बोले उरई: मिट्टी हमारी, कब्जा दबंगों का...रुक रहा रोजी का चक्का
Orai News - उरई में कुम्हार समुदाय महंगी मिट्टी और कम खरीदारों के कारण समस्याओं का सामना कर रहा है। प्रशासनिक उपेक्षा और मिट्टी की कमी के चलते उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। दीवाली जैसे त्योहारों...
उरई। महंगी मिट्टी, मेहनत अधिक और खरीदार कम। मिट्टी की कमी और लागत न निकलने का डर। भंडारण के साथ मार्केट न होने से कुम्हारों की प्रगति पर ब्रेक सा लगा है। कुंभकार इस तरह की तमाम चुनौतियों से गुजर रहे हैं। दीवाली और अन्य त्योहारों को छोड़कर मिट्टी के बर्तनों से लोगों का मोह भंग हो रहा है। कुंभकारों का कहना है कि प्रशासन उनके बनाए सामान की खरीदारी करे तो उनके लिए हर रोज त्योहार हो। सभी ने एकसुर में कहा कि हम मिट्टी में रंग भरते हैं लेकिन हमारी जिंदगी ही बदरंग हो गई है। मिट्टी के लिए दिए गए पट्टों पर कब्जा हो गया है। परंपरा के साधक हैं। परंपरा में रंग भर रहे हैं, लेकिन जीवन बदरंग है। आर्थिक स्थिति आज भी जस की तस है। जैसे-जैसे समय का पहिया रफ्तार पकड़ रहा है, वैसे-वैसे चाक की रफ्तार धीमी होती जा रही है। वजह, प्रशासनिक उपेक्षा और मिट्टी की अनउपलब्धता। कहते हैं कि मिट्टी से जुड़े हैं लेकिन मिट्टी के लिए ही भटकना पड़ता है। अफसरों की उपेक्षा से शहर में कुम्हारों के दिन नहीं बहुर पा रहे हैं। आज भी कुम्हार वर्षों पुराने चाक को चकरी की तरह घुमाकर मिट्टी के बर्तन बना रहे हैं। महेश कुमार ने कहा कि कहने को सरकार ने माटी कला बोर्ड बनाया है। हर साल विद्युत चाक भी बांटे जाते हैं, पर गिने चुने लोगों को मिल पाते हैं, ट्रेनिंग के अभाव में मिट्टी के बने सामानों में चार चांद नहीं लग पा रहे हैं। कुम्हारों का यह दर्द अपने आपके अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान छलक उठा।
शहर के आंबेडकर चौराहे पर सतीश 20 साल से चाक चला रहे हैं। वह कहते हैं अकेले विद्युत चाक से क्या होता है। शहर में तो मिट्टी का न कोई साधन है और न ही बर्तनों की पकाई का। ऐसे में कानपुर से मिट्टी लानी पड़ती है। वह भी एक ट्राली मिट्टी भाड़ा समेत आठ से नौ हजार रुपये में पड़ती है, रास्ते में चेकिंग के नाम पर परेशान अलग से किया जाता है। धुएं का इतना डर रहता है कि रात में मिट्टी के बर्तनों की पकाई करते हैं। दिन में पड़ोस के लोग शिकायत करते हैं। पीएम आवास के लिए कई बार आवेदन किया। आज तक आवास नहीं मिला है। इसी तरह मड़ोरा के रोहित कुमार कहते हैं पैतृक काम को जरूर कर रहे हैं, पर सुविधाओं के अभाव में काम तेजी नहीं पकड़ पाया है। चाक मिला, अच्छी बात है पर सांचा, पकाने के साथ मिट्टी छानने की मशीन की कमी है, और तो और विद्युत चाक से सबसे बड़ा खतरा है तो वह करेंट लगने का। क्योंकि बर्तन बनाते समय हाथ गीले हो जाते हैं, इससे कई बार करेंट लग जाता है। अगर बेल्टनुमा चाक दिए जाएं तो यह समस्या दूर हो सकती है। वहीं, बंबी रोड पर रहने वाले कुम्हार लाला कहते हैं मानो एक तरह से कुम्हार दुश्वारियां के बीच काम कर रहे हैं। हमारा कोई स्थाई ठिकाना नहीं है। सड़क किनारे जो दुकानें लगाते हैं, उसे आएदिन अतिक्रमण के नाम पर हटवा दिया जाता है। तब तक के लिए व्यापार पूरी तरह से चौपट हो जाता है। कई बार अफसर चालान कर चुके हैं। इतना ही नहीं, गांव क्षेत्रों में जिन जगहों पर मिट्टी के लिए पट्टे दिए गए हैं, वहां पर दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया है। किसी ने भैंसों का तबेला बना लिया है तो किसी ने अस्थाई मकान व गुमटी खोल लिया है।
स्वरोजगार योजना से नहीं मिलती सहायता : शहर में कुम्हार समाज में सैकड़ों युवा हैं । जो पढ़ाई के बाद अब रोजगार की तलाश में है। माटी कला स्वरोजगार का संचालन किया गया है पर जिस विभाग को स्वरोजगार के तहत सहायता दिए जाने की व्यवस्था की गई है वह इसमें खरा नहीं उतर रहा है। कुम्हार समाज के युवाओं का कहना है कि योजनाएं तो खूब हैं पर धरातल पर नहीं हंै। इसके चलते कुम्हार समाज के लोगों को रोजगार के अभाव में गैर राज्यों में नौकरी के लिए जाना पड़ रहा है।
