मेनका और वरुण के प्रभाव वाली सीट पर बीजेपी का नया दांव, समझें पीलीभीत का चुनावी गणित
गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी और सांसद वरुण गांधी के नाम से पहचान रखने वाली पीलीभीत संसदीय सीट पर इस बार भाजपा ने चेहरा बदल दिया है। जितिन प्रसाद यहां से BJP के प्रत्याशी हैं।
Lok Sabha election 2024: रुहेलखंड में गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी और सांसद वरुण गांधी के नाम से पहचान रखने वाली पीलीभीत संसदीय सीट पर इस बार भाजपा ने चेहरा बदल दिया है। यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद इस बार इस संसदीय सीट पर भाजपा के प्रत्याशी हैं। वहीं, बसपा ने पूर्व मंत्री अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को मैदान में उतारा है। इंडिया गठबंधन के अंतर्गत सपा ने भगवत सरन गंगवार को प्रत्याशी बनाया है। बरेली निवासी भगवत सरन गंगवार पांच बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं। इनके मैदान में आने से चुनाव दिलचस्प हो गया है। हालांकि पीलीभीत से अब तक बसपा और सपा ने एक बार भी संसदीय चुनाव नहीं जीता है।
वर्ष 1989 से लगातार एक बार बीच में राम लहर 1991 को छोड़ दें तो जिले की संसदीय सीट पर मेनका गांधी और वरुण गांधी का ही दबदबा रहा। इस बार भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। पहले चरण में 19 अप्रैल को होने वाले चुनाव के लिए अब सीट पर सपा-बसपा और भाजपा की रणनीति साफ हो चुकी है।
जितिन पर दांव लगाने के पीछे भाजपा की सोची-समझी रणनीति
लंबे समय से भाजपा के पास रही पीलीभीत सीट पर दबदबा कायम रखना संगठन और प्रत्याशी के लिए आसान नहीं होगा। वरुण गांधी की जगह जितिन प्रसाद पर दांव लगाने के पीछे भाजपा की सोची-समझी रणनीति है। अब प्रचार के लिए अधिक समय भी नहीं हैं। हालांकि संगठन लगातार सक्रिय रहकर मैराथन प्रयास कर रहा है।
बसपा ने जातीय समीकरण, वोट बैंक के आधार पर बनाई रणनीति
बसपा ने अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को अपना प्रत्याशी बनाने से पहले वोट बैंक के अलावा जातीय समीकरण और कैडर वोट बैंक को ध्यान में रखकर रणनीति बनाई है। फूलबाबू बीसलपुर विधानसभा क्षेत्र से 1996, 2002 व 2007 में विधायक भी रहे चुके हैं। ऐसे में उनकी सर्व समाज में गहरी पैठ बताई जाती है। वे 2009 और 2014 में बसपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों बार वह तीसरे नंबर पर रहे थे।
सपा के भगवत सरन के पास लंबा राजनीतिक अनुभव
इंडिया गठबंधन के अंतर्गत सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार बरेली में तहसील नवाबगंज के हैं। उनका यहां आना-जाना रहा है। दो बार पूर्व मंत्री और पांच बार विधायक रहे चुके सपा के भगवत सरन के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है। उनके बारे में टिकट तय करने से पहले पार्टी संगठन ने सजातीय वोट बैंक के अलावा एमवाई फैक्टर और घटक दलों के वोट बैंक पर भी ध्यान दिया गया है।
ये पांच विधानसभा सीटें है लोकसभा क्षेत्र में
पीलीभीत सदर, पूरनपुर, बीसलपुर, बरखेड़ा, बरेली की बहेड़ी विधान सभा
पर्यटन के लिहाज से अपार संभावनाएं हैं
यहां गन्ना यहां की मुख्य फसल है और चार चीनी मिल हैं
फूलबाबू को विरासत में मिली राजनीति
अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को राजनीति विरासत में मिली। स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले फूलबाबू ने राजनीतिक की शुरुआत यूथ कांग्रेस से की। 1989 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। हालांकि 1990 में वे बसपा में शामिल हो गए। 1991 व 1993 में बसपा से चुनाव का टिकट मिया पर कामयाबी नहीं मिली। 1996 में पहली बार बसपा की टिकट पर विधायक बने। इसके बाद 2002 और 2007 में भी चुनाव जीते और विधायक बने।
सपा के टिकट पर मैदान में उतरे भगवत सरन 1991 व 1993 में भाजपा के टिकट पर बरेली की नबाबगंज सीट से विधायक बने । 1996 के चुनाव में हार के बाद 2002 में सपा में शामिल हो गए। सपा के टिकट पर 2002, 2007, 2012 में लगातार तीन बार विधायक रहे। 2012 में सपा सरकार में भगवत सरन को स्वतंत्र प्रभार मंत्री भी बनाया गया।गंगवार ने 2009 में बरेली सीट से आम चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। 2019 में भी बरेली सीट से हारे थे।
2021 में भाजपा से जुड़ने वाले जितिन प्रसाद शाहजहांपुर के रहने वाले हैं। पूर्व में भारत सरकार में कई विभाग में मंत्री रह चुके प्रसाद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकॉम और दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान से एमबीए किया है। वह कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव भी रहे हैं। प्रसाद ने 2004 में शाहजहांपुर से आम चुनाव लड़ा और जीते। 2009 में धौरहरा से सांसद बने। हालांकि 2014 व 2019 में हार का सामना किया। 2017 में तिलहर विधानसभा से हारे।
कब कौन जीता
वर्ष प्रत्याशी पार्टी
1952 मुकुंद लाल अग्रवाल कांग्रेस
1957 मोहन स्वरूप प्रजा सोशलिस्ट
1962 मोहन स्वरूप प्रजा सोशलिस्ट
1967 मोहन स्वरूप प्रजा सोशलिस्ट
1971 मोहन स्वरूप कांग्रेस
1977 शम्सुल हसन खान जनता पार्टी
1980 हरीश कुमार गंगवार कांग्रेस
1984 भानु प्रताप सिंह कांग्रेस
1989 मेनका गांधी जनता दल
1991 परशुराम गंगवार भाजपा
1996 मेनका गांधी जनता दल
1998 मेनका गांधी निर्दलीय
1999 मेनका गांधी निर्दलीय
2004 मेनका गांधी भाजपा
2009 वरुण गांधी भाजपा
2014 मेनका गांधी भाजपा
2019 वरुण गांधी भाजपा