखाई दी, लेकिन अब तक इसका उचित लाभ समाज के किसी भी वर्ग को ठीक ढंग से नहीं मिल पा रहा है। सरकार स्किल डेवलपमेंट का प्रोग्राम चलाती है, लेकिन विश्वकर्मा समाज में लोग पहले से ही हुनरमंद और पेशेवर कारीगर होते हैं। इसके लिए इन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं लेनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि राजनीतिक रूप से सक्षम हुए बिना किसी भी समाज को उसका उचित हक नहीं मिल पाता है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार से उन लोगों की मांग है कि सभी राजनीतिक दल भागीदारी के अनुसार विश्वकर्मा समाज को अपने दल में भागीदारी सुनिश्चित करें।

समाज आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित

भारतीय विश्वकर्मा महासंघ भागलपुर के संरक्षक निरंजन साहा ने बताया कि लंबे समय से विश्वकर्मा समाज आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समाज को केन्द्र में रखकर प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की तो इसका पूरे समाज ने जोरदार स्वागत किया। उन्होंने बताया कि इस योजना के लागू होने से काफी दिन हो गए हैं, लेकिन अभी तक विश्वकर्मा समाज के लोगों को इसके बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं हो पाई है। जो इस योजना के वास्तविक हकदार हैं उन्हें ही इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकार को जागरूकता अभियान चलाकर पीएम विश्वकर्मा योजना से जुड़ी जानकारी आम लोगों तक पहुंचानी होगी। तभी लोग योजनाओं का लाभ ले सकेंगे और सरकार का प्रयास सार्थक साबित हो सकता है। उन्होंने बताया कि विश्वकर्मा समाज के पूर्वज पहले कंदराओं में रहते थे और वहीं से उन लोगों ने पत्थरों से तांबा और जस्ता निकाल कर बर्तन बनाना शुरू किया।

योग्यता और रुचि के अनुसार नहीं मिल रहा रोजगार

भारतीय विश्वकर्मा महासंघ के प्रदेश महासचिव डॉ संजीव कुमार पोद्दार ने बताया कि विश्वकर्मा समाज की सभी पांचों जातियों को अति पिछड़ा में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे आर्थिक आधार पर उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिल सके। सुरक्षा एक महत्वपूर्ण बिन्दु है और इसको ध्यान में रखते हुए प्रशासन द्वारा महिला और एससीएसटी थाना के तर्ज पर व्यवसायियों की समस्याओं, शिकायतों और सुरक्षा के लिए व्यावसायिक थाना की स्थापना होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि आपराधिक घटनाओं पर रोक के लिए बाजार में सभी जगहों पर सीसीटीवी से निगरानी की जानी चाहिए। आर्थिक रूप से कमजोर तबके के कारीगरों को रोजगार और नौकरी के अभाव में रिक्शा, ठेला, ऑटो टोटो चलाना पड़ रहा है, जिससे उनकी कला और कारीगरी भी लुप्त हो जाएगी। इसपर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है, जिससे सभी को उनकी योग्यता और रुचि के अनुसार व्यवसाय या रोजगार का अवसर मिल सके। उन्होंने बताया कि भारतीय विश्वकर्मा महासंघ अपनी राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान सरकार से मांग करती है।

अलग-अलग हुनर से समाज के लोगों ने बनाई पहचान

भारतीय विश्वकर्मा महासंघ भागलपुर के संरक्षक नंदकिशोर पंडित ने बताया कि मानव जाति को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाले अग्रणी भगवान विश्वकर्मा के पांच पुत्र हैं, जिनके काम अलग हैं। कुंभकार ने मिट्टी का उपयोग कर अपनी कला से मिट्टी के बर्तन तैयार किए, जबकि बढ़ई ने लकड़ी से बने सामानों को घरेलू जरूरतों के लिए तैयार किया। अलग-अलग हुनर से इस समाज के लोगों ने अपनी पहचान बनाई। आज लोग सालों तक पढ़ाई कर इंजीनियर बनते हैं लेकिन विश्वकर्मा पुत्र जन्मजात इंजीनियर होते हैं, जिनके द्वारा लकड़ी, मिट्टी, कासा पीतल, लोहा और स्वर्ण का उपयोग कर अपनी कला से घरेलू उपयोग की वस्तुओं को तैयार किया जाता है। खाने-पीने और सामान को रखने के लिए मिट्टी और तांबा कासा के बर्तन, शृंगार के लिए आभूषण, रहने एवं घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी के सामान का निर्माण इसी समाज की देन है, लेकिन आज तक इस समाज के लोगों उचित सम्मान और अवसर नहीं मिल सका है। उन्होंने बताया कि सरकार और प्रशासन की ओर से स्वास्थ्यवर्धक मिट्टी के बर्तन निर्माण के लिए पोखर आवंटित किया जाय या कम कीमत पर मिट्टी और लकड़ी उपलब्ध कराया जाय, जिससे उनकी कला को विलुप्त होने से बचाया जा सके।

