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मोदी की तारीफ, नीतीश से बैर; चिराग पासवान की राह पर चले आरसीपी सिंह? 140 सीटें लड़ेंगे

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने आप सबकी आवाज नाम से नई पार्टी बना ली है। आरसीपी लंबे समय तक जेडीयू में रहे और पार्टी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नीतीश से रिश्ते बिगड़ने के बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थामा था लेकिन वहां भी उन्हें खास तरजीह नहीं मिली।

Jayesh Jetawat लाइव हिन्दुस्तान, पटनाThu, 31 Oct 2024 07:31 PM
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पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का साथ छोड़कर बिहार में नई पार्टी का गठन कर दिया है। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम आप सबकी आवाज (ASA) रखा है। आरसीपी सिंह ने 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य की 243 में से लगभग 140 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा भी कर दिया है। नई पार्टी की घोषणा करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की। वहीं, इशारों ही इशारों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नीतियों का खुलकर विरोध किया। अब इससे नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्योंकि आरसीपी सिंह उसी राह पर चलने के संकेत दे रहे हैं, जिस पर 2020 के चुनाव से पहले लोजपा रामविलास के मुखिया चिराग पासवान चले थे।

पटना में गुरुवार को मीडिया से बातचीत के दौरान आरसीपी सिंह ने कहा कि दीपावली के शुभ अवसर पर वह अपनी नई पार्टी लॉन्च कर रहे हैं। इस दिन सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती भी है। उन्होंने सरदार पटेल की जयंती को बड़े उत्सव के रूप में मनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया। आरसीपी ने जेडीयू से अपने रिश्ते के बारे में कुछ नहीं कहा। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लिए बिना ही उनकी नीतियों पर जमकर हमला बोला।

आरसीपी सिंह ने शराबबंदी कानून पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे बिहार को राजस्व की हानि हो रही है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय दूसरे प्रदेशों की तुलना में बहुत कम है। साथ ही बिहार में शिक्षा की हालत भी बदतर है।

140 सीटों पर चुनाव लड़ेगी ASA?

आरसीपी सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी 'आप सबकी आवाज' आगामी बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। उन्होंने बताया कि आधी से ज्यादा सीटों पर उनकी तैयारी है। 243 में से लगभग 140 सीटों पर उनके साथी चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं। हालांकि, उन्होंने आगामी चुनाव में गठबंधन को लेकर पत्ते नहीं खोले।

ब्यूरोक्रेट से नेता बने आरसीपी सिंह, कभी नीतीश के खास रहे

आरसीपी सिंह की गिनती एक समय सीएम नीतीश के करीबियों में होती थी। दोनों ही नालंदा जिले से ही ताल्लुक रखते हैं। आरसीपी सिंह गिनती ब्यूरोक्रेट से नेता बने चुनिंदा लोगों में होती है। वे यूपी कैडर के आईएएएस रह चुके हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान नीतीश जब रेल मंत्री थे, तब आरसीपी सिंह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में तैनात थे। इसी दौरान दोनों एक-दूसरे के संपर्क में आए। इसके बाद आरसीपी का नीतीश से गहरा नाता जुड़ गया।

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2005 में जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को राज्य में बुलाकर अपना प्रधान सचिव बना दिया। 2010 में आरसीपी सिंह ने वीआरएस ले लिया और जेडीयू में शामिल हो गए। जेडीयू से वे दो बार राज्यसभा गए। संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करते हुए वे नीतीश के बाद नंबर दो के नेता हो गए। नीतीश ने उन्हें जेडीयू का अध्यक्ष भी बना दिया। हालांकि, 2021 में नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच मतभेद देखने को मिले। आरसीपी मोदी कैबिनेट में शामिल हो गए।

धीरे-धीरे आरसीपी सिंह जेडीयू में साइडलाइन होते गए और उनपर बीजेपी से नजदीकी बढ़ाने के भी आरोप लगते रहे। जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा और मोदी कैबिनेट से भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। जेडीयू के शीर्ष नेताओं से लंबी अदावत के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। फिर कुछ महीनों बाद वे बीजेपी में शामिल हो गए। मगर यहां भी उन्हें उतना महत्व नहीं मिला। अब आरसीपी सिंह ने बीजेपी को भी अलविदा कहकर नई पार्टी बना ली है।

चिराग की राह पर चल पड़े आरसीपी सिंह?

चर्चा है कि आरसीपी सिंह अब केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की राह चल पड़े हैं। बीजेपी से दोस्ताना रिश्ते रखते हुए उनकी नई पार्टी आगामी बिहार चुनाव में प्रत्याशी उतार सकती है। वे जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारकर नीतीश कुमार की पार्टी के समीकरण बिगाड़ सकते हैं। हालांकि, अभी बिहार चुनाव में करीब एक साल का समय बचा है। ऐसे में आने वाले वक्त में बहुत से राजनीतिक समीकरण बनेंगे और बदलेंगे। ऐसे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

चिराग पासवान ने 2020 में एनडीए से अलग होकर लड़ा था चुनाव

2020 के विधानसभा चुनाव से पहले लोक जनशक्ति पार्टी में टूट होने के बाद चिराग पासवान एनडीए से अलग हो गए थे। उन्होंने अकेले ही चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। हालांकि, उस चुनाव में खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताते हुए चिराग ने बीजेपी का समर्थन किया। उन्होंने चिराग की पार्टी ने उन सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे जहां से बीजेपी लड़ रही थी। बाकी सभी सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिससे जेडीयू को नुकसान झेलना पड़ा था। इस वजह से नीतीश और चिराग के बीच तनातनी भी देखने को मिली थी। हालांकि, अब चिराग की लोजपा रामविलास और नीतीश की जेडीयू, दोनों ही एनडीए में साथ हैं।

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