संस्कृत की बढ़ रही है लोकप्रियता : कुलपति
दरभंगा में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में विशेषज्ञों ने कहा कि संस्कृत का ज्ञान आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र और ज्योतिष के लिए आवश्यक है। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने संस्कृत की...
दरभंगा। मानवीय मूल्य, सनातन धर्म तथा संस्कृति की भाषा संस्कृत की विकसित भारत-2047 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका है। संस्कृत के बिना आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष आदि का ज्ञान संभव नहीं है। यह किसी धर्म, जाति, वर्ग या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उदघाटन सत्र में शनिवार को महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने उक्त बातें कही। लनामिवि के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग, वीएसजे कॉलेज, राजनगर एवं एमएलएस कॉलेज, सरिसबपाही, मधुबनी के संयुक्त तत्वावधान में संस्कृतशास्त्र एवं उसके विविध आयाम विषयक सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि आज विभिन्न माध्यमों से संस्कृत सिखाया जा रहा है।
उम्मीद है कि निकट भविष्य में संस्कृत लोकप्रियता के उत्कर्ष को प्राप्त करेगी। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा ने कहा कि विश्व के सभी ज्ञान का मूलाधार संस्कृत ही है, जिसे आज ज्यादा पढ़ने और जानने की जरूरत है। इसे निरंतर अभ्यास तथा स्वाध्याय से ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विद्या की भूमि मिथिला अपने निवासियों के लिए संपूर्ण तीर्थ रही है। हमें अपने जीवन का परम लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए। मानव धन से नहीं, बल्कि आत्मज्ञान से तृप्त होता है। बीज वक्ता संस्कृत विवि के पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने सेमिनार के विषय को समसामयिक एवं उपयोगी बताते हुए कहा कि संस्कृत सदा हमारी पथ प्रदर्शिका रही है। संस्कृत मंत्रों एवं श्लोक के उच्चारण से हमारी तंत्रिकाओं एवं अंगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। संस्कृत ज्ञान से ही पुन: भारत विश्वगुरु बनेगा। प्रो. मंजू राय ने कहा कि संस्कृत भारत की आत्मा एवं ज्ञान-विज्ञान का स्रोत है जो ऋषियों, मुनियों एवं दार्शनिकों की भाषा है। गणित, विज्ञान और आयुर्वेद आदि का मूल स्रोत संस्कृत है। यह मानव को सभ्य एवं सम्माननीय भी बनता है। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. घनश्याम महतो ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सीधा जुड़ा हुआ है। यह हमें कर्तव्य-बोध की शिक्षा देती है। कार्यक्रम का डॉ. साधना शर्मा के संचालन में प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए वीएसजे कॉलेज के प्रभारी प्रधानाचार्य प्रो. जीवानंद झा ने कहा कि संस्कृत अत्यंत विस्तृत एवं समृद्ध है जो कंप्यूटर के लिए भी सर्वाधिक व्यावहारिक भाषा है। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कृष्ण कांत झा ने किया। सेमिनार में कई शिक्षक, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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