बोले कुम्हार
सिर्फ विद्युत चाक से मिट्टी के बर्तन थोड़ी न बन जाते है। उसके लिए जो सामग्री चाहिए, वह आसानी से नहीं मिलती है। परेशानियों के बावजूद दो पैसे मिल पाते हैं।
- सतीश कुमार
संसाधनों के अभाव में अभी न के बराबर मिट्टी से बने बर्तन खप पाते हंै। अगर सुविधाएं मिल जाएं तो न सिर्फ कारोबार में तेजी आएगी, बल्कि आर्थिक स्थिति भी सुधर जाएगी।
- रोहित कुमार
हर साल ट्रेनिंग के लिए बजट तो आता है, पर जो असल में काम करते हैं। उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। इससे मिट्टी के बर्तन बनाने के नए तरीके नहीं सीख पा रहे हैं।
- रामकुमार प्रजापति
हम सभी में कला की कोई कमी नहीं है। अगर शासन सुविधाएं उपलब्ध करा दे तो हम मिट्टी के अलावा अन्य तरह के सामान भी अपनी क्षमता के अनुसार बना सकते हैं।
- माता प्रसाद
मिट्टी के बर्तन बनाने के बाद बेचने में जो परेशानियां आती है, वह कुम्हारों से ज्यादा कोई नहीं जान सकता है। जिले में कहीं पर कोई मंडी नहीं है। इससे बर्तन बनाने के बाद बेचने में खासी दिक्कत आती है।
- महेश कुमार
योजनाएं कहने भर के लिए चल रही हैं, वास्तविक स्थिति में आज भी कुम्हार समाज मूलभूत सुविधाओं से वंचित है, न तो कभी योजनाओं का कैंप लगता है और न ही कभी सर्वे किया जाता है।
- उदय करन
दीवाली व अन्य तीज त्योहारों पर माल ज्यादा बन जाता है। जो बिका, वह तो ठीक है जो बच जाता हैं, उसके रखने में दिक्कत आती है, कई बार भंडारण न होने से माल भीग तक गया।
- दयाराम
कुम्हार समाज में तमाम ऐसे बुजुर्ग हैं, जो आयुष्मान योजना की श्रेणी में आते है। पर इतने साल हो गए पर स्वास्थ्य विभाग ने आज तक कोई कैंप नहीं लगाया है।
- लक्ष्मीकांत
माटी कला बोर्ड की जो योजनाएं चल रही हैं, उनका अभी तक कोई कैंप नहीं लगा। इससे यह पता ही नहीं चल पाता है कि बोर्ड कौन-कौन सी योजनाएं चला रहा है।
- ओमप्रकाश
कुम्हारों की दुर्दशा सुधारने के लिए सरकार अनेकों योजनाएं लाई है, पर स्थानीय स्तर पर अफसर पहल नहीं करते हंै। इससे योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
- दयाराम सिंह
सुझाव
1. शहर में बर्तन बनाने का काम करने वाले सभी लोगों को विद्युत चाक दिए जाएं।
2. हर साल सभी कुम्हार कारीगरों को प्रशिक्षण देने के साथ दैनिक भत्ता दिया जाए।
3. शहर में उपयुक्त मिट्टी के लिए अच्छी जगह पर पट्टे आवंटित किए जाएं।
4. शहर में कुम्हारों के लिए अलग से बाजार की व्यवस्था कर बर्तन बेचने की जगह दी जाए।
5. कुम्हारों के पट्टे पर किए गए अवैध कब्जों का सफाया कर राहत दी जाए।
6. प्लास्टिक पर सख्ती से प्रतिबंध लगाकर मिट्टी से बने बर्तनों को बढ़ावा दिया जाए।
6. डिस्पोजल की बिक्री पर प्रशासन सक्ती के साथ रोक लगाए, जिससे हमारी हालत में कुछ सुधार हो सके।
शिकायतें
1. कुम्हारों के पट्टे पर अवैध कब्जे होने से उपभोग नहीं हो पा रहा है।
2. माटी कला का प्रचार-प्रसार न होने से योजनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती है।
3. शहर में बाजार न होने से कुम्हारों को मिट्टी से बने बर्तन बेचने में दिक्कत आती है।
4. ट्रेनिंग की जानकारी न होने की वजह से कुम्हारों को लाभ नहीं मिल पाता है।
5. डिस्पोजल पर पूर्णतया रोक न होने से कुम्हारों के उत्पादों की बिक्री न के बराबर हो रही है।
6. शहर में उपयुक्त मिट्टी न मिलने से कुम्हारों को कानपुर, झांसी जाना पड़ता है।
7. कई कुम्हारों को विद्युत चाक न मिलने से वर्षों पुराने चाक से मिट्टी के बर्तन बना
रहे हैं।
बोले जिम्मेदार
कुम्हार समाज को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए लगातार योजनाएं चलाई जा रही हैं। मुख्यमंत्री माटीकला बोर्ड व स्वरोजगार योजना के तहत समय-समय पर कैंप लगाया जाता है। जो लोग छूट गए हंै। आने वाले दिनों में उन्हें विद्युत चाक वितरित किए जाएंगे।
-डीआर प्रेमी, जिला ग्रामोद्योग अधिकारी
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