जब वह बेशर्मी से साथ रह सकते हैं...; लिव-इन रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने पर उत्तराखंड HC का सवाल
- याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि कई लिव-इन रिश्ते सफल विवाह में बदल चुके हैं, और ऐसे में यह प्रावधान जोड़ों के भविष्य और गोपनीयता में दिक्कतें पैदा कर सकता है।
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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने समान नागरिक संहिता के तहत लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीयन को अनिवार्य करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने पूछा है कि जब जोड़े बिना शादी के बेशर्मी से साथ रह सकते हैं तो इसका रजिस्ट्रेशन कराने में निजता का हनन कैसे हो सकता है।
मुख्य न्यायाधीश जी.नरेंदर और जस्टिस आलोक मेहरा की खंडपीठ ने राज्य में लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा, 'आप समाज में रह रहे हैं, दूर किसी जंगल की गुफा में नहीं'। पड़ोसियों से लेकर समाज तक, लोगों को आपके रिश्ते के बारे में पता है और आप शादी किए बिना बेशर्मी के साथ रह भी रहे हैं। फिर लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीयन आपकी निजता का हनन कैसे कर सकता है?'
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में यह याचिका उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (UCC) में लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन कराने के प्रावधान के खिलाफ लगाई है, जिसमें ऐसा न कराने पर कारावास या जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वह UCC के इस प्रावधान से व्यथित हैं, क्योंकि यह उनकी निजता पर हमला है। उन्होंने दावा किया कि ऐसा करने से अलग-अलग धर्मों के जोड़ों के लिए समाज के बीच रहकर लिव-इन में रहना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि कई लिव-इन रिश्ते सफल विवाह में बदल चुके हैं, और ऐसे में यह प्रावधान जोड़ों के भविष्य और गोपनीयता में दिक्कतें पैदा कर सकता है।
इससे पहले UCC के खिलाफ दायर जनहित याचिका और अन्य याचिकाओं पर अदालत ने निर्देश दिया था कि UCC से पीड़ित लोग हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अदालत इस मामले और इसी तरह की अन्य की अन्य याचिकाओं पर 1 अप्रैल को सुनवाई करेगी।
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