पितृपक्ष के पहले दिन श्राद्ध कर्म के लिए 3 मुहूर्त, इस विधि से दें पितरों को तर्पण
- Shradh 2024, Pitru Paksha: इस साल 15 दिनों तक पितृपक्ष चलेंगे। इन 15 दिनों में पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म से वंशजों का पितृ दोष दूर हो सकता है।
Shradh 2024, Pitru Paksha: साल में 1 बार पितृपक्ष के दिन आते हैं। ये दिन पितरों को समर्पित हैं। इस साल 15 दिनों तक पितृपक्ष चलेंगे। इन 15 दिनों में पितरों की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी लोक पर पितर आते हैं। पितृपक्ष में रोज जल दान व तिथि पर अन्न वस्त्र आदि दान करना चाहिए। पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म से वंशजों का पितृ दोष दूर हो सकता है। कल से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं पितृपक्ष के पहले दिन का मुहूर्त व तर्पण की विधि-
कल से शुरू पितृपक्ष: महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय बताया कि पितृपक्ष 18 सितम्बर के दिन बुधवार को प्रातः 08.42 बजे से पुनीत पर्व प्रारंभ होगा। उस दिन प्रातः काल 8 बजकर 41 मिनट तक पूर्णिमा तिथि है। उसके बाद पितृपक्ष आरम्भ हो जाएगा। उसी दिन से पितृ तर्पण व पिण्ड दान आदि कार्य आरम्भ हो जायेंगे। इस वर्ष पितृ पक्ष 15 दिन का है। मध्याह्ने श्राद्धम् समाचरेतअतः श्राद्ध कार्य कभी भी मध्याह्न में करना चाहिए। पितृ पक्ष वर्ष में 1 बार अश्विनी कृष्ण पक्ष में पितरों की पूजा हेतु किया जाता है। कहा गया है कि देवताओं की पूजा में कदाचित भूल होने पर देवता क्षमा कर देते हैं, परन्तु पितृ कार्य में न्यूनता व आलस्य प्रमाद करने से पितर असन्तुष्ट हो जाते हैं, जिससे हमें रोग, शोक आदि दुख भोगने पड़ते हैं। पितृ विसर्जन 02 अक्तूबर दिन बुधवार को है।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शास्त्रों में हर जगह नित्य देखने को मिलता है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव। अतः माता-पिता के समान कोई देवता नहीं है। उनकी संतृप्ति और आशीर्वाद हमें जीवन में हर प्रकार का सुख देता है। अतः इस भ्रान्ति को मन मस्तिष्क में न पालकर इस पितृ पर्व को हर्षोल्लास पूर्वक मनाना चाहिए। इस, जिनके पिता के मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। उनको श्राद्ध पितृ विसर्जन को करना चाहिए।
पितृपक्ष के पहले दिन का मुहूर्त: कल 18 सितम्बर, पितृपक्ष के पहले दिन, प्रतिपदा के श्राद्ध की तिथि है। पं. आनंद दुबे के अनुसार, पितृ कर्म का उत्तम समय-
कुतुप काल: 11:36 से 12:25 बजे तक
रोहिण काल: 12:25 से 1:14 बजे तक
अपराह्न काल: 1:14 से 3:41 बजे तक
इस विधि से दें तर्पण
प्रत्येक दिन 15 दिनों तक कुशा की जूडी, जल के लोटे के साथ ले जा कर पीपल के नीचे कुशा की जूडी को पितृ मानकर जल से तर्पण करें। तर्पण के बाद घर आकर प्रति दिन ही भोजन के समय एक रोटी गाय को, एक रोटी कुत्ते को और एक रोटी कौओं को जरूर खिलाएं। साथ ही अगर संभव हो सके तो अपनी छत पर किसी चौडे पात्र में जल भरकर पक्षियों के लिए जरूरी रखें और अनाज के दाने भी छत पर डालें। ब्राहृमण भोजन, श्राद्ध, तर्पण तथा अमावस्या पूजन इत्यादि जैसे अपने घर करते आ रहे हैं, वह वैसे ही करें।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियां मान्यताओं पर आधारित हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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