तो क्या टल सकता था अल्मोड़ा बस हादसा! PWD को 2 साल में 7 करोड़ दिए फिर भी नहीं लगा क्रैश बैरियर
- अल्मोड़ा में सल्ट के मार्चुला में बस हादसे के बाद सामने आए तथ्यों की समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री ने सख्त रुख अख्तियार किया। हादसे के बाद सामने आया कि इस मार्ग पर क्रैश बरियर नहीं हैं। सड़क किनारे क्रैश बैरियर होने से वाहन को खाई में गिरने से काफी हद तक रोका जा सकता है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पौड़ी-रामनगर मार्ग पर वाहनों की सुरक्षा के लिए क्रैश बैरियर नहीं लगाने के मामले में जांच के आदेश दे दिए। साथ ही रोडवेज प्रबंधन को 10 दिन के भीतर राज्य में बसों की उपलब्धता का आकलन कर रिपोर्ट देने को कहा है।
अल्मोड़ा में सल्ट के मार्चुला में बस हादसे के बाद सामने आए तथ्यों की समीक्षा के बाद मुख्यमंत्री ने सख्त रुख अख्तियार किया। हादसे के बाद सामने आया कि इस मार्ग पर क्रैश बरियर नहीं हैं। सड़क किनारे क्रैश बैरियर होने से वाहन को खाई में गिरने से काफी हद तक रोका जा सकता है।
सचिवालय में समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि लोनिवि को क्रैश बैरियर के लिए पिछले दो साल में साढ़े सात करोड़ रुपये दिए गए। इसके बावजूद संवेदनशील स्थानों पर क्रैश बैरियर नहीं होना चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि मामले की जांच में जो भी अधिकारी-कार्मिक लापरवाही के दोषी पाए जाएंगे, उनके पर सख्त कार्रवाई होगी। बसों की कमी का विषय आने पर सीएम ने रोडवेज अधिकारियों को राज्य के सभी रूट पर बसों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा सर्वोच्च प्राथमिकता है। यातायात सुरक्षा में लापरवाही सामने आती है तो दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी। रोडवेज से अतिरिक्त बसों की जरूरत पर रिपोर्ट मांगी गई है। यात्रियों की सुविधा के लिए नई बसों की खरीद भी की जाएगी।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
हालात प्राइवेट बसों पर टिका है पहाड़ का सफर
सरकारी बस सेवा की कमी के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में यातायात का प्रमुख साधन प्राइवेट बसें, टैक्सियां और मैक्सी वाहन ही हैं। कुमाऊं में रोडवेज के 10 डिपो के पास पहाड़ में चलाने के लिए महज करीब 250 बसों का बेड़ा है, वहीं पूरे कुमाऊं भर में 400 से अधिक निजी बसें लोगों के हर दिन के सफर का जरिया हैं।
सार्वजनिक यातायात के इन प्राइवेट वाहनों का किराया अपेक्षाकृत भी कम है और संचालन का समय भी तय है। सल्ट क्षेत्र में हुए भीषण बस हादसे का एक कारण क्षमता से अधिक यात्रियों का बस में सवार होना भी रहा है।
इससे एक बार फिर पहाड़ की सार्वजनिक यातायात व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे हैं। सरकारी होने के बावजूद उत्तराखंड परिवहन निगम की पहाड़ में बस सेवाएं सीमित हैं। परिवहन निगम की 40 से अधिक रूटों पर सेवा ही बंद हो चुकी है।
कुमाऊं में पहाड़ के लिए रोडवेज के बेड़े में 240 से अधिक बसें हैं, जिसमें से हर दिन 160 से 170 बसें 70-80 रूटों पर आती-जाती हैं। इसमें आधी से अधिक बसें दिल्ली और देहरादून के लिए चलती हैं।
वहीं दूसरी ओर साल 1939 से चल रही कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन (केएमओयू) के पास 350 से अधिक बसों का बेड़ा है। वहीं रामनगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर, रानीखेत और पिथौरागढ़ रूट पर भी केएमओयू की बसों का ही राज है। वहीं दूसरी ओर रामनगर से गढ़वाल की ओर कुमाऊं आदर्श, गढ़वाल मोटर यूजर्स और जीएमओयू की बसों का भी संचालन होता है।
रोडवेज में बसों की कमी के कारण पहाड़ के बंद पड़े रूटों की जानकारी निगम मुख्यालय को भेजी गई थी। उसी के अनुसार डिपो को नई बसें आवंटित की जा रही हैं। नई बसों के पहुंचने के बाद बंद रूटों पर बस सेवा बहाल करने के लिए सभी संबंधित डिपो को निर्देश दिए गए हैं।
मनोज दुर्गापाल, एजीएम कार्मिक, रोडवेज मंडलीय कार्यालय, काठगोदाम
आजादी से पहले से केएमओयू कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में सेवा दे रहा है। बसों की फिटनेस और मेंटेनेंस के लिए सभी बस मालिकों को भी समय-समय पर निर्देश दिए जाते हैं। करीब 350 बसों का बेड़ा हमारी संस्था के पास है। जिन स्थानों के लिए बसें कम हैं, अगर ये रूट भी केएमओयू को दे दिए जाएं तो बसों में यात्रियों का दबाव कम होगा।
सुरेश सिंह डसीला, अध्यक्ष, कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन
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