उत्तराखंड-हिमालयी राज्यों में बार-बार क्यों आ रहे भूकंप? वजह बताकर भृ-वैज्ञानिकों को इस बात की चिंता
भूकंप कब, कहां और कितनी तीव्रता का आएगा, इसके पूर्वानुमान की तकनीक अभी तक उपलब्ध नहीं है। भू-वैज्ञानिकों ने भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों की शिनाख्त अवश्य की है।
देश के हिमालयी सहित उत्तरी राज्यों में आज एक बार फिर तेज भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटकों के बाद लोग अपने-अपने घरों से बाहर निकले तो ऑफिस में काम कर रहे लोग सुरक्षित स्थान की ओर भागे थे। हिमालयी सहित मैदानी राज्यों में बार-बार भूकंप ने भू-वैज्ञानिकों के माथे पर भी चिंता की लकीरें डाल दी हैं।
भूकंप कब, कहां और कितनी तीव्रता का आएगा, इसके पूर्वानुमान की तकनीक अभी तक उपलब्ध नहीं है। भू-वैज्ञानिकों ने भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों की शिनाख्त अवश्य की है। भूकंप के लिहाज से देश को चार जोन में बांटा गया है। सबसे कम खतरे वाला इलाका जोन- दो कहलाता है। इसमें दक्षिण भारत आता है।
जोन- तीन में मध्य भारत को रखा गया है। जोन- चार तुलनात्मक रूप से ज्यादा खतरनाक है, जिसमें उत्तर प्रदेश का ज्यादातर क्षेत्र, उत्तराखंड का निचला हिस्सा और दिल्ली शामिल हैं। सबसे खतरनाक जोन- पांच में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड आते हैं। बीते सवा सौ साल के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि भारत में सबसे शक्तिशाली पांच में से चार भूकंप हिमालय या उसकी तलहटी से सटे राज्यों में आए।
उत्तर भारत अत्यंत संवेदनशील है, पर पांचवां बड़ा विनाशकारी भूकंप गुजरात के भुज में आने का मतलब है कि देश का पश्चिमी इलाका भी खतरे की जद में है। लिहाजा पूरे देश को ध्यान में रखते हुए हमें योजनाएं बनानी होंगी।
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का ताजा शोध बताता है कि हिमालय की तलहटी में धरती को चीर देने वाले भूकंप भी पहले आ चुके हैं। हरिद्वार के पास लालढांग में कम से कम दो बार वर्ष 1344 और 1505 में आठ से ज्यादा मैग्नीटॺूड के भूकंप आने के सबूत मिले हैं, जिनसे एक इलाके में जमीन 13 मीटर ऊपर उठ गई थी।
लालढांग से लेकर रामनगर, टनकपुर और नेपाल तक जमीन पर करीब 200 किलोमीटर लंबी दरार पड़ गई थी। तब अनगिनत लोग और घर इस भूकंप की भेंट चढ़े होंगे। हरिद्वार से नेपाल तक धरती पर पड़ी दरार के कारण प्राकृतिक स्वरूप में, विशेषकर जलस्रोतों में बड़ा बदलाव हुआ होगा। क्या उस तरह के भयावह भूकंप भविष्य में भी आ सकते हैं?
तब से अब तक करीब एक हजार साल में जनसंख्या काफी बढ़ चुकी है। पिछले सौ वर्ष में तो अंधाधुंध निर्माण हुए हैं। बहुमंजिला इमारतों का प्रचलन बढ़ा है। अब यदि 13वीं सदी जैसा शक्तिशाली भूकंप आया, तो स्वाभाविक रूप से जनहानि कई गुना अधिक होगी, त्रासदी का अनुमान लगाना भी कठिन है। क्या वैसी बड़ी आपदा का सामना करने के लिए हम तैयार हैं?
प्रो.डॉ. आरजेजी. पेरुमल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान, देहरादून कहते हैं कि लोगों की आवासीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बडे़ पैमाने पर घरों का निर्माण हो रहा है। स्कूल, अस्पताल, पुल, फ्लाईओवर, सुरंग समेत अनेक परियोजनाएं निरंतर बन रही हैं। ऐसे में, 13वीं और 15वीं शताब्दी के भयावह भूकंप का वैज्ञानिक खुलासा जनता और सरकार, दोनों के लिए सबक होना चाहिए।
सड़कों के निर्माण के लिए बेतरतीब तरीके से पहाड़ काटे जा रहे हैं। कई जगह उनमें सुरंगे भी बनाई जा रही हैं। पहाड़ों पर चार-पांच मंजिल तक निर्माण अब आम हो चुका है, पर उनमें भूकंपरोधी उपाय नहीं किए जा रहे हैं। प्राकृतिक आपदा के वक्त एक भवन गिरने का असर दूसरे पर और दूसरे का असर तीसरे पर आता है और एक के बाद एक मकान जमींदोज होते चले जाते हैं।
इसी तरह, मैदानी इलाकों में बनाई जा रही गगनचुंबी इमारतें यदि भूकंपरोधी क्षमता वाली नहीं होंगी, तो बड़े भूकंप की स्थिति में त्रासदी भयानक साबित हो सकती है। इसलिए, लगातार भूकंप का सामना करने वाले जापान जैसे देशों से सीखा जा सकता है कि वहां जान-माल की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है। अगर सीखना नहीं है, तो फिर हमें खामियाजा भुगतने को तैयार रहना होगा।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।