रामलला के शस्त्रों का पूजन आज होगा, हाथों में तीर- धनुष लिए बालक रूप में हैं विराजमान
विजयादशमी (दशहरा) का पर्व शनिवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर शस्त्र पूजन की परम्परा पौराणिक काल से चली आ रही है। इस परम्परा के निवर्हन के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
विजयादशमी (दशहरा) का पर्व शनिवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर शस्त्र पूजन की परम्परा पौराणिक काल से चली आ रही है। इस परम्परा के निवर्हन के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। नियमित पूजा-अर्चना के साथ शस्त्र पूजन की अलग से तैयारी भी की गयी है। इस विशेष पूजन के लिए तैयारियां विधिवत पूरी कर ली गई हैं। पूजन का कार्यक्रम भोर से ही आरंभ हो जाएगा। भक्तों का रेला उमड़ने की उम्मीद को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त भी किए गए हैं।
तीर-धनुष होने के कारण पूजन की परंपरा निभाएंगे
राम मंदिर में पांच वर्षीय बालक राम की प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को हुई। उनके श्रीविग्रह के हाथों में तीर- धनुष मौजूद हैं, इसलिए इसके पूजन की परम्परा निभाई जाएगी। बालक राम की प्रतिष्ठा के पहले विराजमान रामलला नवजात शिशु में यहां 22/23 दिसम्बर 1949 से हैं। नवजात शिशु के कारण उनके पास कोई शस्त्र नहीं था। यह स्थिति 21 जनवरी 2024 तक थी। इसके सापेक्ष अन्य सभी वैष्णव मंदिरों में विराजमान भगवान के विग्रहों के हाथों में अलग-अलग आयुधों के कारण उन सभी अस्त्रत्त्-शस्त्र का पूजन होता रहा है।
रावण युद्ध के समय से शस्त्र पूजन की है परंपरा
प्रचलित किंवदंती के अनुसार महाबली राक्षस महिषासुर को युद्ध में ललकारने से पहले देवताओं ने मां के साथ -साथ उनके शस्त्रत्तें का पूजन किया था। उसी क्रम में रावण से युद्ध के पहले भगवान राम ने भी गुरुओं द्वारा प्रदत्त विद्या व उनके आयुधों का पूजन किया था। नवरात्र पर्व को शक्ति उपासना का पर्व माना गया है। वर्ष में पड़ने वाले चार नवरात्रों में शारदीय नवरात्र में विशेष रूप से दुर्गा पूजा महोत्सव के रूप में मनाई जाती है। देश के अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग शास्त्रत्तेक्त पद्धतियां है।
आज दशमी के दिन ही अनुष्ठान की पूर्णाहुति
नवरात्र में नौ दिवसीय अनुष्ठान की पूर्णाहुति दशमी तिथि पर होती है। इसी कड़ी में शनिवार को हवन-पूजन के साथ चल रहे अनुष्ठान की पूर्णाहुति होगी। शाक्त परम्परा में देवी मंदिरों के सापेक्ष वैष्णव परम्परा के मंदिरों में गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीराम चरित मानस अथवा श्रीमद वाल्मीकि रामायण का नवाह्न पारायण (पाठ) किया जाता है। इन नौ दिवसों में सम्पूर्ण ग्रंथ का पारायण पूर्ण हो जाता है। वहीं दुर्गा सप्तशती के परायण में हर दिन सम्पूर्ण अध्याय का पाठ होता है।