इनकी भी सुनिए

विश्वकर्मा के पांचों पुत्र का पुश्तैनी व्यापार विलुप्त होने के कगार पर है। इसकी पहचान खत्म होती जा रही है। विश्वकर्मा समाज के लोगों की उन्नति और व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सरकार और बैंकों द्वारा ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। सरकार विश्वकर्मा समाज के स्वर्णकार और ठठेरा जाति को भी एनेक्सर वन में शामिल करे।

-विजय कुमार साह उर्फ पप्पू, उपाध्यक्ष

आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण विश्वकर्मा समाज फेरी करके जीवन यापन करने को विवश है। वर्षों से ठठेरा जाति के द्वारा उन्हें अति पिछड़ा में शामिल करने की मांग की जा रही है। पीएम विश्वकर्मा योजना में ठठेरा और स्वर्णकार को शामिल नहीं किया है। इस समाज की वास्तविक स्थिति काफी बदतर है, इसलिए सरकार से इन्हें आरक्षण मिलना चाहिए।

-रूपेश साह ठठेरा, उपाध्यक्ष

विश्वकर्मा समाज के अंतर्गत कई जातियां आती हैं, जिसमें सबसे प्रमुख बढ़ई समाज है, जिसका पुश्तैनी पेशा लकड़ी के सामान से जुड़ा है। सरकार उन्हें आरा मशीन लगाने की अनुमति नहीं देती है, जिसके कारण लकड़ी की सिल्ही चिराई के लिए उन लोगों को बड़े आरा मशीन में जाना पड़ता है, इससे काफी मेहनत के साथ पेशेवर बढ़ई को आर्थिक नुकसान होता है।

-रंजीत कुमार शर्मा, उपाध्यक्ष

भगवान विश्वकर्मा के पांच पुत्रों में बढ़ई ही ऐसे हैं जो जन्मजात इंजीनियर हैं। सभ्यता के विकास के समय से ही बढ़ई जाति द्वारा समाज और भवन निर्माण के साथ घरेलू उपयोग के सामान का निर्माण करने में भी योगदान दिया जा रहा है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि देश की आजादी के करीब 77 साल बाद भी आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक रूप से यह समाज पिछड़ा है।

-प्रो. उमा शंकर शर्मा, सचिव

विश्वकर्मा समाज के समक्ष कई सारी समस्याएं हैं। सरकार को इस समाज के छोटे और खुदरा व्यापारी को ऑनलाइन मार्केटिंग से होने वाले नुकसान से बचाकर रोजगार के बेहतर विकल्प तैयार किया जाना चाहिए। व्यापार प्रभावित होने के कारण बड़े व्यवसायी द्वारा कर्मियों और कारीगरों को निकालना पड़ता है।

-त्रिपुरारी वर्मा, कोषाध्यक्ष

लकड़ी की जगह प्लास्टिक का चलन अधिक बढ़ गया है। सस्ती और वजन में कम होने के कारण लोग स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होकर लकड़ी के सामानों के महत्व को कमतर आंकने लगे हैं। लकड़ी की कम उपलब्धता और सुविधाओं की कमी से विश्वकर्मा समाज का व्यापार प्रभावित होने के साथ रोजगार भी प्रभावित हो रहा है।

-विष्णु साह, सदस्य

भारत के प्रधानमंत्री ने विश्वकर्मा समाज के लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की। लेकिन इस योजना का उचित लाभ जरूरतमंद को नहीं मिल पाता है। इस योजना के नाम पर भागलपुर में भी काफी फर्जीवाड़ा चल रहा है। विश्वकर्मा योजना के लिए साक्षत्कार के नाम पर सबौर समेत कई जगहों पर फर्जी कंपनियों द्वारा ठगी की जा रही है।

