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विष्णुपद मंदिर निजी संपत्ति नहीं, गयाधाम पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला; हार गए गयापाल, क्या है विवाद?

विष्णुपद मंदिर के स्वामित्व को लेकर धार्मिक न्यास बोर्ड और गयापालों के बीच 1977 से विवाद चल रहा है। 1992 में गया कोर्ट ने गयापालों के पक्ष में फैसला दिया था। इसके खिलाफ धार्मिक न्यास बोर्ड ने गया कोर्ट में अपील दायर की।

Sudhir Kumar हिन्दुस्तान, गयाFri, 9 Aug 2024 06:38 AM
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मोक्षनगरी के रूप में विश्व भर में प्रसिद्ध गयाधाम के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर को लेकर 47 साल पुराने चले आ रहे कानूनी विवाद (टाइटिल सूट) में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने गयापालों की याचिका को खारिज करते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। धार्मिक न्यास बोर्ड की तरफ से पैरवी करने वाले अधिवक्ता राजन प्रसाद ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विष्णुपद एक धार्मिक सार्वजनिक ट्रस्ट है, ना कि गयापालों की निजी संपत्ति। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और आर महादेवन की खंडपीड ने छह अगस्त को यह आदेश पारित किया है।

विष्णुपद मंदिर के स्वामित्व को लेकर धार्मिक न्यास बोर्ड और गयापालों के बीच 1977 से विवाद चल रहा है। 1992 में गया कोर्ट ने गयापालों के पक्ष में फैसला दिया था। इसके खिलाफ धार्मिक न्यास बोर्ड ने गया कोर्ट में अपील दायर की। इस बार फैसला धार्मिक न्यास बोर्ड के पक्ष में आ गया। तब गयापाल विरोध में पटना हाईकोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट ने भी 2023 में फैसला बरकरार रखा। पंडा समाज ने सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। यहां सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को ही सही माना। गौरतलब है कि यह फैसला मंदिर के स्वामित्व को लेकर है, जबकि मंदिर के प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए लंबित है।

मंदिर के प्रबंधन का मामला सुप्रीम कोर्ट में है लंबित

अधिवक्ता राजन प्रसाद ने बताया कि मंदिर के प्रबंधन और विकास को लेकर हाईकोर्ट में गौरव कुमार ने 2020 में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसी याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस संजय करौल ने विष्णुपद मंदिर के लिए कमेटी गठन का निर्देश दिया था। इस आदेश के खिलाफ गयापाल समाज सुप्रीम कोर्ट में गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्टे लगा रखा है। मामला लंबित है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से गयापाल नाराज

सुप्रीम कोर्ट के विष्णुपद मंदिर के विष्णुपद के सार्वजनिक संपत्ति के फैसले से गयापाल दुखी व नाराज हैं। गयापाल शंभू लाल विट्ठल, समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक, सदस्य महेश लाल गुपुत, सुनील हल, चंदन गुर्दा व छोटू बारिक आदि ने कहा कि फैसले का पंडा समाज के करीब 10 हजार लोगों पर असर है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक दुखी हैं। इंतजार है आगे क्या होता है।

सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे गयापाल

प्रमुख गयापाल और श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल विट्ठल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर गयापाल समाज की बैठक होगी। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। अध्यक्ष ने कहा कि विष्णुपद मंदिर नहीं, पिंडदान स्थल है और गयापालों की जीविका का मुख्य साधन है। हजारों सालों की व्यवस्था से गयापालों को दूर किया जा रहा है।

धार्मिक न्यास बोर्ड जारी कर सकता है नोटिस

जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद धार्मिक न्यास बोर्ड श्री विष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति को नोटिस जारी कर सकता है। संभव है कि मंदिर का संचालन धार्मिक न्यास बोर्ड अपने हाथों में लेगा। संचालन के लिए एक कमेटी का भी गठन किया जा सकता है।

क्या है पूरा मामला?

विष्णुपद मंदिर के प्रबंधन को लेकर पहली बार 1968 में गयापाल पंडा को नोटिस दिया गया था। विष्णुपद मंदिर के रखरखाव व देखरेख को लेकर सार्वजनिक शिकायत मिलने पर बिहार राज धार्मिक न्यास पर्षद ने यह नोटिस दिया था। नोटिस के बाद पहली बार गयापालों ने 1977 में गया कोर्ट में टाइटिल सूट दायर दिया। यहां के बाद मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक गया। करीब 47 सालों तक चले विवाद का फैसला 6 अगस्त मंगलवार को आया। सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विष्णुपद मंदिर को निजी नहीं सार्वजनिक संपत्ति है।

बोर्ड के स्थानीय अधिवक्ता राजन प्रसाद ने बताया कि विष्णुपद मंदिर में व्यवस्था में कमी और अन्य बातों को लेकर पहली बार नोटिस 1963 को दी गई थी। शिकायत के बाद धार्मिक न्यास बोर्ड ने गयापालों को नोटिस दयिा था, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया। जवाब देने के बजाए गयापाल ने जिला जज के यहां मिसलेनियस वाद दायर कर दिया। 1968 जिला जज ने बोर्ड को पुन नोटिस देने का आदेश दिया। इस बार समिति के सभी सदस्यों को देने को कहा। आदेश पर बोर्ड ने एक बार फिर ने नोटिस दिया। इसके बाद ही गयापाल समाज ने 1977 में गया कोर्ट में टाइटिल सूट 38/1977 दायर कर दिया। 

श्री प्रसाद ने बताया कि इस मामले में 1992 में गयापालों के पक्ष में एकतरफा फैसला आ गया। इसी फैसले के खिलाफ धार्मिक न्यास बोर्ड ने भी स्थानीय न्यायालय में ही अपील 43/93 दायर कर दिया। बोर्ड की ओर से वकील वे खुद राजन प्रसाद रहे। इसी मामले में 14 दिसम्बर 2020 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायधीश-1 ने फैसला दिया कि विष्णुपद मंदिर निजी नहीं सार्वजनिक संपत्ति है। इस फैसले के खिलाफ 2021 में गयापाल समाज ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। 2023 में हाईकोर्ट ने अपील को अस्वीकृत कर दिया। गया कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। फिर पंडा समाज हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील (स्पेशल लिव पिटीशन) दायर किया। 6 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने भी पंडा समाज के अपील को अस्वीकृत करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

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