युधिष्ठिर को भीष्म पितामह ने बताया-सोमवती अमावस्या का महत्व और पीपल प्रदक्षिणा विधि
- आज देशभर में सोमवती अमावस्या मनाई जा रही है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है और रात को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। अगर आप भी व्रत रखे हैं, तो यहां सोमवती अमावस्या का महत्व
आज देशभर में सोमवती अमावस्या मनाई जा रही है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है और रात को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाते हैं। इस दिन व्रत भी रखा जाता है। अगर आप भी व्रत रखे हैं, तो यहां सोमवती अमावस्या का महत्व और पीपल की प्रदक्षिणा करने का तरीका आपको पता होना चाहिए- एक बार युधिष्ठिर को भीष्मपितामह ने इस व्रत का महत्व बताया-
सूत जी बोले-शरश्य्या पर पड़े हुए पितामह भीष्म जी के समीप जा कर धर्मात्मा युधिष्ठिर प्रणाम करके हितकारी वचन बोले। युधिष्ठिर बोले-भीससेन के कोप से मुख्य 2 कौरव मारे गए और अब सब राजाओं को युद्ध में अर्जुन ने मार डाला। दुर्योधन की बुरी सलाह से मेरे कुल का नाश हो गया। अब बालक, वृद्ध और और दुखी मनुष्यों को छोड़कर कोई राजा नहीं रह गया है। भारतवंश में केवल हम पांच भाई ही शेष हैं। यद्दपि हमारा एक छत्र राज्य है,लेकिन मुझे यह अच्छा नहीं लगता। अपना जीवन भी मुझे अच्छा नहीं लगता, भोग में कुछ प्रीति नहीं, वंश का नाश देखकर मेरे ह्रदय में संताप रहता है। उत्तरा के गर्भ का बालक भी अशवत्थामा के अस्त्र से जल गया। इस कारणइस पिंड विच्छेद को देखकर मुझे दोगुना दुख हो रहा है। हे पितामह अब आप ही बताएं कि हम क्या करें और कहां जाएं जिससे शीघ्र ही चिरंजीवी संतति प्राफ्त हो। भीष्म जी बोले हे राजन सुनो-मैं तुम्हें व्रतों में एक उत्तम व्रत बताता हूं, जिसके करने से सब कुछ सही होगा।
इसके बाद भीष्मपितामह ने सोमवती अमावस्या का महत्व बताया कि इस दिन पीपल के पेड़ के पास जाकर जर्नादन का पूजन करें, रत्न, धातु या फल, मिठाई , जो ले लेना चाहते हैं वो लें और पीपल के पेड़ की प्रदक्षिणा करें, हर प्रदक्षिणा में चढ़ाते जाएं। चढ़ाए हुए फलो या मिठाई को अलग रखते जाएं। जब 108 प्रदक्षिणा पूरी हो जाएं तो अपनी शक्ति के अनुसार ये 108 प्रदक्षिणा की वस्तुएं देकर व्रत का समापन करें। उन्होंने बताया कि तुम उत्तरा को यह व्रत को कराओं , तो उसका पुत्र जीवित हो जाएगा। वह तीनों लोकों में गुणवान और विद्वान पुत्र होगा। सोमवती अमावस्या का व्रत भगवान विष्णु को प्रीतिकर होने के कारण बहुत फल देने वाला है।
सोमवती व्रत कथा से लिया गया-
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