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खामियां छुपाने के लिए भाजपा को घेरा, क्यों सहयोगी भी उठाने लगे आरक्षण के मसले?

BJP की UP में सीटें क्या घटीं, विरोधी तो क्या सहयोगी भी उसे आंखें दिखाने लगे हैं। BJP ने बड़ी उम्मीद से जातीय गुणा-गणित दुरुस्त करने के लिए जातियों की रहनुमाई के नाम पर बने दलों से दोस्ती की थी।

Ajay Singh विशेष संवाददाता, लखनऊTue, 2 July 2024 06:25 AM
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BJP and its allies: भारतीय जनता पार्टी की यूपी में सीटें क्या घटीं, विरोधी तो क्या सहयोगी भी उसे आंखें दिखाने लगे हैं। भाजपा ने बड़ी उम्मीद से जातीय गुणा-गणित दुरुस्त करने के लिए जातियों की रहनुमाई के नाम पर बने दलों से दोस्ती की थी। मगर सारी कवायद व्यर्थ रही। भगवा खेमे का यूपी में 2013-14 में बुना सामाजिक ताना-बाना क्या बिखरा, जातियों के ठेकेदारों की कलई खुल गई। सब औंधे मुंह गिर पड़े। 

लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के सामने हाथ बांधे खड़े रहने वाले सहयोगी दल, खराब नतीजों के बाद अब बाहें चढ़ाते दिख रहे हैं। खामियां छुपाने को वे अपनी सीटों पर हार का ठीकरा भी भाजपा के सिर फोड़ रहे हैं। भाजपा के पास पूरब में अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के रूप में दो सहयोगी पहले से ही थे। लोकसभा चुनाव से पहले सुभासपा भी साथ आ गई।
 
उधर, पश्चिम में जाटों का एकतरफा वोट लेने की चाह में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को भी एनडीए में शामिल करा लिया गया था। मगर पूरब से लेकर पश्चिम तक भाजपा का प्रदर्शन अच्छा न रहने के बाद अब सहयोगी दल भी अपने-अपने तरीके से भाजपा पर दबाव बनाने में जुट गए हैं।  एक ओर भाजपा समीक्षा में जुटी है। संजीव बालियान, साध्वी निरंजन ज्योति से लेकर आरके पटेल, कौशल किशोर, राघव लखनपाल सहित तमाम प्रत्याशी भितरघात के आरोप लगा चुके हैं।

कुछ ऐसे ही आरोपों के स्वर भाजपा के सहयोगी दलों के कैंप से भी सुनाई दे रहे हैं। बीते दिनों ओमप्रकाश राजभर का तो समीक्षा बैठक के दौरान हार का ठीकरा भाजपा पर फोड़ने का एक वीडियो भी वायरल हो चुका है। हालांकि इस वीडियो के वायरल होते ही राजभर ने इसे फर्जी बताते हुए किनारा कर लिया था। 

केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा बनीं अनुप्रिया भी भाजपा को ही घेरने के प्रयास करती दिख रही हैं। संजय निषाद ने भी आरक्षण की विसंगतियां दूर करने की बात कहकर उनके सुर में सुर मिलाने का प्रयास किया है जबकि चुनाव से पहले और बाद में विपक्षी इंडिया गठबंधन संविधान और आरक्षण का मुद्दा उठाता रहा है। अब भाजपा के सहयोगियों द्वारा इसे उठाना चौंकाता है।

गठबंधन का रालोद को ही हुआ फायदा
पश्चिम में रालोद से गठबंधन का भाजपा को कई खास फायदा नहीं हो सका। अलबत्ता रालोद ने अपने कोटे की दोनों सीटें बागपत और बिजनौर जरूर जीत लीं। वहीं भाजपा जाट बाहुल्य मुजफ्फरनगर सीट हार गई। कैराना में भी हार का सामना करना पड़ा। मथुरा, अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी की सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर रालोद के साथ के बावजूद बहुत घट गया। हालांकि इन सीटों पर प्रत्याशियों को लेकर पार्टी में ही जमकर अंर्तविरोध उभरे थे।

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