पूरे सावन गंगा बदलती है अपना रूप, कभी सीढ़ी तो कभी जमीन पर
शुरुआत में गंगा अपने निचले स्तर पर रहती है, धीरे-धीरे बढ़ती जाती है श्रावणी मेला
सुल्तानगंज (भागलपुर), निज संवाददाता। सावन माह में गंगा अपना रूप बदलती रहती है। कभी सीढ़ी तो कभी जमीन पर पहुंच जाती है। गंगा की महिमा भी अपरंपार है। शुरुआत में गंगा निचले स्तर पर रहती है, फिर धीरे-धीरे बढ़कर सीढ़ी पर पहुंचती है। सूखे पड़े अजगैवीनाथ मंदिर को चारों ओर से घेर लेती है। कांवरिया इसे मैया गंगा की माया मानते हैं। पहले ध्वजा गली स्थित पुरानी सीढ़ी घाट होते हुए गंगा बहती थी। यहीं से कांवरिया जल उठाते थे। अब सावन में ही पुरानी सीढ़ी पर गंगा पहुंचती है। श्रावणी मेला आज भले ही कई घाटों में बंट गया है और कांवरिया विभिन्न घाटों पर या फिर प्रशासन द्वारा व्यवस्था की गई घाटों पर गंगा स्नान कर पवित्र गंगाजल लेकर अजगैवीनाथ धाम से बाबाधाम के लिए प्रस्थान करते हैं। लेकिन स्थानीय पंडा की मानें तो यह मेला पहले ध्वजा गली स्थित स्वामी जी घाट (पुरानी सीढ़ी घाट) पर लगती थी। पंडा चुन्नू मुन्नू लाल मोहरिया कहते हैं कि पहले सावन में यह मारवाड़ी समुदाय का मेला माना जाता था। जहां 90% मारवाड़ी समुदाय के लोग आते थे और 10% ही अन्य समुदाय के लोग रहते थे। उन्होंने बताया कि नई सीढ़ी घाट बनने के बाद यह मेला जहाज घाट, अजगैवीनाथ घाट, नई सीढ़ी घाट पर लगने लगा। कहते हैं वर्ष 1975 में ध्वजा गली में यह मेला चरम पर था। ध्वजागली के पंडा बताते हैं कि आज गंगा का स्वरूप बदल गया है। सावन में ही ध्वजागली के इस घाट पर गंगा दस्तक देती है। हमलोग न केवल सावन मास में बल्कि 365 दिन कांवरियों को जल संकल्प कराते थे।
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