महाकुंभ 2025: महिला संन्यासी रुद्राक्ष संग धारण करती हैं गुरु से मिला जनेऊ, दी जाती है पूर्ण दीक्षा
- महिला संन्यासी रुद्राक्ष के साथ ही गुरु से मिला जनेऊ धारण करती हैं। महाकुम्भ के चौथे स्नान पर्व पर होने वाले दीक्षांत समारोह में पूर्ण दीक्षा दी जाती है।
संन्यासी का जीवन जीने वाली महिलाएं भी पुरुषों की तरह जनेऊ पहनती हैं। अंतर बस इतना होता है कि महिला संन्यासी जनेऊ को रुद्राक्ष के साथ अपने गले में पहनती हैं। इनके लिए पुरुषों की भांति जनेऊ के संस्कार को निभाना जरूरी नहीं होता। संन्यास के वक्त दी जाने वाली पंच दीक्षा में यह जनेऊ उनके पांच गुरुओं से कोई एक गुरु देता है। संन्यासी बनने के बाद पुरुषों को अपने परिवार और रिश्तेदारों से दूर रहना होता है पर महिला संन्यासियों के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है।
महिलाओं के संन्यासी बनने की प्रक्रिया किसी बड़ी कार्पोरेट कंपनी में नौकरी पाने से भी कठिन है। श्री सन्यासिनी दशनामी जूना अखाड़ा की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत आराधना गिरि ने बताया कि संन्यास लेने की इच्छा व्यक्त करने वाली महिलाओं की विधिवत काउंसिलिंग होती है। उन्हें संन्यास जीवन के कठिन नियम बताकर सोचने का वक्त दिया जाता है। अखाड़ों के पदाधिकारी पूरी तरह संतुष्ट होते हैं तब जाकर संन्यास जीवन की पहली सीढ़ी पंच दीक्षा से शुरू होती है। यह दीक्षा पांच गुरु, महिला या पुरुष कोई भी, देते हैं।
दस वर्ष की उम्र में संन्यास लेने वाली हिमांचल प्रदेश के मंडी जिले की रहने वाली व अखाड़े की श्रीमहंत ललिता गिरी बताती हैं कि पांच गुरु उन्हें चोटी, गेरूआ वस्त्र, रुद्राक्ष, भभूत और जनेऊ देते हैं। चोटी देने वाले को चोटी, वस्त्र देने वाले को वस्त्र गुरु कहते हैं। गुरु इन्हें ज्ञान और मंत्र के साथ संन्यासी जीवन शैली, संस्कार, खान-पान, रहन-सहन आदि की जानकारी देते हैं। इसका पालन करते हुए महिला संन्यासियों को अपनी पांच इंद्रियों काम, क्रोध, अंहकार, मध और लोभ पर नियंत्रण करना पड़ता है। कुम्भ के चौथे स्नान पर्व पर दीक्षांत समारोह में पूर्ण दीक्षा दी जाती है। इस दिन इन्हें व्रत रखना होता है। ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप कर गंगा में 108 डुबकी लगानी होती है और हवन होता है।