-रंजीत साह, सदस्य

विश्वकर्मा समाज के लोगों में शिक्षा का अभाव है, भागलपुर समेत बिहार में शैक्षणिक रूप से इस समाज को सुदृढ़ करने के लिए काम किया जाना चाहिए। सरकार की सभी योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचे इसके लिए विश्वकर्मा समाज के सभी जाति के लोगों को शिक्षा के साथ आर्थिक रूप से सक्षम बनाया जाये।

-डॉ. राजेश कुमार शर्मा, सदस्य

बड़ी-बड़ी कंपनियां बाजार में आ गई हैं। जिसके कारण विश्वकर्मा समाज के लोगों का व्यापार काफी प्रभावित हो गया है। इससे कामगारों की रोजी रोटी पर संकट मंडराने लगा है। ब्रांडेड शोरूम के कारण लोकल कारीगर के व्यवसाय एवं कारीगरी पर प्रभाव पड़ रहा है। छोटे दुकानों में काम करने वाले लोकल कारीगर की कला को रोजगार का अवसर मिलना चाहिए।

-रोहन कुमार

सरकार द्वारा विश्वकर्मा समाज के लोगों के उत्थान के लिए योजनाएं चलाई गई हैं, लेकिन अधिकतर जरूरतमंद लोगों को इसकी जानकारी तक नहीं है। सरकार द्वारा योजनाओं की जानकारी और जागरूकता फैलानी चाहिए। जिससे योजनाओं के लाभ से वंचित समाज के योग्य कारीगरों और उनके परिवारों को लाभ मिल सके।

-रतन कुमार

पहले की तरह लकड़ी उपलब्ध नहीं हो पाता है। लोग भी रेडीमेड सामान की खरीदारी अधिक करते हैं। इसके कारण हुनरमंद होते हुए भी बढ़ई समाज के लोगों को काम नहीं मिल पाता है। इससे उनका रोजगार भी प्रभावित हो गया है। सरकार मदद करे तो कारपेंटर अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ाकर परिवार का भरण-पोषण कर सके।

-चंचल कुमार

विश्वकर्मा समाज के हुनरमंद लोगों को अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा लोन मुहैया कराया जाना चाहिए। जिससे उनका व्यवसाय आगे बढ़ सके और कारीगरों का रोजगार भी प्रभावित न हो। विश्वकर्मा समाज को सभी दलों के नेता वोट बैंक समझते हैं। जागरूकता के अभाव में उन्हें योजनाओं का उचित लाभ नहीं मिल पाता है।

-राजेश वर्मा

शिकायतें

1. देश की राजनीति में विश्वकर्मा समाज की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित नहीं होने से उनके हक की आवाज सदन तक नहीं पहुंच पाती है।

2. लकड़ी की कमी और महंगाई के कारण बढ़ई समाज का पुश्तैनी व्यवसाय प्रभवित हो रहा है, इसके कारण युवा भी इससे किनारा करने लगे हैं।

3. कासा, पीतल का बर्तन बनाने वाले ठठेरा या कसेरा समाज के लोगों को सरकार द्वारा कोई आर्थिक सहयोग या अनुदान नहीं मिलने से फैक्ट्रियां बंद हो गईं।

4. पोखर और खाली जमीन पर मकान बनते जा रहे हैं, जिसके कारण मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्भकार समाज को मिट्टी मुश्किल से उपलब्ध हो पाती है।

5. लोहार जाति के लोगों का व्यवसाय लगभग पूरी तरह से ठप हो गया है, जिससे उन्हें अपने पारंपरिक व्यवसाय जगह दूसरी जगहों पर नौकरी करनी पड़ रही है।

सुझाव

1. विश्वकर्मा समाज में पांच मुख्य जातियां समाहित हैं, इनके उत्थान के लिए देश और राज्यों में राजनीतिक भरागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।

2. केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना का लाभ लेागों तक पहुंचे, इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।

3. सरकार के द्वारा विश्वकर्मा समाज को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने एवं व्यवसाय के लिए ब्याज मुक्त ऋण की व्यवस्था होनी चाहिए।

4. लकड़ी का सामान बनाने वाले बढ़ई समाज के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए उन्हें लोन के साथ आरा मशीन लगाने की अनुमति मिलनी चाहिए।

5. ठठेरा और स्वर्णकार समाज भी विश्वकर्मा समाज के अंग हैं और इन्हें भी प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना में जोड़कर आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

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