वेस्ट यूपी में BJP को फिर से करनी होगी किलाबंदी, सपा-रालोद की दोस्ती के बाद चंद्रशेखर बने नई चुनौती
उपचुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया है कि मिशन-2024 की सफलता के लिए भाजपा को अपना पश्चिमी यूपी का किला मजबूत करना होगा। सपा-रालोद ने की जीत ने जिस जातीय जुगलबंदी के संकेत दिए हैं, उससे उबरना ही होगा।
उपचुनावों के नतीजों ने साफ कर दिया है कि मिशन-2024 की सफलता के लिए भाजपा को अपना पश्चिमी यूपी का किला मजबूत करना होगा। सपा-रालोद ने की जीत ने जिस जातीय जुगलबंदी के संकेत दिए हैं, उससे उबरने को भाजपा को भी अपना सामाजिक गुलदस्ता दुरुस्त करना होगा। खासतौर से जाटों और दलितों को साधने की कवायद पार्टी को पश्चिमी यूपी में करनी होगी। यदि ऐसा न किया तो बसपा के कमजोर होने के बाद चंद्रशेखर रावण पार्टी के लिए नया सिरदर्द बन सकते हैं।
उपचुनावों के नतीजों ने भगवा खेमे को सचेत कर दिया है। पार्टी को अंदाजा हो गया है कि पश्चिमी यूपी को साधने के लिए नये सिरे से किलेबंदी करनी होगी। मैनपुरी और खतौली सीटों पर इस बार सपा-रालोद गठबंधन ने भाजपा को सामाजिक ताना-बाना ठीक से नहीं बुनने दिया बल्कि जाट लैंड में तो 2013 के बाद भाजपा को जो जातीय गुलदस्ता बनाने में सफलता मिली थी, वो बिखरता सा दिखा। जाट-गुर्जरों के साथ मुस्लिम और दलित वोटों की जुगलबंदी ने भाजपा की जीती हुई सीट छीन ली। जबकि मुजफ्फर नगर दंगों के बाद इस इलाके के सामाजिक समीकरण बदल गए थे।
उभारना होगा नया जाट नेतृत्व
इससे उबरने के लिए भाजपा को ब्रज से लेकर पश्चिम तक मोर्चे दुरुस्त करने होंगे। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को कुछ और मजबूत जाट चेहरों को उभारना होगा। मौजूदा जाट सांसद-विधायक और मंत्रियों में कोई ऐसा चेहरा नहीं दिखता जो पड़ोस छोड़िए अपने जिले तक के सभी सजातीय वोटों पर पकड़ रखता हो।
दलितों में रोकनी होगी रावण की घुसपैठ
ठीक ऐसी ही रणनीति दलितों को लेकर भी अपनानी होगी। पश्चिमी यूपी में दलितों में सबसे बड़ी आबादी जाटव समाज के मतदाताओं की है। विधानसभा चुनाव में बसपा के कमजोर होने का लाभ तमाम सीटों पर भाजपा को मिला था। मगर इन उपचुनावों में पार्टी नीले खेमे की गैर मौजूदगी में भी दलित वोटों और खासकर जाटव वोटरों को साधने में सफल न हो सकी। दरअसल, असीम अरुण को छोड़ दें तो इस मोर्चे पर कोई संजीदगी से काम करता भी नहीं दिख रहा। दलित वर्ग के कई भाजपाई जनप्रतिनिधियों की स्थिति यह है कि वे अपने समाज की बस्तियों में ही जाने से परहेज करने लगे हैं।
उधर, उपचुनाव में चंद्रशेखर रावण की सक्रियता का लाभ उन्हें और उनके सहयोगियों को मिलता दिखा। ऐसे में भाजपा को रावण को रोकने की रणनीति भी बनानी होगी। हालांकि भाजपा ने हार के कारणों की समीक्षा का सिलसिला शुरू कर दिया है।